nayaindia congress political crisis कांग्रेस में सुनने वाला कौन है

कांग्रेस में सुनने वाला कौन है

ऐसा कहा जा रहा था कि मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कामकाज की एक नई शैली कांग्रेस में विकसित होगी। कार्यकर्ताओं के साथ संवाद बेहतर होगा और नेताओं के लिए पार्टी आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाने में आसानी होगी। खड़गे चूंकि कांग्रेस के सिस्टम में ही नीचे से सर्वोच्च पद तक आए हैं इसलिए वे कार्यकर्ताओं के साथ साथ छोटे नेताओं की समस्याओं को भी जानते, समझते हैं इसलिए उम्मीदें ज्यादा थीं। लेकिन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद भी स्थिति वैसी ही है, जैसी पहले थी। अब भी सुनने वाला कोई नहीं है। बड़े बड़े नेताओं को इस दरवाजे से उस दरवाजे तक दौड़ाया जा रहा है और अंत में नेता बाहर जाने का दरवाजा खोल ले रहे हैं। अगर नेता नाराज होकर बाहर जाते हैं तो उनके प्रति हमदर्दी दिखाने की बजाय यह अहंकार दिखाई देता है कि उसके जाने से पार्टी नहीं टूट जाएगी।

सबसे हैरानी की बात यह है कि ये अहंकार उन नेताओं में है, जिनका अपना कभी कोई जमीनी आधार नहीं रहा है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने पार्टी छोड़ी तो कांग्रेस महासचिव और संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने उनके ऊपर हमला शुरू कर दिया। इससे पहले कि चव्हाण पार्टी में किसी को जिम्मेदार बताते या कोई शिकायत करते उससे पहले जयराम रमेश ने कहा कि उनके जाने से पार्टी नहीं टूट जाएगी और अच्छा है कि ऐसे लोग जाएं हजारों युवा आना चाहते हैं, जिनको ऐसे लोगों की वजह से मौका नहीं मिल पा रहा है। सोचें, यह बात जयराम रमेश कह रहे हैं, जिनका पूरा राजनीतिक जीवन बैकरूम में बीता है और आलाकमान की कृपा से जिनको राज्यसभा मिलती रही है। पहले आंध्र प्रदेश से राज्यसभा में जाते थे और जब वहां से कांग्रेस का तंबू उखड़ गया तो कर्नाटक से राज्यसभा चले गए। पिछले 25 साल से कभी कर्नाटक में किसी बोर्ड के सदस्य तो कभी राजस्थान में तो कभी छत्तीसगढ़ सरकार के आर्थिक सलाहकार रहे और जब केंद्र में सरकार बनी तो मंत्री बन गए और उसके बाद भी राज्यसभा मिल रही है। अगर उनको थोड़े समय बिना किसी पद के रहना हो तब उनकी प्रतिबद्धता का भी पता चलेगा।

बहरहाल, जयराम रमेश हों या केसी वेणुगोपाल हों ये सब बिना आधार और बिना जमीनी राजनीतिक समझ के लोग हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस में बड़ी समस्या हो रही है। कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना है कि उन्हें राहुल गांधी से बात करनी होती है तो वहां से कहा जाता है कि राहुल अब कुछ नहीं देखते हैं नेताओं को मल्लिकार्जुन खड़गे से बात करनी चाहिए। खड़गे से मिलने से पहले नेताओं को गुरदीप सप्पल या नासिर हुसैन को पहले पकड़ना होता है। किसी तरह उनसे बात हो गई तो कहा जाएगा कि केसी वेणुगोपाल से मिल लीजिए और सबको पता है कि केसी वेणुगोपाल से मिलने का मतलब राहुल से मिलना होता है। अगर कुछ पुराने लोग सीधे सोनिया या राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा से मिल लें तो वहां से भी उनको वापस सिस्टम में भेज दिया जाता है। अशोक चव्हाण के साथ यही हुआ है। वे सीधे सोनिया गांधी से मिले थे और नाना पटोले की शिकायत की थी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब यही कहा जाएगा कि चव्हाण तो पहले से मन बनाए हुए थे।

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