यह कमाल की बात है कि राहुल गांधी कांग्रेस के सर्वोच्च नेता हैं लेकिन वे जो चाह रहे हैं वह करा नहीं पा रहे हैं। देश की किसी भी पार्टी के सर्वोच्च नेता की स्थिति ऐसी नहीं होगी कि वह अपनी पार्टी में अपने हिसाब से काम नहीं करा सके या कोई नेता उसके आदेश की अनदेखी करे। लेकिन राहुल गांधी की स्थिति ऐसी है कि एक काम के लिए उन्हें 10 बार कहना पड़ रहा है, फिर भी काम कछुए की रफ्तार से हो रहा है। तेलंगाना में रोहित वेमुला के नाम पर कानून बनाने का उनका निर्देश इसकी एक मिसाल है। स्पष्ट निर्देश देने और बार बार याद दिलाने के महीनों बाद उसकी प्रक्रिया आगे बढ़ी है। राजनीतिक मामलों में तो स्थिति और भी खराब है। हरियाणा से लेकर कर्नाटक और बिहार से गुजरात तक सब कुछ अपने हिसाब से हो रहा है।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए 10 महीने होने जा रहे हैं और अभी तक विधायक दल का नेता तय नहीं हो पाया है। इस वजह से प्रदेश अध्यक्ष का भी फैसला नहीं हो पा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ठान रखी है कि वे फिर से विधायक दल के नेता बनेंगे या फिर उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए। अगर राहुल गांधी दीपेंद्र को अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार हो भी जाते हैं तब भी सीनियर हुड्डा चाहते हैं कि उनकी पसंद के व्यक्ति को विधायक दल का नेता बनाया जाए। चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद पार्टी के जीते हुए 37 विधायकों में से हुड्डा ने 31 को अपने यहां जुटा कर अपनी ताकत दिखा दी थी। रेस का घोड़ा, बारात का घोड़ा और लंगड़े घोड़े की बार बार मिसाल देने वाले राहुल गांधी हरियाणा में फर्क ही नहीं कर पा रहे हैं। कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला का दबाव अपनी जगह है। इनकी एक तिकड़ी थी, जिसकी नेता किरण चौधरी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में चली गई हैं। उनकी बेटी हरियाणा की भाजपा सरकार में मंत्री हैं।
यही हाल कर्नाटक का है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार अपना झगड़ा लेकर दिल्ली पहुंचे और चार दिन तक दिल्ली में बैठे रहे लेकिन राहुल गांधी से उनकी मुलाकात नहीं हुई। दोनों कांग्रेस महासचिव और कर्नाटक के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला से मिल कर वापस लौटे। कहा जा रहा है कि सुरजेवाला ने कांग्रेस के एक सौ से ज्यादा विधायकों से बात की है। सवाल है कि पार्टी के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी क्यों नहीं मिले और वे सुरजेवाला को क्यों नहीं अपना फैसला बता रहे हैं, जिसके मुताबिक वे विधायकों की राय बनवाएं? कांग्रेस में कभी ऐसा नहीं होता था कि विधायकों की राय पर पार्टी आलाकमान नेता का फैसला करेगा। नेता का फैसला पार्टी आलाकमान करता था और विधायक उस पर मुहर लगाते थे। या विधायक पार्टी आलाकमान को फैसला करने के लिए अधिकृत करते थे। अब कांग्रेस में उलटी गंगा बह रही है। कांग्रेस के नेता बता रहे हैं कि राहुल गांधी के रास्ते में अब बहुत कम बाधाएं बची हैं। सारे पुराने नेता एक एक करके रिटायर हो रहे हैं। राहुल की टीम उम्मीद कर रही है कि कमलनाथ से लेकर अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह से लेकर सिद्धारमैया और भूपेंद्र सिंह हुड्डा तक ज्यादातर पुराने नेता जल्दी रिटायर हो जाएंगे या हाशिए में चले जाएंगे। उसके बाद जो बचेंगे वे राहुल के हिसाब से काम करेंगे।