Wednesday

30-04-2025 Vol 19

एक नेतन्याहू और घायल इजराइल!

815 Views

हां, इजराइल घायल है, सदमें में है, खौफ में है और दुनिया यह सोच हैरान है कि यह देश भला इतना सोया हुआ और लापरवाह कैसे? वह भी तब जब प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनकी सत्ता साझेदार कट्टर यहूदी पार्टियां इस हवाबाजी के साथ थे कि वे इजराइली सुरक्षा के बाहुबली हैं। वे उदारवादी नहीं, बल्कि इस्लामी आतंकी हमास व हिज्बुल्ला जैसों को ईंट के बदले पत्थर से जवाब देने वालेहै। नेतन्याहू मतलब छप्पन इंची छाती का यहूदी नेता। लेकिन आज हकीकत? अपना मानना है सात अक्टूबर 2023 की तारीख इजराइल का न केवल 9/11 है, बल्कि वैश्विक पैमाने पर इस्लाम बनाम यहूदी, इस्लाम बनाम पश्चिम, इस्लाम बनाम शेष धर्मों के सभ्यतागत संघर्ष की वह नई चिंगारी है, जिससे विश्व राजनीति में यूक्रेन-रूस युद्ध जैसा मोड़ आए। और यूरोप के बाद अरब-खाड़ी-पश्चिम एशिया में भी भारी उथल-पुथल।

कल्पनातीत है यह सोचना की इजराइल को अपने पिछवाड़े की आतंकी तैयारियों का भान नहीं हुआ, जबकि दुनिया और खुद इजराइल दशकों से आतंकवाद झेलता हुआ है। सात अक्टूबर 2023 को आतंकियों ने जब सैकड़ों की संख्या में इजराइल पर धड़ाधड़ रॉकेट दागे तो उसके नेता और अधिकारी हैरानी में कहते हुए थे कि- हमें नहीं पता कि ये कैसे हो गया।

वह इजराइल, वह मोसाद, जिससे दुनिया के देश खुफियागिरी के पाठ पढ़ते हैं, जो उन सॉफ्टवेयर (पैगासस आदि), उपकरणों का निर्यातक है, जिससे भारत सहित दुनिया भर के देशों में नागरिक अधिकारों और लोगों की निजता का हनन होता है। वह इजराइल, जिससे अरब देशों में खौफ रहा है। वह इजराइल, जिसने ठीक पचास साल पहले 1973 में मिस्र-सीरिया की साझा अरब सेनाओं के योम किप्पूर युद्ध की अप्रत्याशितता के बावजूद तुरंत जवाबी मुकाबले में अपने को झोंक दिया था। वह इजराइल, जिसने एक दशक से हमास, हिज्बुल्ला को हर तरह से ठोका और पस्त किया लेकिन वह नहीं समझ पा रहा है कि ‘ये कैसे हो गया’।

जवाब है नेतन्याहू की सत्ता भूख और इजराइली जनता का दो खेमों में बंटा हुआ होना। नेतन्याहू बतौर लिकुड नेता उन कट्टर यहूदियों के वोटों व उनकी प्रतिनिधि पार्टियों के एलायंस से प्रधानमंत्री बनते रहे हैं, जिन्होंने धर्म और राष्ट्रवाद में यहूदियों को ही दो हिस्सों में बांट दिया। हां, हमास के हमले के बाद देश के सभी यहूदी अभी जरूर एकजुट हैं लेकिन हमले से पहले इजराइली लोग दो खेमों में बंटे हुए थे। नेतन्याहू समर्थक और नेतन्याहू विरोधी। कट्टरपंथी बनाम उदारवादी। जैसे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप बनाम जो बाइडेन। भारत में मोदी भक्त बनाम मोदी विरोधी। और यह सत्य भी नोट रखें कि विश्व राजनीति में नेतन्याहू, डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी का साझा चिन्हित रहा है।

जाहिर है इजराइली यहूदी हाल के सालों में विभाजित रहे हैं। नेतन्याहू ने सत्ता में बने रहने की भूख में कट्टरपंथियों को मनमानी करने दी। बात-बेबात फिलस्तीनी इलाके में तेवर दिखाते रहे। कभी यहूदी बस्तियों को फैलाने की जिद्द में तो कभी सीमा पार के हमास और हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर हमले व कभी अल अक्सा मस्जिद इलाके में उकसाने वाली हरकतों से नेतन्याहू सरकार का मैसेज था कि वे ही हैं जो यहूदी हितों के लिए मर मिटने वाले हैं। प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कट्टरपंथियों के चंगुल में ऐसा मकड़जाल बनाया, जिससे वे जहां अदालत में भ्रष्टाचार मामले में कटघरे में हैं तो वही अपने वर्चस्व के लिए संविधान व व्यवस्था से भी खिलवाड़ करते हुए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट याकि अदालती स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए जो संविधान संशोधन बनाया है उससे न केवल इजराइल में उनका स्थायी विरोध है, बल्कि दुनिया में भी बदनामी है।

तभी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उनसे दूरी बनाई। यहूदी थिंक टैंक नेतन्याहू सरकार के आलोचक हुए। नेतन्याहू ने अपनी सरकार को अछूत और लोकतंत्र के नाम पर कलंकित किया। उनके खिलाफ विरोध आंदोलन इतने सघन हैं कि रिजर्व आर्मी के लोग भी विरोधी प्रदर्शनों व हड़ताल पर उतरे। एयरपोर्ट कंट्रोलरों से ले कर सुरक्षाकर्मी सभी ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन-धरना में हिस्सा लिया। इजराइल अंदरूनी तौर पर बिखरा और विभाजित हुआ।

इसलिए ‘हमें नहीं पता कि ये कैसे हो गया’ की जिम्मेवारी एक अकेले नेतन्याहू की बनती है। नेतन्याहू अपनी सत्ता, अपनी तिकड़मों में देश और उसकी व्यवस्था को ऐसा बेसुध व लापरवाह बना बैठे, जिससे सरकार, सुरक्षा बल और खुफिया एजेंसियां आदि किसी को भी नहीं सूझा कि दुश्मन इसका फायदा उठा सकता है।

सही में आतंकी फिलस्तीनी संगठन हमास का सात अक्टूबर 2023 का आपरेशन ‘अल अक्सा फ्लड’ इजराइल की अंदरूनी स्थितियों का परिणाम है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू की बनवाई अंदरूनी कलह का नतीजा है। संदेह नहीं कि इजराइल के बाहुबल के आगे आतंकी टिक नहीं पाएंगे। यहूदी इकठ्ठे हो गए हैं। राष्ट्रपति बाइडेन और पश्चिमी देश इजराइल के पीछे आ गए हैं। मगर इजराइल की इमेज, धमक को जो नुकसान होना था वह तो हो चुका है। 1967 और 1973 की अरब-इजराइल लड़ाई से इजराइल का जो वैश्विक रूतबा बना था वह सात अक्टूबर 2023 से अब धूल धसरित है। कौन अब मोसाद को सर्वाधिक काबिल खुफिया एजेंसी मानेगा? कौन अब यह मानेगा कि सिर्फ 25 मील लंबी और छह मील चौड़ी गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के 22 लाख लोगों का इजराइली पिछवाड़ा हमेशा इजराइल की दबिश में रहने वाला है? हमास अब न केवल 55 लाख फिलस्तीनियों के दिलों पर राज करते हुए है, बल्कि दुनिया भर के उन इस्लामी उग्रवादियों, कट्टरपंथियों, आतंकियों और ईरान से ले कर चीन जैसे उन तमाम देशों का महानायक है, जो पश्चिमी सभ्यता और यहूदियों से किसी न किसी बात पर पंगा ठाने हुए हैं।

कहने को नेतन्याहू ने कहा है कि हमास को हम मिट्टी में मिला देंगे। लेकिन गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में जिस तादाद में फिलस्तीनी लोग हमास के पक्ष में सड़कों पर उमड़े हैं और आतंकियों ने इजराइली बंधकों को वहां के अपने ठिकानों में छुपाया है तो उस रियलिटी में इजराइली सैनिक कितनों को मिट्टी में मिला सकते हैं? हमास का आपरेशन फिलस्तीनियों को, इस्लामी देशों को और दुनिया को मैसेज देने के लिए है। यह इस्लामी आतंकियों में जान फूंकने के लिए है। यह इजराइल के अरब देशों से बनते रिश्तों को तुड़वाने वाला है।

प्रधानमंत्री नेतन्याहू को पहले यहूदी बंधकों को छुड़वाना है। फिर हमास और उनके आतंकियों के ठिकाने खत्म करने हैं। ऐसा करते हुए वे गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करें, वहां की कथित स्वायत्त व्यवस्था को मिटाएं यह संभव नहीं और यदि ऐसा कर भी दें तब 22 लाख लोगों की आबादी को पिंजरे में बंद करके रखना और मुश्किल होगा।

जाहिर है सात अक्टूबर 2023 का दिन देर-सबेर प्रधानमंत्री नेतन्याहू के लंबे मगर कलंकित अध्याय के खत्म होने का प्रारंभ है तो वही बतौर राष्ट्र-राज्य इजराइल को नए सिरे से सोचना होगा कि फिलस्तीनी मसले का वह क्या समाधान निकले, जिससे हमास और हिजबुल्ला फिलस्तीनी संघर्ष के लड़ाके न माने जाएं, बल्कि आतंकी कहे जाएं? कटु सत्य है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के नेता भले हमास को आतंकी करार दे रहे हैं लेकिन ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ आदि उन्हें फिलस्तीनी संघर्ष के लड़ाकू, मिलिटेंट लिख रहे हैं। सो, इजराइल पर हमास ने जो हमला बोला है और उसके समर्थन में फिलस्तीनी जैसे कूदे हैं तो नेतन्याहू से ले कर इजराइली प्रभु वर्ग को समझ आ रहा होगा कि अब नए सिरे से नया सोचना होगा। नया कुछ करना होगा।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *