Sunday

13-07-2025 Vol 19

भाजपा संगठन कांग्रेस से बदतर!

99 Views

उफ! आरएसएस के रहते भाजपा का इतना पतन! आखिर संघ-भाजपा की संगठनात्मक संरचना तो हमेशा कांग्रेस से बेहतर रही है। कांग्रेस शुरू से मंचस्थ और नेता अधीनस्थ रही, जबकि जनसंघ-भाजपा सौ टका सलाह-मशविरे की बुनियाद पर संगठन केंद्रित। लेकिन अब यह स्थिति है कि कांग्रेस में राहुल गांधी पसंद-नापसंद में फैसले करते हुए भी अपने महासचिव (भले वेणुगोपाल जैसी टोली हो) हो या अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से बात करके निर्णय करते (या थोपते हैं) वही भाजपा में न तो पार्टी अध्यक्ष का अर्थ बचा है और न संघ तथा उसके संगठन मंत्री से सलाह है। न ही संसदीय बोर्ड, कार्यसमिति की बैठकों की प्रक्रिया बची है। भाजपा पूरी तरह परची वाली पार्टी हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना हो या मुख्यमंत्री तय करना हो सब परची से तय हो रहे हैं। इन कामों के लिए राज्यों में जो भी प्रभारी जा रहा है उसे ऐन वक्त फोन से सूचना मिलती है कि फलां को अध्यक्ष बनाओ। न संघ से सलाह, न संघ के संगठन मंत्री, प्रदेश के संगठन-क्षेत्रीय प्रचारकों को पूछना या सलाह से कोई पैनल तथा न संघ की राय का कोई मतलब। सबका मालिक एक! नरेंद्र मोदी और फिर उनकी तरफ से अमित शाह!

पर हां, नरेंद्र मोदी के यहा संघ के एक प्रचारक सुरेश सोनी का जरूर वजूद है! निःसंदेह सुरेश सोनी सियासी खिलाड़ी हैं। संघ के असल अधिकारी वर्ग (मोहन भागवत, दत्तात्रेय होसबाले, अरूण कुमार आदि) से अलग उनकी एक संविधानेत्तर संगठन सत्ता है। वे चौबीसों घंटे वैसे ही राजनीतिक शतरंज के खिलाड़ी हैं, जैसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं। इसलिए मोटामोटी यह तिकड़ी संघ के सौ सालों के कथित शक्तिशाली संगठन की अब सार्वभौम मालिक है। फिर सुरेश सोनी क्योंकि नरेंद्र मोदी को आधुनिक चंद्रगुप्त मौर्य बनाने वाले चाणक्य हैं तो उनमें यह ललक भी है कि वे प्रादेशिक चंद्रगुप्त भी बनाएं और मोदी के बाद, 2029 में अगले प्रधानमंत्री की बिसात भी बिछाएं।

इसलिए भाजपा का अगला अध्यक्ष संघ तय नहीं करेगा, बल्कि अमित शाह और सुरेश सोनी से तय होगा। यों नरेंद्र मोदी चाहें तो मनोहर लाल खट्टर को बना सकते हैं मगर खट्टर क्योंकि मोदी के स्वामीभक्त हैं अमित शाह के नहीं तो उस पर पहले ही वीटो हो गया बताते हैं।

कुल मिलाकर पते की बात है कि पचास साल पहले पूरा भारत एक देवकांत बरूआ के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से बिदका था और मुझे याद है कि मैंने जब जगन्नाथ पहाड़िया, श्रीपति मिश्र को बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेते देखा तो मुझे लगा कांग्रेस अपने हाथों कैसे अपने पांवों कुल्हाड़ी मारती पार्टी है। यह पता नहीं था कि पचास साल बाद जब जनसंघ-भाजपा सत्ता में होगी तो वह पार्टी न केवल राष्ट्रीय स्तर पर देवकांत बरूआ छाप अध्यक्ष लिए हुए होगी, बल्कि प्रदेशों में अध्यक्ष हो या मुख्यमंत्री सभी देवकांत बरूआ के रूपांतरित अवतार होंगे।

इसलिए नोट रखें भाजपा अब संघ की सलाह, अंदरूनी सलाह-मशविरे से नहीं, संघ की ओर से संगठन मंत्री की मैसेजिंग से अध्यक्ष बनाते हुए नहीं है। सभी तरफ मोदी या उनके हवाले देवकांत बरूआओं की पार्टी बन गई है। एक ही कसौटी। सौ टका स्वामीभक्त हो।

संघ के पुराने दिल मध्य प्रदेश में तो गजब ही हुआ। सुरेश सोनी ने अपना मुख्यमंत्री बनाने के बाद अब वहां प्रदेश अध्यक्ष भी अपना बनवा दिया है। पुराने भाजपाई और संगठन नेताओं को समझ ही नहीं आ रहा है कि यह क्या हुआ! इसका अर्थ यह नहीं कि वह भाजपाई परिवार, स्वयंसेवक नहीं है। जैसे देवकांत बरूआ, पहाड़िया आदि सब कांग्रेस मूल से थे लेकिन फिर भी देवकांत बरूआ थे उसी लीक पर अब भाजपा के मनोनीत अध्यक्षगण है!

यों कहते हैं हाल में सुरेश सोनी ने नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत के मध्य सीधे बातचीत कराई। बावजूद इसके वह कुछ भी बहाल नहीं हुआ जो राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने तक भाजपा संगठन में था। अर्थात पार्टी कार्यसमिति की बैठकें होना, महासचिवों में सलाह-मशिवरा और प्रदेश संगठनों-संघ से पूछना आदि की प्रक्रिया में किसी तरह की कोई जान नहीं लौटी है।

सो, भाजपा का पूरा संगठन गोवर्धन पर्वत की तरह नरेंद्र मोदी की ऊंगली पर टिका है। और उनको बुद्धि देते हुए सुरेश सोनी और उनका सिंहनाद करते हुए अमित शाह!

सोचें, कांग्रेस जब सत्ता में होती थी तो संगठन उछलता-कूदता होता था। भले इंदिरा गांधी का वक्त हो या सोनिया गांधी का या नरसिंह राव व सीताराम केसरी का, हमेशा कांग्रेस दफ्तरों के नेता कलफदार कुर्तों के साथ सत्ता का रौब गांठते थे तो जनता का भी काम करते थे। आज, राहुल गांधी के समय पर भी कर्नाटक, तेलंगाना की कांग्रेस सरकारों पर गौर करें। कांग्रेस का मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष देवकांत बरूआ छाप नहीं है। प्रदेश कांग्रेस में कांग्रेसियों का सत्ता में भाव है। जनता की सुनते, जनता के काम कराते हुए हैं। जबकि भाजपाई विधायक और सांसद अपनी सरकारों में किस भाव घूमते हुए हैं? इसका क्या खुलासा हो! हर भाजपाई जानता है, मोहन भागवत, मोदी, शाह सब जानते हैं!

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *