nayaindia Rajasthan assembly election 2023 हर 25-50 किलोमीटर पर बदला हुआ मूड!

हर 25-50 किलोमीटर पर बदला हुआ मूड!

नसीराबाद/बांदनवाडा। एक ही प्रदेश, उसमें भी हर जिले में हर 25-50 किलोमीटर पर ही लोगों का मूड बदल जाता है। जैसे बोली बदलती है वैसे लोगों का चुनावी मिजाज बदला हुआ। जाति से जहां केमिस्टी गडबडाती हुईवही गणित लोगों में चुप्पी बनवाए हुए। दौसा के गुर्जर जहांकांग्रेस से नाराज लगे वहीं अजमेर के गुर्जर कांग्रेस की ओर झुके हुए हैं। और जाट तथा राजपूतों के मूडका जहां सवाल है लोकल उम्मीदवार की जाति से मतदाताओं की पार्टीगत वफादारियां बदलते हुई हैं।नसीराबाद में चाय की दुकान पर गपशप कर रहे भंवरलाल ने चुनावी मूड के लबोलुआब में कहा, ‘‘यहां फाईट है”।कस्बे के बाजार में भीड़ और शोरगुल से भरे नुक्कड़ पर चाय की दुकान में इकट्ठा लोग खुशी-खुशी राजनैतिक प्रश्नों का उत्तर देने को तैयार होते हैं।

अजमेर जिले की नसीराबादसीट की कैमेस्ट्री, गणित समझाते हुए बताया- मुकाबला तीन नौजवानों में है – भाजपा के रामस्वरूप लांबा (जो 2018 में जीते थे), कांग्रेस के शिवप्रकाश गुर्जर और निर्दलीय उम्मीदवार शिवराज सिंह पलाडा। शहरी इलाकों में मतदाता या तो गुर्जर के पक्ष में हैं या पलाडा के। पलाडा बागी हैं। उनके पिता भंवरसिंह पलाडाकोई बीस साल से भाजपा में थे। मगर जब पार्टी ने उनके बेटे को टिकट नहीं दिया तो उन्होंने खुद की अलग पार्टी बना ली और अब उनके पुत्र शिवराज सिंह, नसीराबाद से इस नई पार्टी के उम्मीदवार हैं।बगल के एक गांव के शिवराज मेघवंशी ने मुझे बताया- नसीराबाद में चाहे जो हो, गांवों में रामस्वरूप लांबा का हल्ला है। उनके दावे की पुष्टि के लिए मैंने तय किया क्यों न कुछ गांवों में जाया जाए।

नसीराबाद से कुछ ही किलोमीटर दूर है झड़वासा। इस गांव की आबादी करीब 1,700 है। मुख्यतः जाट और गुर्जर रहते हैं। करीब 80 साल के रतनलाल ने रामस्वरूप लांबा के साथ गांव वालों की केमिस्ट्री का रहस्य खोला। उन्होंने कहा, ‘‘रामस्वरूप को उसके पिता के नाम पर वोट मिलेगा”।

रामस्वरूप,दरअसल सांवरलाल जाट के बेटे हैं। सांवरलाल जाट प्रदेश के कद्दावर नेता थे।जाटों में उनकी अच्छी पैठ थी, वे पांच बार विधायक चुने गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिधिया के नजदीकी थे। वे नरेन्द्र मोदी सरकार में जल शक्ति मंत्रालय में राज्यमंत्री थे। इस दौरान उन्होंने नसीराबाद में जलसंकट के निवारण के लिए कोशिश भी की।वैसे पानी की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है (नसीराबाद में भी लोग शिकायत करते हैं कि नल कभी भी आता है और कभी भी चला जाता है) मगर फिर भी सुधार तो है ही। इसी के चलते रतनलाल बताते हैं कि रामस्वरूप को अपने पिता के कारण वोट मिलेंगे। तो क्या रामस्वरूप, जो भाजपा के वर्तमान विधायक हैं, अपनी खुद की पहचान नहीं बना पाए हैं? इस पर झड़वासा के एक समझदार प्रौढ़ कहते हैं कि ‘‘वे भी अपने पिता की तरह सहज और सरल हैं मगर उनकी लीगेसी बहुत बड़ी है”।

अजमेर जिले का यह इलाका गोविंदसिंह गुर्जर, राजेश पायलट और उनके बाद सांवरलाल जाट जैसे कद्दावर नेताओं का किला रहा है। यही कारण है कि यहां चुनाव विरासत पर लड़े जाते हैं। सचिन पायलट भले ही इस क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं पर अजमेर जिले में उनका फोकस रहा है। उनका अभी ज्यादा वक्त यहीं बीत रहा है। वे 28 साल के शिवप्रकाश गुर्जर के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं। वे अपने समाज के लोगों से गुर्जर को वोट देने की अपील करते नहीं थकते। यहां तक कि एक रैली में उन्होंने अपनी पगड़ी उतारकर रामस्वरूप गुर्जर के सिर पर रख दी और लोगों से कहा कि वे और गुर्जर एक ही हैं।

झड़वासा से 24 किलोमीटर दूर है बांदनवाडा। वहां की राजनैतिक फिजा एकदम अलग हैं। बांदनवाडा मसूदा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है और यहां मुकाबला मुख्यतः चार उम्मीदवारों के बीच है – भाजपा और कांग्रेस के अलावा जाट नेता हनुमान बेनीवाल की आरएलपी (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) और बसपा (बहुजन समाज पार्टी) उम्मीदवार भी मैदान में है। बसपा के उम्मीदवार हैं वाजिद खान चीता और आरएलपी से बनिया समुदाय के सचिन जैन सांखला चुनाव लड़ रहे हैं। सांखला कुछ जाटों की पहली पसंद हैं मगर अधिकांश जाट भाजपा के साथ हैं।

उमरा चौधरी एक जाट परिवार के मुखिया हैं। वे और उनके परिवार के 40 वोटर हमेशा से भाजपा को वोट देते आए हैं मगर उनका 42 वर्ष का भतीजा छगनलाल अब परिवार की लीक पर चलने को तैयार नहीं है। वह और चौधरी परिवार के कई युवा सदस्य बेनीवाल की आरएलपीको वोट देने जा रहे हैं। इसी तरह अब्दुल हामिद, जो कांग्रेस के पारंपरिक वोटर हैं, इस बार बसपा के हाथी का बटन दबाएंगे।‘‘अपना आदमी चुनाव लड़ रहा है,” वे कहते हैं।स्थानिय पत्रकार ने बताया- मुकाबला आरएलडी और बसपा में बना है। कांग्रेस और भाजपा बहुत पीछे!

इस बीच में कोई जोर से कहता है ‘‘वोट तो मोदीजी को ही जाएगा”।दूसरे शब्दों में ऐसे लोग भी हैं जो यह मानते हैं कि उम्मीदवार कौन है, उसकी जाति क्या है, यह सब एक तरफ है। वोट तो मोदीजी के नाम पर ही पड़ेगा। वही भीलवाड़ा शहर और जिला पारंपरिक रूप से भाजपा का गढ़ है।लेकिन इस बार भीलवाड़ा वासी एकमत नहीं हैं। जिले की सीमा के गुलाबपुरा (मांडल सीट) में लोग जहां कांग्रेस के जाट उम्मीदवार मंत्री रामलाल जाट के साथ बताते है वही गुर्जर लोग भाजपा के गुर्जर उम्मीदवार के लिए गोलबंद है और निर्णायक मगर दुविधा में ब्राह्यण वोटों की गणित है। भीलवाड़ा शहर सीट पर मूड एकदम अलग। मतदाता निर्दलीय बागी उम्मीदवार अशोक कोठारी को भाजपा और कांग्रेस दोनो पर भारी बताते हुए।

सो राजस्थान के चुनाव 2023 में हर 25-50 किलोमीटर पर लोग अलग बात करते हैं।अलग कैमेस्ट्री, अलग गणित बताते है। ऐसा लगता है मानो लोगों की सोच घड़ी के पेंडुलम की तरह एक ओर से दूसरी ओर जा रही है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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