एक पाठिका ने शिकायत की कि मैंने चुनाव, राजनीति पर लिखना कम कर दिया है। चुनाव के समय तो लिखें। बात ठीक है। पर सवाल है लिखने लायक नया क्या है? नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने चुनाव को फैक्टरी में तब्दील कर दिया है। मैंने 2017 के उत्त रप्रदेश विधासभा चुनाव में बनारस घूमते हुए लिखा था, मोदी-शाह ने वोट उत्पादन की असेंबली लाइन बना डाली है। सब कुछ यंत्रवत् है। और मैं सचमुच नरेंद्र मोदी को गुजरात मुख्यमंत्री के समय से चुनाव को यंत्रवत् लड़ते हुए बूझता रहा हूं। पैमाने का फर्क है अन्यथा मोदी-शाह जैसे गुजरात चुनाव लड़ते थे वैसे ही दिल्ली आने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री के नाते साधन, संसाधन, पैसा-पूंजी, नई तकनीक, मजदूर, प्रबंधक, रॉ मैटेरियल, ट्रांसपोर्टेशन, मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क आदि दुनिया के सबसे बड़े देश के अनुपात अनुसार है। यह असेंबली लाइन वैसी है जैसे हेनरी फोर्ड ने कार के उत्पादन की पहले असेंबली लाइन बनाई थी। भारत में मोदी-शाह ने वोट पैदा करने की असेबली लाइन बनाई है। इसका एकमेव उद्देश्य सत्ता के लिए वोटों की यंत्रवत उत्पत्ति है। असेंबली लाइन पर इंसानों की मुंडियों के तमाम पेंच कस कर या भावना, भक्ति, शक्ति के इंजेक्शन दे कर उन्हें मतदान केंद्र की लाइन में खड़ा कर दिया जाता है और एक-एक लोग यंत्रवत् मोदी के नाम पर कमल का बटन दबाते हैं।
सन् 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के हर चुनाव अभियान पर गौर करें। चुनाव की भाजपा फैक्टरी में दिन-रात काम होता है। किस जाति की, किस वर्ग, किस उम्र की मुंडियों में भक्ति-आस्था के कीर्तन होने हैं? मुसलमान के खौफ का काला जादू कहां किस अनुपात में आजमाया जाना है। पश्चिम बंगाल में किस अनुपात में तो उत्तर प्रदेश में कितना या तेलंगाना में कितना! जाति का कच्चा सामान किस सीट, किस प्रदेश में किस अनुपात में? मीडिया के इंजेक्शनों से मुंडियों में झूठ कितना और किस-किस एगंल का डालना है आदि, आदि। मतलब सब कुछ फैक्टरी की असेंबली लाइन माफिक।
और विपक्ष, कांग्रेस आदि इसके आगे क्या करते हुए? वैसे ही जैसे कभी संजय गांधी ने अपनी मारूति कार के जुगाड़ में दिल्ली में इधर-उधर के मैकेनिक इकट्ठा कर छोटी गाड़ी का जुगाड़ सोचा था।
सो, जब लोकतंत्र व चुनाव की रियलिटी यंत्रवत् चुनाव के नतीजे हैं तो मजा होते हुए भी चुनाव पर लिखने का मन नहीं करता। मगर हां, उत्तर भारत के हिंदू वोटों का वशीभूत व्यवहार और मोदी-शाह की दिन-रात की बेचैनी मजेदार है। इतना कुछ पा लिया फिर भी भागे रहना। इस सप्ताह आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम और ओडिशा में बीजू जनता दल के साथ भाजपा के एलायंस करने की बात से फिर लगा कि मोदी-शाह 2024 के वोट प्रोडक्शन को ले कर कुछ अनिश्चित हैं।
कांग्रेस को अचानक आंध्र प्रदेश, ओडिशा व तेलंगाना में बड़ा स्पेस मिलता दिखता है। या यह भी हो सकता है कि इन राज्यों में कांग्रेस के जितने एमपी हैं उतने भी नहीं जीतने देना है। लेकिन मेरा मानना है कि दोनों तरह की स्थितियों में कांग्रेस का वोट अनिवार्य बढ़ेगा। ये चुनाव इस बात के लिए जरूर महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस का वोट कितना प्रतिशत बढ़ता है?