nayaindia अमेरिका यात्रा: भारतीय समाज की उत्साही तैयारी

कुप्पा-कुप्पा हो रहे आराधकों के नाम

अमेरिका यात्रा

आराधक नृत्यलीन हैं कि बाइडन द्वारा दिए गए राजकीय भोज में भारतीय धन्ना सेठों को भी बुलाया गया था। मुकेश और नीता अंबानी, आनंद महिंद्रा, बेला और रेखा बजारिया, रौनक देसाई और बंसरी शाह मौजूद थे। बाइडन चतुर हैं। उन्होंने इंदिरा नूयी और सुंदर पिचई जैसे बहुत-से मशहूर चेहरों को बुलाया तो किसान आंदोलन में लंगर चलाने वाले जिन दर्शन सिंह धालीवाल को अमेरिका से दिल्ली पहुंचने पर विमानतल से लौटा दिया गया था, उन्हें भी भोज में बुलाया था।

पचास साल पहले एक फ़िल्म आई थी – ‘अनहोनी’। वर्मा मलिक ने उस के लिए एक गीत लिखा था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने उस का संगीत बुना था। आशा भोंसले ने उसे आवाज़ दी थी। खलनायिका बिंदु पर उसे फ़िल्माया गया था – ‘मैं ने होठों से लगाई तो… मुझे हिचकी जो आई तो… मैं ने आंख जो मिलाई तो… हंगामा हो गया’। इस फ़िल्म के आने से दस साल पहले राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अमेरिका ने राजकीय यात्रा पर बुलाया था, लेकिन तब भारत में कोई गदगद-हंगामा नहीं हुआ। इस फ़िल्म के आने के 36 साल बाद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अमेरिका ने राजकीय यात्रा पर आमंत्रित किया, मगर तब भी देश में कोई पुलकित-हंगामा नहीं हुआ। पर इस फ़िल्म के आने के पूरे पांच दशक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को अमेरिका ने राजकीय यात्रा पर बुलाया तो देश भर में ऐसा आल्हादित हंगामा प्रायोजित हुआ कि सब दंग रह गए।

देश तो देश, अमेरिका के भारतवंशियों को भी ताली-थाली बजाने के लिए प्रेरित करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रही। उत्सव-प्रबंधन के हुनरमंदों ने नरेंद्र भाई की यात्रा को ‘ऐतिहासिक’, ‘अविस्मरणीय’ और ‘न भूतो, न भविष्यति’ बताने में दिन-रात एक कर दिए। अमेरिकी मीडिया और विश्व मीडिया ने क्या किया, क्या नहीं, किसे मालूम, मगर हमारे मीडिया ने इस यात्रा के बहाने नरेंद्र भाई के कसीदे लटूम-लटूम कर पढ़े। हमारे मीडिया-सूरमा अमेरिका न गए होते तो भारतवासी इस जानकारी से धन्य होने से वंचित रह जाते कि नरेंद्र भाई के खाने के लिए जो बाइडन ने मसालेदार बाजरा, मकई दाने का सलाद, भरवां मशरूम, तरबूज, गगनधूलि और झरबेरी का गुलाब और इलायची में निचुड़ा हुआ केक, इटालियन रिसोट्टो, वग़ैरह-वगै़रह बनवाया है।

नरेंद्र भाई पहले भी सात बार अमेरिका जा चुके हैं। अमेरिका शुरू से उन्हें इतना भाता है, इतना भाता है कि मौक़ा मिलते ही वे वहां जाने को तैयार रहते हैं। प्रधानमंत्री बनने के चार महीने के भीतर ही वे अमेरिका पहुंच गए थे। इस बार चूंकि राजकीय यात्रा पर गए थे तो ज़ाहिर है कि इस की एक अलग अहमियत तो थी ही। आपदा तक को अवसर में तब्दील कर लेने की सोच रखने वाले नरेंद्र भाई इस अवसर को तिलस्मी जामा पहनाने से भला क्यों चूकते? सो, उन्होंने ऐसी बनैटी घुमाई कि कोई पूछ ही नहीं रहा है कि हुजूर धूमधड़ाका तो अच्छा रहा, मगर ले कर क्या लौटे हैं?

जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री रहते हुए चार बार अमेरिका गए। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तीन-तीन बार अमेरिका गए। अटल बिहारी वाजपेयी चार बार अमेरिका गए। मनमोहन सिंह तो आठ बार अमेरिका गए। पामुलपर्ति वेंकट नरसिंहराव दो बार अमेरिका गए। मोरारजी देसाई और इंद्रकुमार गुजराल एक-एक बार अमेरिका गए। नेहरू जी, इंदिरा जी, मोरारजी, राजीव, नरसिंहराव और अटल जी को अमेरिका ने कभी राजकीय यात्रा पर नहीं बुलाया। नरेंद्र भाई तीसरे भारतीय नेता हैं, जिन्हें इस सम्मान से नवाज़ा गया है। लेकिन अमेरिका चीन के तीन नेताओं को और पाकिस्तान के भी तीन नेताओं को यह ‘सम्मान’ दे चुका है। पाकिस्तान के अय्यूब ख़ान को तो उस ने पांच साल के भीतर दो बार राजकीय यात्रा कराई थी। सो, अमेरिका कब, किसे और क्यों राजकीय यात्रा के आमंत्रण का ‘सम्मान’ देता है, इस की लंबी इतिहास-गाथा है।

अमेरिका और लंदन जाना भारवासियों के मन में एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर लेने की तरह दशकों से बहुत भीतर तक धंसा हुआ है। इतने भीतर तक कि अब जब वहां जाना-आना कोई अनोखी बात नहीं रह गई है, तब भी जा कर आने वाले महीनों तक वहां के किस्से सुनाने और सोशल मीडिया पर तसवीरें बरसाने में मग्न रहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चार वर्ष के अपने कार्यकाल में एक देश के शासनाध्यक्ष को एक बार से ज़्यादा राजकीय यात्रा पर नहीं बुला सकता है। दोनों हाथ उठा कर ‘अब की बार, ट्रंप सरकार‘ का नारा बुलंद करने के बावजूद डॉनल्ड ट्रंप ने हमारे नरेंद्र भाई को राजकीय यात्रा पर नहीं बुलाया था। सो, अब जब बाइडन ने बुलाया तो नरेंद्र भाई के आराधक कुप्पा-कुप्पा क्यों न हों?

आराधक नृत्यलीन हैं कि बाइडन द्वारा दिए गए राजकीय भोज में भारतीय धन्ना सेठों को भी बुलाया गया था। मुकेश और नीता अंबानी, आनंद महिंद्रा, बेला और रेखा बजारिया, रौनक देसाई और बंसरी शाह मौजूद थे। बाइडन चतुर हैं। उन्होंने इंदिरा नूयी और सुंदर पिचई जैसे बहुत-से मशहूर चेहरों को बुलाया तो किसान आंदोलन में लंगर चलाने वाले जिन दर्शन सिंह धालीवाल को अमेरिका से दिल्ली पहुंचने पर विमानतल से लौटा दिया गया था, उन्हें भी भोज में बुलाया था।

प्रसंगवश जान लीजिए कि विश्व-नेताओं को भारत की राजकीय यात्रा पर बुलाने के मामले में नरेंद्र भाई का दिल एकदम दरिया है। वे नौ साल में अब तक साठ से ज़्यादा शासनाध्यक्षों को राजकीय यात्रा करा चुके हैं। औसतन हर पौने दो महीने में वे किसी-न-किसी को राजकीय यात्रा पर निमंत्रित कर लेते हैं। अमेरिका के बराक ओबामा को 2015 में और ब्रिटेन की थेरेसा मे को 2016 में राजकीय यात्रा पर भारत ने आमंत्रित किया ही था, मगर वियतनाम से ले कर चीन तक, ऑस्ट्रेलिया से ले कर कनाडा, बहरीन से ले कर जर्मनी, दक्षिण कोरिया से ले कर मालदीव, सेशेल्स से ले कर मोजाम्बिक, तंजानिया से ले कर अफ़गानिस्तान, कतर से ले कर श्रीलंका, सिंगापुर से ले कर न्यूजीलैंड, तज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, इंडोनेशिया, इज़राइल, नेपाल, म्यांमार, थाइलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, आदि-इत्यादि के तमाम राष्ट्राध्यक्षों को नरेंद्र भाई राजकीय यात्रा पर बुला चुके हैं।

अमेरिका में बाइडन के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में हमारे प्रधानमंत्री ने दो सवालों के जवाब देने की कृपा भी बरसाई। एक सवाल भारतीय संवाद एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के संवाददाता को पूछने दिया गया और दूसरा अमेरिकी समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जनरल की संवाददाता को। पीटीआई के संवाददाता ने पर्यावरण बदलाव के बारे में सवाल पूछा। इस से ज़्यादा की उम्मीद उन से करना भी बेकार था। वॉल स्ट्रीट की संवाददाता ने अल्पसंख्यकों से भेदभाव पर सवाल पूछा। उन से भी इस से कम की उम्मीद करना ठीक नहीं था।

सवाल था: प्रधानमंत्री जी, भारत को दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव लंबे समय से प्राप्त है। लेकिन बहुत से मानवाधिकार संगठन हैं, जो कहते हैं कि आप की सरकार अल्पसंख्यकों से भेदभाव करती है और असहमति की आवाज़ कुचलती है। आज जब आप व्हाइट हाउस के उस ईस्ट रूम में खड़े हैं, जिस में खड़े हो कर दुनिया के बहुत से राजनेताओं ने लोकतंत्र को सुरक्षित रखने का वचन दिया है, आप और आप की सरकार भारत में मुसलमानों और बाकी अल्पसंख्यकों के हक़ों की रक्षा करने, उनकी स्थिति को बेहतर बनाने और बोलने की आज़ादी बनाए रखने के लिए क्या क़दम उठाएंगे?

प्रधानमंत्री ने जवाब दिया: लोकतंत्र तो भारत और अमेरिका के डीएनए में है। लोकतंत्र भारत की आत्मा है। लोकतंत्र हमारी नसों में है। हम लोकतंत्र जीते हैं। लोकतंत्र हमारे संविधान का आधार है। अगर मानव मूल्य नहीं है, मानव अधिकार नहीं हैं तो फिर वह तो लोकतंत्र है ही नहीं। इसलिए जाति, नस्ल या धर्म के नाम पर किसी से भी भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता है। सब का साथ, सब का विश्वास, सब का प्रयास……।

नरेंद्र भाई हम सब के प्रधानमंत्री हैं। इसलिए अमेरिकी संसद के 75 सदस्यों द्वारा बाइडन के नाम लिखे पत्र और एक इंटरव्यू में ओबामा द्वारा बाइडन को दी गई सलाह का ज़िक्र मैं यहां नहीं करूंगा।

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By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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