बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की हुई है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत खराब है और वे चुनाव का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन जब एनडीए के अंदर घटक दलों के बीच सीट बंटवारे की बात आई और उसके टिकट देने की बारी आई तो सबसे ज्यादा चौकस नीतीश दिखे और उन्होंने सहयोगी दलों से लेकर अपनी पार्टी के भी साजिश कर रहे नेताओं को चित कर दिया। पहले तो सीट बंटवारे में नीतीश की पार्टी को निपटाने की तैयारी थी, जिसे उन्होंने समय रहते भांपा और चिराग पासवान को दी जा रही सीटों पर रोक लगवाई।
असल में भाजपा और जनता दल यू के कुछ नेताओं ने साझा सहमति से चिराग पासवान को 29 सीटें दीं। इसका सीधा मकसद चिराग की ज्यादा सीटों पर जीत सुनिश्चित करना था ताकि चुनाव के बाद उनको नीतीश के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके। 29 सीटें देने के बाद सीटों की एक सूची भी जारी की गई, जिसमें जनता दल यू की जीती हुई सीटें शामिल थीं। नीतीश इस पर भड़के और उन्होंने एकतरफा तरीके से सिंबल देना शुरू कर दिया। नीतीश ने उन सभी सीटों पर सिंबल बांट दिए, जो चिराग को दिए जाने वाली कथित सूची में शामिल थे। इस तरह उन्होंने पहला दांव यहां फेल किया। इसके बाद उन्होंने जिस तरह से उम्मीदवार चुने वह पोलिटिकल क्राफ्ट्समैनशिप की मिसाल है। नीतीश ने बिहार की सभी पार्टियों से बेहतर सीट बांटा। उन्होंने 101 में 79 सीटें पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित, मुस्लिम और आदिवासी को दी। पिछली बार उन्होंने 11 मुस्लिम दिए थे, जिनमें से सब हार गए थे। तभी इस बार संख्या घटा कर चार कर दी। 37 पिछड़ों में उन्होंने 32 सीटें कोईरी, कुर्मी और धानुक को दीं, जो उनका कोर वोट आधार है। टिकट बंटवारे के लिहाज से इस बार नीतीश सबसे आगे हैं।


