पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने एक रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी है। हाल के दिनों में किसी राज्य को लेकर इस तरह की रिपोर्ट आने की सूचना नहीं है। यहां तक कि दो साल पहले मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू होने और सैकड़ों लोगों के मारे जाने, हजारों के घायल होने और हजारों लोगों के विस्थापित होने के बाद भी ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई थी,
जिसमें राज्यपाल ने कहा हो कि केंद्र सरकार संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल करके राज्य में दखल दे। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने वक्फ कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में प्रदर्शन और तीन लोगों के मारे जाने की घटना को आधार बना कर केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजी है। सोचें, मणिपुर जैसे छोटे से राज्य में तीन सौ लोग मारे गए हैं!
राज्यपाल की रिपोर्ट पर राजनीतिक विवाद
सीवी आनंद बोस ने अपनी रिपोर्ट में सीधे तौर पर नहीं लिखा है लेकिन संविधान के अनुच्छेद 355 के इस्तेमाल की सलाह दी है। इसके तहत केंद्र सरकार राज्यों में कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए दखल दे सकती है और सेना या केंद्रीय बलों की तैनाती कर सकती है। इसी तरह राज्यपाल ने संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल करके एक आयोग के गठन की सलाह भी दी है।
उन्होंने आयोग बना कर राज्य में हुई हिंसा की जांच कराने और दोषियों को सजा देने की पहल करने को कहा है। राज्यपाल के इस सुझाव पर विवाद शुरू हो गया है। प्रदेश भाजपा के नेता भी हिसाब लगा रहे हैं कि अगर ऐसा कुछ केंद्र सरकार करती है तो उसका लाभ भाजपा को मिलेगा या ममता बनर्जी को ही उसका लाभ मिल जाएगा। ध्यान रहे ममता बनर्जी बाहरी बनाम भीतरी का चुनाव बनाने और बांग्ला अस्मिता का दांव खेलने में माहिर हैं। वे केंद्र सरकार की किसी भी पहल को राज्य की अस्मिता पर हमला बता सकती हैं।
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