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22-05-2025 Vol 19

डरो नहीं! यह झूठ का महायुद्ध है!

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कृपया न्यूज टीवी चैनलों को देखना बंद कीजिए। सोशल मीडिया छोड़ दीजिए। कथित उस ‘युद्ध’ को देखना, सुनना छोड़ दीजिए जो भारत और पाकिस्तान सरकार की झूठ की फैक्टरियों याकि टीवी चैनलों से है। कल मेरे घर में कुछ रिश्तेदारों के घबराए हुए फोन थे। कहना था डर लग रहा है। नींद डिस्टर्ब है। रात में भी टीवी खोल देखने लगते हैं कि क्या हो रहा है।

ब्लैकआउट, सायरन से भी दहशत है। अब ऐसा होना श्रीनगर, जम्मू में समझ आ सकता है मगर राजस्थान, मथुरा, दिल्ली में भी लड़ाई, लड़ाई का भूत बनना मानसिक बीमारी है। इसका जिम्मेवार कारण टीवी चैनल, सोशल मीडिया पर झूठ का सैलाब है। गुरूवार रात टीवी चैनल ‘युद्ध’ शुरू हुआ घोषित कर दे रहे थे। एक के बाद एक दुश्मन के विमान धड़ाम गिर रहे थे। लाहौर पर हमला हो गया था। उसका सुरक्षा तंत्र चूर-चूर था।

सो आपके दिमाग को शांति मिलेगी यदि टीवी चैनलों, टिवटर, सोशल मीडिया पर जो चल रहा है, दोनों तरफ की सरकारों के कहने पर दिमाग नहीं खपाए। ‘युद्ध’ नहीं हो रहा है। इसी कॉलम में मैंने (दो मई) लिखा था कि, “न जंग होगी न पीओके लेंगे!” और ले देकर आतंकी अड्डों पर मिसाइल हमले और फिर जैसे ईरान और इजराइल ने एक-दूसरे पर मिसाइल दागी थी वैसे ही यहां हवाई मिसाइल-ड्रोन हमले होने हैं।

वही हो रहा है! लेकिन उसे झूठ के तड़के में टीवी चैनलों पर चौबीसों घंटे दिखाया जा रहा है। स्वभाविक है करोड़ों लोगों की मानसिक दशा पर भयावह असर होगा। शुक्रवार सवेरे ही दिल्ली में पढ़े-लिखों की बस्ती में चर्चा थी कि स्कूल बंद हो गए। दिल्ली में रहें या न रहें? आपको भी आवश्यक चीजे जमा रखनी चाहिए! दवाईयां तो जरूर खरीद कर रख ले!

उफ! क्या बुद्धि बना दी है देश की। कैसी है हमारी समझ और आत्मबल की दशा! पिछले 11 वर्षों ने भारत के लोगों में निर्भयता को पूरी तरह खोखला बना दिया है। इतनी भी समझ नहीं पैंठी कि टीवी और मीडिया तथा सरकार झूठ की भट्ठियां हैं।

झूठ का महायुद्ध’ और जन-भ्रम की चाल

इसलिए डरने की, नींद खराब करने या टीवी पर वक्त बरबाद करने की रत्ती भर जरूरत नहीं है। कुछ नहीं होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो लालबहादुर शास्त्री हैं और न ही इंदिरा गांधी। वे बालाकोट के शेर हैं। और देखा नहीं आपने कि एक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हुआ नहीं कि उनकी बैठकों के पीछे गांधी का चित्र लगा दिखने लगा।

भारत आधिकारिक तौर पर कहने लगा कि हमारी मंशा सैन्य कार्रवाई बढ़ाने की नहीं है हालांकि, भारत ने हर संभावित स्थिति की तैयारी की हुई है। तभी लंदन की ‘द इकानोमिस्ट’ की यह लाईन वैश्विक सच्चाई है कि शेष दुनिया इन दोनों देशों की पटकथा को अब जान गई है। वर्ष 2000 के बाद इसे कई बार दोहराया जा चुका है। तभी पुरानी ही स्क्रिप्ट में लड़ाई नहीं बढ़ाने (de-escalation) याकि पीछे हटने की वापिस अपील हुई।

कोई आश्चर्य नहीं जो ईरान के विदेश मंत्री दिल्ली आ गए हैं। अर्थात पाकिस्तान (मतलब वहां की सेना व आईएसआई) ने पहलगाम में आतंकी वारदात की तो उसका भारत ने ‘आपरेशन सिंदूर’ से बदला लिया। भारत जीत गया तो पाकिस्तान से उसका तात्कालिक पंगा खत्म! प्रधानमंत्री मोदी फिर सच्चे-छप्पन इंची बादशाह!

लेकिन इस दफा एक दिक्कत है। और इसे बारीकी से ‘द इकानोमिस्ट’ ने इस शीर्षक से व्यक्त किया है कि ‘फिलहाल किस्मत के हाथों में है तनाव कम होना या तबाही’ (Luck stands between de-escalation and disaster for India and Pakistan)। मेरा मानना है कि इस बार पाकिस्तान की सेना का अस्तित्व, वहां की जनता में उसकी पैठ और उसके सेना प्रमुख असीम मुनीर का अहंकार दांव पर है। हालांकि भारत ने आतंक के राक्षस आईएसआई मुख्यालय पर मिसाइल नहीं दागी लेकिन सेना प्रमुख मुनीर पहलगाम से पहले अपने बयान से फोकस में थे।

और प्रधानमंत्री मोदी ने जब आतंकियों और उनके आकाओं को कल्पना से बड़ी सजा देने का हुंकारा मारा था तो भारत की टीवी चैनलों ने उसे थर-थर कांपता हुआ, भगोड़ा करार दिया था लेकिन वही अब वहां निर्णयकर्ता है। प्रधानमंत्री शरीफ कमान में नहीं हैं, बल्कि सेना है। और पाकिस्तानी जनता की कसौटी में सेना की ही परीक्षा है। तभी पिछले तीन दिनों में भारत और पाकिस्तान दोनों पहली बार नए हथियारों, नए विमानों का परीक्षण करते हुए हैं।

जो हो, दोनों तरफ से सत्य कोई नहीं बोल रहा है और न बोलेगा। पाकिस्तान ने रात में भारत की और मिसाइल और ड्रोन दागे लेकिन सुबह ‘बीबीसी’ से बात करते हुए यह सफेद झूठ बोला कि हमने तो कुछ किया ही नहीं! कह सकते हैं बेचारे रक्षा मंत्री से पूछकर सेना ने मिसाइल और ड्रोन नहीं दागे होंगे!

यह दक्षिण एशिया के दोनों देशों की तासीर का सबूत है। जबकि सोचें, इजराइल और उसके प्रधानमंत्री, वहां की सरकार हर दिन हमले से पहले ऐलान करती है कि आज फलां-फलां जगह हमला होगा। ताकि सिविलयन सर्तक रहें। इजराइल और नेतन्याहू का यह दो टूक स्थायी स्टैंड है कि हम आंतकवाद को मूल से खत्म करेंगे।

तब तक रूकेंगे नहीं। वही भारत एक ऑपरेशन के बाद कह रहा है हम बात यही खत्म करना चाहते हैं! एक तरफ जिद्दी हमास, पागल पाकिस्तान और दूसरी तरफ इजराइल और भारत। फर्क इसलिए है क्योंकि दक्षिण एशिया की यही तासीर है कि झगड़ेंगे मगर झूठ का महायुद्ध बनाते हुए।

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Pic Credit: ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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