देश के कुछ बड़े नेताओं को छोड़ दें, जो अपनी सीट बदल कर कहीं से भी चुनाव लड़ सकते हैं तो ज्यादातर नेताओं की चिंता बढ़ी हुई है। भाजपा के नेता ज्यादा चिंतित क्योंकि उनको लग रहा है कि परिसीमन और महिला आरक्षण का इस्तेमाल उनकी टिकट काटने के लिए हो सकता है।
ध्यान रहे सरकार अगले साल जनगणना और उसके बाद परिसीमन कराने की तैयारी है। साथ ही महिला आरक्षण लागू होने वाला है। इस वजह से पार्टियों के नेता चिंता में हैं और इन दिनों राजनीतिक गतिविधियां कम करके आगे के हालात पर चिंता कर रहे हैं। जिन राज्यों में अगले दो साल में चुनाव होने वाले हैं उनकी बात अलग है लेकिन उसके बाद होने वाले चुनावों, जिनमें लोकसभा चुनाव भी शामिल है, वह लड़ने वाले नेता इन दिनों चुपचाप बैठे हैं। वे ज्यादा भागदौड़ नहीं कर रहे हैं।
नेताओं की सीट पर अनिश्चितता का साया
नेताओं का कहना है कि पता नहीं है कि उनकी सीट बचेगी या नहीं बचेगी? बचेगी तो पता नहीं कौन सा इलाका कट जाए और कौन सा नया जुड़ जाए? लोकसभा सीटों की भौगोलिक और जनसंख्या संरचना बदलने वाली है। इसलिए नेता चुपचाप बैठे हैं। परिसीमन होता है तो उसके बाद सीट चुन कर वहां काम करेंगे और अगर नहीं होता है तो फिर अपने क्षेत्र में सक्रिय होंगे।
इसी तरह महिला आरक्षण की भी चिंता है। नेताओं को अपनी सीट आरक्षित हो जाने की चिंता सता रही है। सभी नेता ऐसे नहीं हैं, जो घर की किसी महिला को चुनाव लड़ा सकें। अगर सीट महिला के लिए आरक्षित होती है तो टिकट कटने की आशंका है। सो, दो साल बाद जिन नेताओं का चुनाव है उनकी बेचैनी बढ़ी है।
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