manipur violence : मणिपुर में जातीय हिंसा को दो साल होने जा रहे हैं। 2023 की मई के पहले हफ्ते में कुकी और मैती समूहों के बीच जातीय हिंसा शुरू हुई थी, जिसमें तीन सौ के करीब लोग मरे हैं और हजारों लोग विस्थापित हुए है।
ऐसा लग रहा था कि अब वहां शांति बहाल हो जाएगी। लेकिन उलटे हिंसा और भड़क गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आठ मार्च से मणिपुर की सारी सड़कें खोल देने और आवागमन सामान्य रूप से बहाल करने का आदेश दिया था।
लेकिन आठ मार्च को सड़कें खुलीं तो हिंसा भड़क गई। सुरक्षा बलों के घेरे में कुछ सड़कों पर आवाजाही शुरू हुई है लेकिन आठ मार्च के बाद जितने हमले हुए उन्हें देखते हुए लोग अभी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं।
मणिपुर में भाजपा के तमाम प्रयोग फेल हैं। कारण यह है कि हिंसा भड़कने के बाद जो काम सबसे पहले होना चाहिए था वह करने की बजाय सब कुछ किया गया। (manipur violence)
प्रधानमंत्री चाहते तो मणिपुर को उस अवस्था में पहुंचाने वाले मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटा कर हालात सामान्य करने का प्रयास कर सकते थे। लेकिन हिंसा भड़कने के बाद भी बीरेन सिंह बने रहे।
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प्रधानमंत्री खुद मणिपुर गए
वे बहुसंख्यक मैती समुदाय को उकसाने वाली बातें भी करते रहे। जातीय भावनाओं को उकसा कर उन्होंने शांति नहीं बहाल होने दी। न प्रधानमंत्री खुद मणिपुर गए और न उन्होंने मुख्यमंत्री बदला। (manipur violence)
जब पानी सर के ऊपर से बहने लगा तो पिछले महीने फरवरी में मुख्यमंत्री को हटाया गया। यह माना गया कि बीरेन सिंह के हटने से शांति बहाल होगी लेकिन वह भी नहीं हुआ क्योंकि बीरेन सिंह पहले ही बहुत डैमेज कर चुके थे।
उनको हटाने से पहले केंद्रीय गृह सचिव रहे अजय कुमार भल्ला को वहां राज्यपाल बना कर भेजा गया। बीरेन सिंह के हटने के बाद भल्ला की कमान में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। उसी भरोसे में अमित शाह ने आठ मार्च को आवागमन सामान्य बनाने का ऐलान किया।
लेकिन राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल भी कुछ नहीं कर पाए। इस बीच फिर से सरकार बनाने की कोशिश होती रही। मैती विधायकों की आम राय से सरकार गठन का प्रयास हुआ लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
इस तरह अब तक हुए तमाम प्रयास और प्रयोग विफल हो गए हैं। इसका कारण यह है कि किसी में ईमानदारी नहीं थी। यह भावना नहीं थी जातीय हिंसा खत्म करके हालात सुधारने हैं। (manipur violence)
सिर्फ एक मणिपुर का मामला नहीं (manipur violence)
नए प्रयोग के तहत सुप्रीम कोर्ट के छह जज मणिपुर जा रहे हैं। 22 और 23 मार्च को नेशनल लीगल सर्विस ऑथोरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह मणिपुर में मौजूद रहेंगे। \ (manipur violence)
ये जज लोगों को मुफ्त कानूनी सेवा और मेडिकल सेवा उपलब्ध करवाने के लिए किए जा रहे उपायों का जायजा लेंगे। यह भी कहा गया है कि मारे गए लोगों के परिजनों और विस्थापितों को मुफ्त लीगल सेवा के प्रति जागरूक करने और हिंसा पीड़ितों के लिए राहत कार्यों को बढ़ावा देने के लिए यह कार्यक्रम है।
यह एक अच्छी पहल है और इसके पीछे मंशा भी ठीक है। लेकिन सामाजिक स्तर पर जितना अविश्वास बढ़ा है और जिस तरह दोनों समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं उसमें बड़ी राजनीतिक पहल की जरुरत है। (manipur violence)
यह सिर्फ एक मणिपुर का मामला नहीं है। इसके साथ मिजोरम का मामला भी है, जहां बड़ी संख्या में मणिपुर के विस्थापितों ने शरण ली है। सीमा पार यानी म्यांमार से होने वाली घुसपैठ की मामला भी उससे जुड़ा है। सरकार पूर्वोत्तर में शांति बहाली के दावे कर रही है लेकिन वहां के हालात अलग कहानी बयान कर रहे हैं।