आखिरकार बृहन्नमुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी का चुनाव होने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह चार महीने के भीतर चुनाव कराए। उससे पहले स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी के आरक्षण के नाम पर चुनाव टल रहा था। सोचे, देश की वित्तीय राजधानी का शहरी निकाय, जो देश का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा बजट वाला शहरी निकाय है उसका चुनाव पिछले तीन साल से नहीं हो रहा था।
पहले कोरोना के नाम पर चुनाव में थोड़ी देरी हुई। लेकिन उसके बाद एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने किसी न किसी बहाने से चुनाव टाले रखा और नगर निकाय का काम प्रदेश सरकार ही करती रही। बीएमसी और अन्य शहरी निकायों का चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति को कई तरह से प्रभावित करने वाला होगा।
चुनाव से जुड़ी बड़ी सियासी हलचल
ध्यान रहे महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के नतीजे बिल्कुल अलग अलग आए। लोकसभा में महाविकास अघाड़ी यानी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार का गठबंधन बड़े अंतर से चुनाव जीता तो पांच महीने बाद ही विधानसभा चुनाव में महायुति यानी भाजपा, एकनाथ शिंदे और अजित पवार के गठबंधन ने उनका सूपड़ा साफ कर दिया। अब तीसरा चुनाव है। क्या इसका नतीजा विधानसभा चुनाव से अलग होगा? ध्यान रहे बीएमसी में हमेशा शिव सेना का दबदबा रहा है। चुनाव स्थगित होने से पहले 25 साल तक शिव सेना का ही मेयर होता रहा।
लेकिन इस बार असली शिव सेना एकनाथ शिंदे की हो गई है और उद्धव ठाकरे की पार्टी संघर्ष कर रही है। तीर धनुष चुनाव चिन्ह एकनाथ शिंदे की पार्टी से वापस लेने का उद्धव का कानूनी दांव फेल हो गया है। अब उनको नए चुनाव चिन्ह मशाल छाप पर ही लड़ना होगा। पिछले कुछ दिनों से राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच सद्भाव दिख रहा है।
अगर मुंबई पर ठाकरे परिवार का वर्चस्व कायम रखने के लिए दोनों साथ आते हैं तो चुनाव और दिलचस्प होगा। दूसरी ओर भाजपा इस बार किसी तरह से अपना मेयर बनाने का प्रयास करेगी। ध्यान रहे मुंबई महानगर में शिंदे का कोई ज्यादा असर नहीं है। हां, वे ठाणे में उद्धव ठाकरे को बड़ी टक्कर देंगे।
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