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21-06-2025 Vol 19

दुष्टों को नियंत्रित करने वाली देवी

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यह भोग व मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रुनाश, वाक सिद्धि, वाद -विवाद में विजय प्राप्ति, सभी प्रकार की विपत्तियों से सुरक्षा, अनिष्ट आत्माओं व अशुभ दृष्टि से सुरक्षित रहने के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तंभन होता है तथा साधक का जीवन निष्कंटक हो जाता है।

5 मई- बगलामुखी जयंती

बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को महाविनाश को भी स्तंभित करने वाली देवी बगलामुखी का इस धरा पर अवतरण होने की मान्यता के कारण इस दिन बगलामुखी जयंती मनाए जाने की शाक्त, पौराणिक व तांत्रिक परिपाटी है। दस महाविद्या की श्रेणी में अष्टम स्थान पर अवस्थित श्री कुल की देवी बगलामुखी के कारण ही सम्पूर्ण सृष्टि में अवस्थित तरंग तरंगित हैं। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है।

यह भोग व मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रुनाश, वाक सिद्धि, वाद -विवाद में विजय प्राप्ति, सभी प्रकार की विपत्तियों से सुरक्षा, अनिष्ट आत्माओं व अशुभ दृष्टि से सुरक्षित रहने के लिए इनकी उपासना की जाती है।

इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तंभन होता है तथा साधक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु के तेज से होने के कारण देवी सत्व गुण संपन्न हैं। बगलामुखी दो शब्दों -बगला और मुखी के योग से बना है। बगला से अभिप्राय है- विरूपण का कारण और मुखी से तात्पर्य है मुख। देवी का सम्बन्ध मुख्यतः स्तंभन कार्य से है, चाहे वह मनुष्य मुख, शत्रु, विपत्ति हो अथवा कोई घोर प्राकृतिक आपदा।

महाविद्या बगलामुखी महाप्रलय जैसे महाविनाश को भी स्तंभित करने की पूर्ण शक्ति रखती हैं। देवी स्तंभन कार्य की अधिष्ठात्री हैं। स्तंभन कार्य के अनुरूप देवी ही ब्रह्म अस्त्र का स्वरूप धारण कर तीनों लोकों में किसी को भी स्तंभित कर सकती हैं। व्यष्ठि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है।

बगलामुखी जयंती और देवी की उपासना

शत्रओं का नाश तथा न्यायालयीन कार्यों में विजय हेतु देवी की कृपा अत्यंत आवश्यक है। विशेषकर झूठे अभियोगों, प्रकरणों हेतु इनकी कृपा आवश्यक समझी जाती है। देवी का विशेष संबंध पीत वर्ण से होने के कारण पीताम्बरा नाम से त्रिभुवन में प्रसिद्ध हैं। पीताम्बरा शब्द भी दो शब्दों के योग से बना है- पीत तथा अम्बरा।

अर्थात पीले रंग का अम्बर धारण करने वाली। देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिय हैं। पीले रंग से सम्बंधित द्रव्य ही इनकी साधना-आराधना में प्रयुक्त होते हैं। देवी नवयौवना हैं। वे पीले फूलों की माला धारण करती हैं, पीले रंग के वस्त्र इत्यादि धारण करती हैं। पीले रंग से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। पंच तत्वों द्वारा निर्मित संपूर्ण ब्रह्माण्ड में पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध पीले रंग से होने के कारण देवी को पीला रंग प्रिय है। देवी की साधना दक्षिणाम्नायात्मक तथा ऊर्ध्वाम्नाय दो पद्धतियों से की जाती है। उर्ध्वमना स्वरूप में देवी दो भुजाओं से युक्त तथा दक्षिणाम्नायात्मक में चार भुजाएं हैं।  महाविद्या बगलामुखी समुद्र मध्य स्थित मणिमय मंडप में स्थित रत्न सिंहासन पर विराजमान हैं।

देवी तीन नेत्रों से युक्त तथा मस्तक पर अर्द्ध चन्द्र धारण किए हुए हैं। इनकी दो भुजाएं हैं। बाईं भुजा से इन्होंने शत्रु की जिह्वा पकड़ रखी है तथा दाहिने भुजा से इन्होंने मुगदर धारण कर रखी है। देवी का शारीरिक वर्ण सहस्रों उदित सूर्यों के समान है तथा नाना प्रकार के अमूल्य रत्न जड़ित आभूषण से देवी सुशोभित हैं। देवी का मुख मंडल अत्यंत ही सुंदर तथा मनोरम है। पौराणिक व स्वतंत्र तंत्र आदि तांत्रिक ग्रंथों में अंकित भगवती बगलामुखी के प्रादुर्भाव की कथा के अनुसार सतयुग में सम्पूर्ण पृथ्वी को नष्ट करने वाला वामक्षेप अर्थात तूफान आया। जिसके कारण प्राणियों के जीवन पर संकट छा गया। उस समय चिंतित भगवान विष्णु

सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्या ने उस सरोवर से वगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का शीघ्र स्तंभन करने में विष्णु को सहयोग दिया और चराचर जगत के समस्त जीवों के प्राणों की रक्षा की। बगलामुखी महाविद्या का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वह वैष्णवी और सत्व गुण सम्पन्न है। मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। श्री बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र अथवा ब्रह्मास्त्र रुपिणी के नाम से भी जाना जाता है।

देवी बगला बगलामुखी मंत्र की देवी है। उन्हें वल्गामुखी भी कहा जाता है। बगला अथवा  वल्गा का शाब्दिक अर्थ रस्सी होता है, जो जिह्वा को नियंत्रित करता है। वह परम शक्तिशाली है, जो सभी बुरी शक्तियों को नष्ट कर सकती है। पिताम्बराविद्या के नाम से प्रसिद्ध बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाकसिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हल्दी की माला, पीले फूल और पीले वस्त्रों का विधान है। अपने शत्रुओं पर नियंत्रण लगाने की शक्ति प्राप्त करने और आत्मविश्वास तथा निर्णयात्मक व्याख्यान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए माता बगलामुखी साधना का प्रचलित मंत्र है-

ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।

देवी से संबंधित माँ बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् भी प्रचलित है, जिसके पहले श्लोक में देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्ररुपिणी कहा गया है। इस स्तोत्र और पौराणिक व तांत्रिक ग्रंथों में बगलामुखी के संबंध में प्राप्य विवरणियों के अनुसार वह चिच्छिक्ति के रूप में जानी जाती हैं, जो ज्ञान का स्वरूप है और ब्रह्मानंद प्रदान करती हैं। महाविद्या और महालक्ष्मी के रूप में पूजी जाने वाली देवी श्रीमत् त्रिपुरसुंदरी, भुवनेशी, और जगन्माता पार्वती के रूप में सर्वमंगलदायिनी हैं। वह ललिता, भैरवी, शांत, अन्नपूर्णा और कुलेश्वरी के रूप में हैं। वाराही, छिन्नमस्ता, तारा, काली और सरस्वती के रूप में उनकी पूजा की जाती है।

जगतपूज्या, महामाया, कामेशी और भगमालिनी के रूप में संबोधित देवी दक्षपुत्री और शिवप्रिया भी हैं, जो शिव के साथ रहने वाली हैं। सर्वसम्पत्तिकारिणी शक्ति और सभी लोकों को वश में करने वाली शक्ति से सम्पन्न देवी वेदविद्या और महापूज्या हैं, भक्तों के प्रति अत्यधिक स्नेहिल और दुष्टों के लिए भयकारी हैं।

वह स्तंभरुपा और स्तंभिनी हैं, जो दुष्टों को नियंत्रित करने वाली हैं। वह भक्तों को प्रिय हैं और महाभोग की प्रतीक श्रीविद्या ललिताम्बिका हैं। मैनावती की पुत्री और शिवानंदा के नाम से संज्ञायित देवी मातंगी और भुवनेश्वरी भी हैं। नारसिंही और नरेन्द्रा के रूप में वह नरोत्तम अर्थात श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा पूजा की जाती हैं। देवी बगलामुखी ही नागिनी, नागपुत्री, नगराज की पुत्री उमा, पीताम्बरा और पीत वस्त्र की प्रिय शुभा हैं। पीतगंध, रामा, पीतरत्नों से अलंकृत शिवा अर्द्धचन्द्र धारण करने वाली और गदा-मुदगर धारण करने वाली देवी हैं। देवी सावित्री, त्रिपदा, शुद्धा, और विष्णु रूपा, ब्रह्मरुपा और हरिप्रिया के रूप में जगन्मोहिनी हैं। वह रुद्ररुपा और रुद्रशक्ति से युक्त हैं।

भक्तों के प्रति वात्सल्य भाव से युक्त लोकमाता शिवा शिव पूजा में तत्पर रहती हैं। वह धनाध्यक्षा, धनेशी, और धर्मदा है। वह चण्ड के अहंकार का नाश करने वाली और शुम्भासुर का संहार करने वाली हैं। देवी ही राजराजेश्वरी, महिषासुरमर्दिनी, मधु-कैटभ का संहार करने वाली और रक्तबीज का विनाश करने वाली हैं। धूम्राक्ष का संहार करने वाली, भण्डासुर का विनाश करने वाली देवी रेणुपुत्री महामाया और भ्रामरी भी वही हैं। वही ज्वालामुखी, भद्रकाली, बगला और शत्रुनाशिनी है। वह इन्द्राणी, इन्द्र द्वारा पूजित और गुहमाता के रूप में गुणेश्वरी हैं। वज्रपाश धारण करने वाली, जिह्वा-मुदगर धारण करने वाली देवी भक्तों को आनंदित करने वाली और परमेश्वरी के रूप में पूजित हैं।

मान्यतानुसार माँ बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् के पाठ से शत्रु मुक्त, लक्ष्मी का स्थिर वास की प्राप्ति, भूत, प्रेत, पिशाच आदि ग्रह पीड़ाओं का निवारण होता है। राजा को भी वश में करने के शक्ति व सर्वसंपत्ति की प्राप्ति होती है। नाना प्रकार की विद्याओं की प्राप्ति कर साधक राज्य भी प्राप्त करता है। भौतिक सुख और मोक्ष की प्राप्ति कर वह साक्षात शिव के समान हो जाता है।

पीताम्बरा देवी, स्तम्भिनी देवी, श्रीविद्या ललिताम्बिका रूप वाली बगलामुखी देवी की कृपा से शत्रु नाश, विवाद समाधान और समृद्धि की प्राप्ति होने की मान्यता होने के कारण बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को माता बगलामुखी जयंती पर साधक व भक्तगण उनकी पूजा, आराधना- उपासना, साधना कर आत्मिक शांति, आत्मविश्वास और विजय का आशीर्वाद प्राप्ति की कामना करते हैं। भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।

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Pic Credit: ANI

अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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