New Faces of BJP: इंदिरा गांधी ने असली कांग्रेस को पार्टी तोड़ कर खत्म किया था। वही नरेंद्र मोदी ने बिना कुछ किए ही भाजपा और संघ परिवार को अपने रंग में डाला है। सौ टका सत्ता आश्रित बना दिया है।
सोचें, दिल्ली में मुख्यमंत्री के नए चेहरे के हवाले भाजपा के कुल नए अर्थ पर। भाजपा अब क्या है? दो, सिर्फ दो नेताओं के करिश्मे पर आश्रित पार्टी। एक, 74 वर्षीय नरेंद्र मोदी और दूसरे 52 वर्षीय योगी आदित्यनाथ।
दोनों की उम्र में 22 वर्ष का फर्क। ऐसे में नरेंद्र मोदी यदि 2034 तक प्रधानमंत्री रहते है (कोई अनहोनी नहीं, मोरारजी देसाई 81 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने थे और 28 महीने पद पर रह कर 84 वर्ष की उम्र में रिटायर हुए थे) तब वे 84 साल के होंगे और योगी आदित्यनाथ 64 वर्ष के।
तब उनका विकल्प योगी को उत्तराधिकार सुपुर्द करने का होगा। यदि मोदी को इतने लंबे समय तक राज करना है तो मेरा मानना है कि वे उत्तर प्रदेश और हिंदी भाषी भक्तों के लिए योगी को लगातार मुख्यमंत्री बनाए रखेंगे। यह भारतीय राजनीति का नया कीर्तिमान होगा। (New Faces of BJP)
साथ ही भारत के भविष्य का अकल्पनीय सिनेरियो भी। क्योंकि मोदी के हिंदुत्व और योगी के हिंदुत्व के तीस-चालीस साल में भारत अंदरूनी तौर पर जो बनेगा, वह छुपा नहीं रहना है।
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मोदी ने भाजपा का चेहरा-चरित्र ही बदल डाला (New Faces of BJP)
संभवतया यह सिनेरियो नामुमकिन लग रहा हो। तब जरा नई भाजपा पर गौर करें? सन् 2019 के बाद से आरएसएस को दरकिनार कर प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा का चेहरा, चरित्र ही बदल डाला है।
भारत की पार्टियों और आजाद भारत का इतिहास है कि केंद्र सरकार की सत्ता तभी संभव है जब राष्ट्रीय चेहरों की धुरी पर पार्टी का विकास हो। साथ ही क्षत्रपों की स्वयंभू ताकत पर पार्टी संगठित हो।
जनसंघ-भाजपा के इतिहास में श्यामा प्रसाद, बलराज मधोक, वाजपेयी यदि धुरी थे तो उसकी पहली दिल्ली की सत्ता में लोकल नेताओं (पंजाबी तिकड़ी- मल्होत्रा, साहनी, खुराना) का योगदान था। (New Faces of BJP)
अटल बिहारी वाजपेयी से हिंदी प्रदेशों में गूंज थी तो साथ में भैरो सिंह शेखावत, शांता कुमार, मंगल सेन, माधवकांत त्रिपाठी, कैलाशपति मिश्र, कैलाश जोशी, केशुभाई, जगन्नाथ राव जोशी, येदियुरप्पा, मनोहर पार्रिकर, कल्याण सिंह, प्रमोद महाजन की जातीय-लोकल क्षत्रप राजनीति से भी जनसंघ-भाजपा की सत्ता सीढ़ियां बनी थी।
संगठन के चेहरों में दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, सुंदर सिंह भंडारी, कुशाभाऊ ठाकरे, लालकृष्ण आडवाणी आदि से संगठन को गति थी लेकिन जनभावना का ग्राफ तो चेहरों से ही बना था। (New Faces of BJP)
भाजपा के हिंदु आइकॉन चेहरे
वह सब क्या भाजपा में अब है? भाजपा में जनता से सरोकार के चेहरे कितने हैं? (New Faces of BJP)
जरा गौर करें इन चेहरों पर- भूपेंद्र भाई पटेल (गुजरात, उम्र 62 वर्ष), मोहन यादव (मध्य प्रदेश, उम्र 59), देवेंद्र फड़नवीस (महाराष्ट्र, उम्र 54), मोहनचरण मांझी (ओडिसा, उम्र 53), भजनलाल शर्मा (राजस्थान, उम्र 58), पुष्कर सिंह धामी (उत्तराखंड, उम्र 49), नायब सिंह सैनी (हरियाणा, उम्र 55), प्रमोद सावंत (गोवा, उम्र 51), विष्णुदेव साय (छतीसगढ़, उम्र 60), रेखा गुप्ता (दिल्ली, उम्र 50) भाजपा के अब सत्तावान चेहरे हैं।
बाकी में पेमा खांडू (अरूणाचल, उम्र 45), हिमंत बिस्वा सरमा (असम, उम्र 56) और त्रिपुरा के मानिक शाह कांग्रेस से आयातित हैं। आखिर में उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ (उम्र 52 वर्ष) हैं, जिसके एक हिंदू आईकॉन के चेहरे के आगे सभी जीरो हैं!
तो पहली बात नरेंद्र मोदी और प्रदेश मुख्यमंत्रियों की आयु व कद में इतना गैप है कि कोई दिल्ली में प्रधानमंत्री पद की कुर्सी की महत्वाकांक्षा पाल ही नहीं सकता। सभी नरेंद्र मोदी के द्वारा बनाए गए हैं। (New Faces of BJP)
इन्हे प्रदेशो के स्थापित, पुराने चेहरों को हाशिए में डाल कर बनाया गया है तो जाहिर है सभी राज्यों में भाजपा का पूरा ढांचा दिल्ली की खड़ाऊ है।
मोदी के इंजन के पीछे, निराकार ड्राइवरों के घसीटते इंजन हैं। सभी नरेंद्र मोदी पर आश्रित। उन्हीं द्वारा, उन्हीं के लिए, उन्हीं को समर्पित चेहरे हैं। किसी का अपना कोई स्वतंत्र वजूद नहीं। ऐसे ही लगभग केंद्रीय कैबिनेट में स्थिति है।
नेहरू, इंदिरा, वाजपेयी किसी के भी राज में नहीं (New Faces of BJP)
ऐसा भारत की राजनीति में पहले कभी नहीं हुआ। नेहरू, इंदिरा, वाजपेयी किसी के भी राज में नहीं। इसलिए यदि नरेंद्र मोदी अपना राज 2034 तक चलाए रखें तो कोई बाधा नहीं है।
यह गलतफहमी नहीं रखें कि यह नई राजनीति आरएसएस अनुसार है। जैसा मैंने ऊपर लिखा है, सन् 2019 से मुख्यमंत्रियों, सत्ता के केंद्रों का फैसला सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी की रणनीति से है। (New Faces of BJP)
इसलिए जो नया (नई पीढ़ी, नया ढांचा) होता लग रहा है वह संघ-भाजपा के दीर्घकालीन उद्देश्यों, या किसी उत्तराधिकारी योजना में नहीं है, बल्कि एक ही ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत की स्थायी व्यवस्था की खातिर है।
कल्पना कर सकते हैं कि जिस दिन गोवर्धन पर्वत के नीचे से ऊंगली हटी तो भाजपा का होगा क्या! हालांकि यह भी नोट रखना चाहिए कि राजनीति में मनुष्य सोचता क्या है और होता क्या है! समय और घटना किसी के बस में नहीं होती।
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