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महाकुंभ से गैरहाजिर विपक्ष

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Maha Kumbh : कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने सिर्फ महाकुंभ का नैरेटिव मिस नहीं किया, बल्कि यहां भी ऐतिहासिक गलती कर बैठे, जिससे समूचा विपक्ष आम हिंदुओं के निशाने पर आया। विपक्ष  के चुनिंदा नेताओं को छोड़ दें तो ज्यादातर नेता महाकुंभ से गैरहाजिर रहे। किसी ने उस विशाल आयोजन का हिस्सा बनने की कोशिश नहीं की और न सामान्य हिंदू की तरह महाकुंभ में जाकर त्रिवेणी के संगम पर डुबकी लगाने का जतन किया। इतना ही जिस दिन से महाकुंभ शुरू हुआ उस दिन से कांग्रेस का इकोसिस्टम प्रचार करता रहा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा स्नान करने आएंगे। (Maha Kumbh)

पार्टी की ओर से कई बार ढके छिपे तरीके से कार्यक्रम भी बताया गया। एक बार तो प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने एक कार्यक्रम में एक तारीख बताते हुए कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बारे में कहा कि हम सब प्रयागराज आ रहे हैं। लेकिन राहुल और प्रियंका स्नान करने नहीं गए। इसके बाद कांग्रेस के नेता बताते रहे कि प्रियंका ने कब संगम में डुबकी लगाई थी और सोनिया गांधी कब पवित्र स्नान के लिए पहुंची थीं। कुछ अति उत्साही कांग्रेस समर्थक सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स ने पंडित नेहरू की भी महाकुंभ में स्नान करते हुए तस्वीरें साझा कीं। लेकिन महाकुंभ इतिहास तो है यह तो जितना इतिहास है उतना ही समकालीन भी है। कांग्रेस हो सकता है कि इतिहास में इसका हिस्सा रही लेकिन समकालीन घटनाक्रम का भी तो हिस्सा बनना होगा।

अगर कांग्रेस नेताओं को महाकुंभ नहीं जाना था तो जाने की झूठी खबरों का प्रचार भी नहीं कराना चाहिए था। अगर प्रचार कराया तो वहां चले जाना चाहिए था, उससे देश भर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मुंह नहीं छिपाना पड़ता। गांवों में उनसे जवाब देते नहीं बन रहा है। वे किसी तरह पुरानी बातों से बचाव कर रहे हैं। सोशल मीडिया में कुछ समझदार लोग कह रहे हैं कि 12 साल पहले 2013 के महाकुंभ में नरेंद्र मोदी या योगी आदित्यनाथ या अमित शाह में से कोई भी डुबकी लगाने नहीं गया था। लेकिन क्या तब सोनिया, राहुल और प्रियंका गए थे? अगर गए थे तो बताना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि जो सत्ता में होता है वही कुंभ जाता है! (Maha Kumbh)

ऊपर से कोढ़ में खाज की तरह कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता महाकुंभ को लेकर अनाप शनाप बयान देते रहे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठा दिया कि महाकुंभ जाने से क्या देश की गरीबी खत्म हो जाएगी। किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन से देश की गरीबी नहीं खत्म होने वाली है। इंदिरा गांधी ने 1971 में गरीबी हटाओ का नारा दिया था और उसके बाद 30 साल कांग्रेस शासन में रही तो कहां गरीबी मिट गई। लाखों लोग उर्स करने जाते हैं या हज करने जाते हैं तो उससे भी न गरीबी मिटती है और न जहालत खत्म होती है। लेकिन जब उस पर इस तरह के सवाल नहीं उठाए जाते हैं तो महाकुंभ पर भी ऐसे सवाल उठाने की कोई तुक नहीं है। महाकुंभ में 66 करोड़ लोग पहुंचे, यह उनके लिए गरीबी मिटाने या अशिक्षा दूर करने का विषय नहीं था। यह उनकी आस्था का विषय था, जिसका कांग्रेस को सम्मान करना चाहिए। कम से कम सार्वजनिक रूप से तो सम्मान करे! खड़गे और राहुल गांधी मन में चाहे जो भाव रखते हों लेकिन राजनीति कर रहे हैं पार्टी चल रहे हैं तो सार्वजनिक बयानों में सावधान रहने की जरुरत होती है। (Maha Kumbh)

महाकुंभ पर विवादित बयान देकर विपक्ष ने खुद को मुश्किल में डाला (Maha Kumbh)

राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद ने कह दिया कि कुंभ फालतू है। उनको महाकुंभ ((Maha Kumbh)) की व्यवस्था पर सवाल उठाना था लेकिन वे महाकुंभ को ही फालतू की बात बता रहे थे। यह समझे बगैर कि उत्तर प्रदेश के अलावा सबसे ज्यादा लोग बिहार से ही महाकुंभ जा रहे थे। उनकी जाति के कट्टर समर्थक भी कुंभ जा रहे थे। उसकी आस्था को इस तरह से चैलेंज करना कोई अच्छी राजनीति नहीं है। सोशल मीडिया के इस दौर में ऐसी बातों का तुरंत प्रसार होता है। यही ममता बनर्जी ने भी किया। उन्होंने भी महाकुंभ को लेकर विवादित बयान दिया। ममता ने महाकुंभ को ‘मृत्युकुंभ’ कहा। उन्होंने इसके 144 वाले संयोग पर सवाल उठाया वह अलग बात है लेकिन महाकुंभ को ‘मृत्युकुंभ’ कह कर उन्होंने ऐसा विवाद खड़ा किया, जिस पर समूचे विपक्ष को सफाई देनी पड़ी। सोचें, खुद ममता बनर्जी अपने यहां कुंभ की ही तरह का बड़ा गंगासागर मेला आयोजित करती हैं। अखबारों में उसके बड़े बड़े विज्ञापन देती हैं। लोगों को हर साल गंगासागर मेले में आने के लिए आमंत्रित करती हैं लेकिन 12 साल पर एक बार होने वाले पूर्णकुंभ के लिए ऐसे बयान देती हैं, जिससे दुर्भावना झलकती है। हो सकता है कि प्रदेश की राजनीति में उनको इसका कोई बड़ा नुकसान हो लेकिन वे जिस विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं उसको तो नुकसान होगा।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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