nayaindia Ram mandir inauguration राम का मंदिर क्या सिर्फ राम के उपासकों का है..?

राम का मंदिर क्या सिर्फ राम के उपासकों का है..?

भोपाल। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से राम मंदिर निर्माण के कर्ता – धर्ता चम्पत रॉय द्वारा चार पीठों के शंकरचार्यों द्वारा अयोध्या मंदिर के निर्माण से अपने को अलग करने के बाद उन्होंने यह विवादित बयान दिया। जिससे यह प्रतीत होता है कि मंदिर के निर्माण में धन और जन से सहयोग करने वाले शैव और शाक्त संप्रदाय के लोग अपमानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने शंकराचार्यों को शैव मत का मानते हुए उनकी उपस्थिति को गैर जरूरी माना है। अब इन सज्जन को कौन समझाये कि ना तो अयोध्या सनातन धरम के चार धामों में है और ना ही आदि गुरु केवल शिव भक्त थे ! आदि गुरु ने ही सनातन की धरम ध्वजा भारत खंड में फहराई थी। काश्मीर से कन्या कुमारी और आसाम से गुजरात तक, उन्होंने ही सनातन धरम की अनेक विभाजक तथ्यों को मिटा कर ना केवल ब्राम्हणंो को दस भागों में नियत किया था, वरन उन्होंने सभी देवताओं और देवियों की स्तुति भी लिखी थी।

शैव वे जनम से हे उनके पिता भी शिव भक्त थे, उन्हीं के प्रसाद स्वरूप आदि गुरु जैसा पुत्र उन्हंे मिला था। बटुक रूप में जब वे भिक्षा हेतु एक ब्रम्हानी के घर गए थे तब उसने उन्हें दरिद्रता के कारण तीन आंवला फल दिये थे – जिससे द्रवित होकर उन्होंने प्रथम स्तुति लक्ष्मी की थी जिसे आज हम कनकधारा स्त्रोत के रूप में जानते हैं। आदिगुरु ने कुल 72 स्तुतियां लिखी हंै जो महाकाली – भैरव और विष्णु आदि के अनेकों स्वरूपों की है। शायद यह पहला अवसर है भारतवर्ष के इतिहास में जब सनातन धरम के पुरोधा आदिगुरु के स्थापित पीठों के अधिस्थताओं का सरेआम अपमान करने की कोशिश हुई है। शंकरचार्यों ने अपने को हमेशा से राजनीति से अलग रखा है। परंतु विश्व हिन्दू परिषद द्वारा बटोरे गए भगवाधारियों और महंतों मंडलाचार्यों को बटोर कर हजारों साल की परंपरा को नीचा दिखाने की कोशिश हुई है। अब चूंकि इनको ना तो ईडी और ना ही सीबीआई का कोई डर है, इसलिए ये निर्भीक होकर धरम की व्यवस्था पर अपना मत रख रहे हैं।

चम्पत रॉय जी इस बात से नाराज़ थे कि चारो पीठ के शंकरचार्यों ने मंदिर के उदघाटन से अपने को दूर रखा –इसका कारण उन्होंने शास्त्रोक्त नियमों की अवहेलना बताया, जबकि इस सरकारी धार्मिक आयोजन का उद्देश्य पूरी तरह से राजनैतिक है। जिससे वे असहमत है। चंपत रॉय के इस बयान से कि मंदिर रामानंदी लोगों का है चारों शंकरचार्यों ने मंदिर को रामानंद संप्रदाय को सौपने का सुझाव दिया जिसे विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस के नेता कभी भी मंजूर नहीं करेंगे। क्यूंकि वस्तुतः यह बीजेपी का और मोदी सरकार का आयोजन है जिसकी आड़ में वे अपनी राजनीति साकार करना चाहते हैं।

सरकार ने आज़ादी के बाद द्वारका में सोमनाथ मंदिर का जीर्णोधार किया था – तब उसके यजमान बने थे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जिन्होंने धोती पहन कर यगोपावित के साथ उपवास रखकर विधिवत शिवलिंग को स्थापित किया था। वे राष्ट्र प्रमुख थे अनेकों मंदिरों में प्रथम पूजा अधिकार उस क्षेत्र के राजा का होता है, परंपरागत रूप से। बद्रीनाथ में प्रथम पूजा-अर्चना महाराजा टेहरी – गडवाल किया करते थे, अब शायद उनसे यह अधिकार सरकार ने ले लिया है। अब भारतीय सेना का अधिकारी प्रथम पूजा-अर्चना करता है। अभी सुप्रीम कोर्ट ने त्रिवेन्द्रम स्थित पद्मनाभ मंदिर का प्रबंधन केरल सरकार से लेकर वहां के राज परिवार को सौंप दिया है।
चार धामों में एक पूरी का जगनाथा मंदिर भी है, जिसका प्रबंधन राज्य सरकार करती है, एक ट्रस्ट के माध्यम से। अभी उड़ीसा सरकार ने पुरी के मंदिर में उसी प्रकार का विकास किया है जैसा काशी विश्वनाथ कारीडोर का हुआ है। परंतु उन्हीं परकोटे में स्थित सभी मठों के मंदिरों को सुरक्षित रखा है –केवल उनके कमरे और हाल हटा दिये गये है। ना कि बनारस की तरह जहां सैकड़ों शिव लिंग धूल में लिटा दिये गये और मंदिरों को तोड़ दिया गया। यह फर्क है नरेंद्र मोदी सरकार और नवीन पटनायक की कार्य शैली का।

अयोध्या मे निर्माणाधीन राम मंदिर का विधिवत उदघाटन 22 जनवरी को होगा वहां चारों धामो में एक पुरी में जगनाथ मंदिर कारीडोर का उदघाटन 17 जनवरी को होगा। जिसका उदघाटन पुरी के राजा गजपति दिव्य सिंघदेव करेंगे। इस अवसर पर पुरी के शंकराचार्य निश्चलनन्द और ओरिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक मौजूद रहेंगे। इस कारीडोर को बनाने में 3 हजार 7 सौ करोड़ रुपए खर्च हुए है। यात्रियों के लिए एअर कंडीशन पथ परिक्रमा तथा तीर्थ यात्रियों के लिए अनेक सुविधा स्थल का निर्माण हुआ है। इस व्यवस्था से अब सभी तीर्थ यात्री मंदिर में सहजता पूर्वक दर्शन कर सकेंगे और मंदिर की पताका के दर्शन दूर से ही कर सकेंगे।
इस आयोजन का प्रारम्भ 14 तारीख से हवन यज्ञ से शुरू होगा। जिसकी पूर्णहुति 17 जनवरी को होगी। लगभग तीन हजार करोड़ से यह चार धामों में पहला स्थान है जहां पुनर्विकास हुआ है। मोदी सरकार ने बनारस और उज्जैन में परकोटा और यात्रियों के लिए पथ गमन बनाया है। परंतु उज्जैन में नरेंद्र मोदी के उदघाटन के कुछ ही दिनो बाद वहां स्थापित सप्त ऋषियों की मूर्तियां धराशायी हो गयी। जो निश्चय ही ठेकेदार और अधिकारियों की मिली भगत का परिणाम था। बहुत हो हल्ला मचने के बाद भी किसी को दोषी नहीं ठहराया गया क्यूंकिss सरकार भी अपनी और ठेकेदार भी अपना था !

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