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बिहारी उप राष्ट्रपति के कयास

सोमवार, 21 जुलाई को जगदीप धनखड़ का इस्तीफा हुआ तो सर्वाधिक पतंगें बिहार से उड़ीं। अभी तक बिहार से ही अगला उप राष्ट्रपति बनने के दावे किए जा रहे हैं। चूंकि बिहार में विधानसभा चुनाव हैं और मोदी-शाह पूरा दम लगा रहे हैं कि किसी तरह से बिहार में भाजपा का सीएम बने तो सबसे ज्यादा कयासबाजी वहीं से होनी थी। इससे एक दिन पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कह दिया था कि नीतीश को अपने बेटे निशांत कुमार को आगे लाना चाहिए। उससे भी अटकलों को बल मिला। जैसे ही धनखड़ का इस्तीफा हुआ वैसे ही पटना में आग की तरह यह अफवाह फैली की नीतीश कुमार देश के अगले उप राष्ट्रपति हो रहे हैं। उसके आगे पूरा रोडमैप जारी कर दिया गया। कहा गया कि नीतीश उप राष्ट्रपति होंगे और बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री बनेगा। उसके साथ ही नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा और वे जनता दल यू की कमान भी संभाल लेंगे।

नीतीश की सेहत कैसी है और उनके बेटे की राजनीतिक समझ और अनुभव क्या है, यह सब जानते हैं फिर भी कई दिनों तक यह पतंगबाजी होती रही। हकीकत यह है कि इनमें से कुछ नहीं होने वाला है। नीतीश कुमार किसी हाल में बिहार नहीं छोड़ने वाले हैं और भाजपा को भी यह हकीकत पता है कि नीतीश से मुख्यमंत्री की कुर्सी छुड़ाना कितना मुश्किल है। भाजपा को यह हकीकत भी पता है कि अगर नीतीश अभी तस्वीर से हटे तो फिर एनडीए की संभावना शून्य होगी। दूसरा कोई चेहरा भाजपा और जदयू दोनों के पास नहीं है, जिसे नीतीश की जगह प्रोजेक्ट किया जाए। अगर नीतीश हटे तो स्वाभाविक रूप से तेजस्वी यादव की कमान बनेगी और पिछले 11 साल के अपने अनुभव के आधार पर वे ओबीसी के नेता के तौर पर स्थापित होंगे। इससे भाजपा का सपना स्थायी रूप से टूटेगा।

इस राजनीतिक कारण के अलावा यह भी हकीकत है कि उप राष्ट्रपति का पद भले सजावटी होता है, जिसे गाहे बगाहे खत्म करने की बात होती रहती है लेकिन उसकी एक बड़ी जिम्मेदारी राज्यसभा के सभापति के तौर पर होती है। राज्यसभा में सरकार को हमेशा बहुमत का जुगाड़ करना होता है और तमाम बड़ी जीतों के बावजूद भाजपा के अभी तक एक सौ सांसद नहीं हुए हैं। वह बहुमत के आंकड़े से पीछे है। राज्यसभा के सभापति के नाते उप राष्ट्रपति का काम बहुत जटिल और दबाव वाला होता है। नीतीश अब वह दबाव झेलने की स्थिति में नहीं हैं। बिहार विधानसभा में भी वे अब कभी भी विषय पर नहीं बोल पाते हैं और सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति कम से कम कर दी गई है। जहां जाते हैं वहां रटी हुई चार छह लाइनें बोलते हैं। वे कभी किसी का नाम भूल जाते हैं, किसी के भी पैर छूने लगते हैं, किसी को कुछ भी बोल देते हैं ऐसे व्यक्ति को राज्यसभा का सभापति नहीं बनाया जा सकता है। उनके बेटे की उम्र 44 साल हो गई है और उनका कोई राजनीतिक प्रशिक्षण नहीं हुआ है। इसलिए उप मुख्यमंत्री बनाना या पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना संभव नहीं है।

नीतीश और निशांत को लेकर चल रहा कयास जब थमा तो रामनाथ ठाकुर को लेकर पतंगबाजी शुरू हो गई। रामनाथ ठाकुर के पिता कर्पूरी ठाकुर को पिछले ही साल भारत रत्न मिला है। उसके बाद जब जनता दल यू की वापसी हुई एनडीए में और वह सरकार में शामिल हुई तो ठाकुर को केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया गया। वे अति पिछड़ा समाज की नाई जाति से आते हैं। यह संयोग भी था कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद रामनाथ ठाकुर के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और कुछ अन्य नेताओं की एक मीटिंग हुई। उसके बाद तो अफवाहों को पंख लग गए। कहा जाने लगा कि बिहार में अति पिछड़ा वोट साधने के लिए रामनाथ ठाकुर को उप राष्ट्रपति बनाया जा रहा है। अगर रामनाथ ठाकुर नहीं बनते हैं तो फिर कौन?

इस सवाल का जवाब राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश में देखा जा रहा है। बिहार के लोग छोड़ने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने हरिवंश को उप राष्ट्रपति बनाना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि वे सरकार के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं। उप सभापति के नाते वे कई बरसों से राज्यसभा का संचालन कर रहे हैं। उनके बारे में यह कहा जा रहा है कि बिहार से कोई राजपूत मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज राजपूतों को उनके नाम पर खुश किया जा सकता है। इसके अलावा उनके नाम से तीन राज्यों की राजनीति सधने का दावा किया जा रहा है। वे उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। उन्होंने झारखंड में लंबे समय तक पत्रकारिता की है और बिहार से दूसरी बार राज्यसभा के सांसद बने हैं। रामनाथ ठाकुर और हरिवंश वाली कयासबाजी अभी तक चल रही है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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