कांग्रेस पार्टी ने एक और राज्य में दलित अध्यक्ष बनाया है। ओडिशा में भक्त चरण दास को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद अब पड़ोसी राज्य बिहार में कांग्रेस ने राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। (bihar congress)
इससे पहले झारखंड और दिल्ली में पिछड़ा अध्यक्ष बनाया गया था। हाल में महाराष्ट्र में कांग्रेस ने पिछड़े समाज के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। सो, कांग्रेस अपने सर्वोच्च नेता राहुल गांधी के आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व देने के एजेंडे के हिसाब से नियुक्तियां कर रही है।
सवाल है कि चुनाव से ठीक पहले बिहार में प्रदेश अध्यक्ष बदलने और दलित को अध्यक्ष बनाने का कितना फायदा कांग्रेस और उसके गठबंधन को होगा? कांग्रेस में एक खेमा मुस्लिम अध्यक्ष बनाने की बात कर रहा था।
शकील अहमद खान और तारिक अनवर के नाम की चर्चा हो रही थी। लेकिन कांग्रेस ने उसकी बजाय दलित चेहरे पर दांव लगाया है। (bihar congress)
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इसका ज्यादा फायदा कांग्रेस को (bihar congress)
असल में बिहार में दलित समाज बाकी समुदायों की तरह जातियों में बंटा हुआ है। पांच फीसदी के एक मजबूत वोट आधार का प्रतिनिधित्व चिराग पासवान कर रहे हैं तो एक समूह के नेता अशोक चौधरी हैं और एक दूसरे समूह के नेता जीतन राम मांझी हैं।
इन सबसे अलग एक रविदास समूह है, जिसका कोई नेता अभी बिहार में नहीं है। किसी जमाने में समूचे दलितों के नेता बाबू जगजीवन राम होते थे। बाद में उनकी बेटी मीरा कुमार भी कई बार सांसद, मंत्री बनीं लेकिन जातीय पहचान की राजनीति में वे ज्यादा कामयाब नहीं हुईं। (bihar congress)
अब उसी समुदाय के राजेश राम पर कांग्रेस ने दांव लगाया है। पिछले लोकसभा चुनाव में पांच फीसदी आबादी वाले इस समूह ने राजद, कांग्रेस गठबंधन का साथ दिया था और यही कारण रहा कि मीरा कुमार की पारंपरिक सासाराम सीट पर आश्चर्यजनक तरीके से कांग्रेस जीत गई।
कांग्रेस पार्टी भूमिहार नेता कन्हैया कुमार और दलित नेता राजेश राम के जरिए राजद के मुस्लिम और यादव समीकरण में सवर्ण और दलित का एक मजबूत आधार जोड़ना चाह रही है। (bihar congress)
इसका फायदा कांग्रेस को ज्यादा होगा। कांग्रेस को दूसरा फायदा यह होगा कि ब्राह्मण, भूमिहार, दलित और मुस्लिम के बिहार के अपने पुराने समीकरण के दम पर वह राजद के साथ सीटों का बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में भी रहेगी।