भोपाल। नए साल 2024 के पहले दिन सियासत, समाजसेवा और परीक्षा व प्रतियोगिताओं में प्रतिस्पर्धा करने वाले सभी जांबाजों के लिए शुभकामनाएं। जिन्हें मंजिल मिल गई है उन्हें ढेरों बधाइयां। मगर ध्यान रहे कामयाबी की बारिश और असफलताओं की बाढ़ के साथ ही जीवन की परेड भी जारी है। इसमें जो मंजिल पर पहुंच गए हैं वे घमंड ना करें और जो पीछे रह गए हैं वह गम ना करें। सबको पता है जब परेड होती है तो उसमें अबाउट टर्न याने पीछे मुड़ की कमांड भी दी जाती है। इसलिए जो पीछे हैं वे निराश न हों … पता नही जिंदगी कब ‘पीछे मुड़’ की कमांड दे दे और आप अंतिम से प्रथम हो जाओ। हाल ही दिसम्बर में पांच प्रदेशों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने तो यही साबित किया है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों के चयन और विभाग वितरण की परेड में – पीछे मुड़ की जो कमांड मिली उसने कई पीछे वालों को आगे खड़ा कर दिया है। राजस्थान में पहली बार के विधायक से सीएम बने भजन लाल शर्मा, मप्र में उच्च शिक्षा मंत्री से मुख्यमंत्री का ताज पहनने वाले डॉ मोहन यादव इसकी जीती जागती मिसाल हैं। यहीं से शुरू होती नए नेतृत्व की उम्मीदों के आसमां पर ऊंची उड़ान।
मध्य प्रदेश सहित भाजपा शासित तीन राज्यों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट के लिए गुड गवर्नेंस और करप्शन पर जीरो टॉलरेंस सबसे बड़ी चुनौती है। मुख्यमंत्री की मंजिल पाने वाले नेताओं डॉ मोहन यादव, भजन लाल शर्मा और छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय के लिए चाल चरित्र और चेहरे की चुनौती से दो-चार होना पड़ेगा। सरकार की साख के साथ करप्शन पर ज़ीरो टालरेंस का कठिन काम करना पड़ेगा। पीएम नरेंद्र मोदी के इस नारे – न खाऊंगा और न खाने दूंगा…को अमली जामा पहनाना होगा।
आ रहे हैं अमित शाह…
खल्क खुदा का मुल्क बादशाह का हुकुम कोतवाल के अंदाज़ में नए साल में करप्शन को खत्म करने का आगाज़ करने राज्य के जिले खरगौन आ रहे है केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह। दरअसल खरगौन में शाह साइबर तहसील योजना का शुभारंभ करने आ रहे हैं। जिसमें आमजन खासतौर पर किसानों को नामांतरण के मुद्दे पर बड़ी राहत मिल सकती है। जमीन के बंटवारे या बिक्री होने पर रजिस्ट्री के बाद तहसीलों में नामान्तरण कराना बड़ी ही टेडी खीर होता है। इसमे पटवारी से लेकर तहसीलदार आदि मिलकर रिश्वतखोरी करते हैं। यह राशि हजारों में होती है। साइबर तहसील में रजिस्ट्री होने के पन्द्रह दिन में नामान्तरण स्वतः ही जाएगा। योजना के मुताबिक यदि ऐसा होता है तो यह करप्शन कम करने में एक क्रांतिकारी कदम होगा। अमित शाह जैसे कठोर गृह मंत्री के हाथों योजना आरम्भ और उनके अनुजरूपी आज्ञाकारी डॉ मोहन यादव के समक्ष निर्बाध रूप से नामान्तरण की प्रक्रिया को पूरा करना कठिन टास्क होगा। इसी मुद्दे पर डॉ यादव की प्रशासनिक दक्षता दांव पर रहेगी।
इसके साथ ही यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर डॉ यादव के पास गृह विभाग का दायित्व भी है। ऐसे में कानून व्यवस्था में भी कठोरता की दरकार है। इस मामले में हरेक अहम मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ से उनकी तुलना होगी। भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के साथ स्कूल कॉलेज और अस्पताल में बेहतर प्रबंधन को लेकर मोहन सरकार उम्मीद के आसमान पर है। मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री से काफी अनुभवी और दिग्गज नेताओं के होने से सरकार के संचालन में काफी मदद मिलेगी। वरिष्ठों के मान सम्मान को संभाल कर चलना और उनकी योग्यता का लाभ लेना यह भी एक दुधारू तलवार की तरह होगा। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन होने से डॉक्टर यादव काफी हद तक सरकार के भीतर और बाहर की चुनौतियों का सामना कर पाएंगे। गुना में बस और डंपर की टक्कर के बाद जो कलेक्टर एसपी और परिवहन आयुक्त को हटाने के साथ जिला स्तर के अधिकारियों के निलंबन सम्बन्धी जो कठोर प्रशासनिक फैसले लिए हैं उसे मुख्यमंत्री की छवि जनता के बीच काफी सकारात्मक बनी है। हरेक विभागों में गड़बड़ी मिलने पर गुना जैसे फैसले लगातार लेने होंगे तब जा कर प्रशासन में धमक और जनता में इमेज बन सकेगी। कुछ कर गुजरने की कोशिश में जो लोग लगे हैं उनके लिए एक शेर बड़ा मौजू है-
मंजिल मिले ना मिले , मुझे उसका गम नहीं, मंजिल की जुस्तजू में , मेरा कारवां तो है…!!
सरकार को असरदार बनने के लिए करप्शन के खिलाफ ज़ीरो टालरेंस की मुहिम को चलाए रखना होगा। साथ ही गड़बड़ी करने वालों की जिम्मेदारी तय कर उन पर कार्रवाई करनी होगी। ऐसे ही उम्मीदों के आसमान पर सरकार है। आने वाले तीन से छह माह का समय सरकार के चाल, चरित्र और चेहरे को तय करने वाला होगा।