मैं अमित शाह की राजनीतिक बुनावट को गहराई से जानता-समझता हूं। जनता की नब्ज और दूरदृष्टि में उन्हीं का कमाल था जो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने (न की सुरेश सोनी का)। लेकिन बावजूद इसके हैरान हूं यह देख कर कि वे प्रधानमंत्री बनने का अपना भविष्य देवकांत बरूआ किस्म के चंपुओं में देखते हैं! मेरा मानना है और मैंने बाकायदा अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद लिखा था कि ऐसा फैसला करा सकना सिर्फ अमित शाह के बूते की बात थी। इसलिए नरेंद्र मोदी के बाद हिंदुओं के उन्माद में अमित शाह प्रधानमंत्री बनने की अपनी बिसात बिछाएं तो वह स्वाभाविक है। इसके लिए योगी आदित्यनाथ, देवेंद्र फड़नवीस, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान आदि पुरानों-नयों को आउट कराएं और 2029 की तैयारी में भाजपा को अपना जेबी संगठन बनाएं तो इसे भी समझा जा सकता है। लेकिन इस चक्कर में यदि पार्टी संगठन को देवकांत बरूआओं में रंग देते हैं तो 2029 में वोट भला कहां से आएंगे? अध्यक्ष के पद पर वे धर्मेंद्र प्रधान, सुनील बंसल या भूपेंद्र यादव (बिना संघ से पूछे या सुरेश सोनी के जरिए) किसी को भी बैठा दें, तब सन् 2029 में उनके चेहरे की तैयारी का चाणक्य कौन होगा? या अमित शाह इस गलतफहमी में आ गए हैं कि वे ही चाणक्य और चंद्रगु्प्त दोनों हैं!
संभव है जैसे नरेंद्र मोदी को गलतफहमी है कि लोकसभा चुनाव में 303 से 240 सीटों पर लुढ़कने के बावजूद हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली में जीत उन्हीं के जादू का परिणाम है वैसे अमित शाह को भी गलतफहमी होगी कि महाराष्ट्र, हरियाणा में उनके माइक्रो मैनेजमेंट से कमाल हुआ। जबकि संघ वालों का मानना है कि महाराष्ट्र में छह महीने क्षेत्रीय प्रचारक अतुल लिमये की जमीनी सामाजिक रणनीति से बाजी पलटी थी। वैसा ही हरियाणा में हुआ तो जाहिर है अमित शाह अब आत्ममुग्धता के मारे हैं।
और आश्चर्य की बात जो संघ के एक सुधीजन ने बताया कि संघ केवल अमित शाह को भाजपा संगठन की बरबादी, उसके देवकांत बरूआ छाप बनने के लिए जिम्मेवार मानने लगा है। चर्चा है कि मनोहर लाल खट्टर को अध्यक्ष बनाने के लिए सहमति बन रही थी लेकिन अमित शाह ने इस कसौटी में नहीं बनने दिया क्योंकि खट्टर मोदी के स्वामीभक्त हैं उनके नहीं! अमित शाह ने ही देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले को टलवाए रखा। वे योगी आदित्यनाथ के इसलिए विरोधी हैं क्योंकि वे मोदी के बाद हिंदू चेहरे के कारण प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं!
इस तरह की कानाफूसी आम लोगों में हो, समझ आता है! मगर संघ के जानकारों में मोदी से ज्यादा अमित शाह से चिढ़ का अर्थ है कि सत्ता ने अमित शाह की दूरदृष्टि को तात्कालिकता में बदल दिया है। कोई आश्चर्य नहीं जो कुछ समय पहले गुजरात में एक कंपनी पर आयकर का छापा पड़ा, जिसमें यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की पोती बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में है। इस पर हड़कंप हुआ और फिर कहते है दिल्ली में नरेंद्र मोदी, आनंदीबेन और अमित शाह की बैठक में वह सब हुआ, जिसकी भनक में अब सस्पेंस है कि देखते हैं गुजरात में अमित शाह कैसे अपना स्वामीभक्त अध्यक्ष बनाते हैं।
तभी लगता है गुजरात और उत्तर प्रदेश में भाजपा का वह अध्यक्ष नहीं होगा जो अमित शाह चाहेंगे। वही होगा जो योगी, आनंदीबेन, मोदी और संगठन मंत्री के जरिए संघ चाहेगा। सोचें, चार साल बाद के लोकसभा चुनाव से पहले अमित शाह संघ परिवार के भीतर, योगी से लेकर देवेंद्र फड़नवीस की एक लंबी चौड़ी जमात के बीच के पूरे कैनवस में इस तरह घिरे हैं तो वे कैसे आगे प्रधानमंत्री बनेंगे, इसका अनुमान लगा सकते हैं!