इस बात पर कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा का नया अध्यक्ष पहले चुना जाएगा या देश का नया उप राष्ट्रपति पहले बनेगा। सोशल मीडिया में इस बात का भी मजाक बन रहा है कि भाजपा इतने बरसों से अपना अध्यक्ष नहीं चुन पा रही है और अब उप राष्ट्रपति चुनने का काम भी आ गया। जो हो यह तय है कि दोनों चुनाव एक दूसरे से जुड़े रहेंगे। अगर उप राष्ट्रपति के चुनाव से भाजपा को राजनीति साधनी है तो उसका असर भाजपा अध्यक्ष के चुनाव पर भी पड़ेगा। जानकार सूत्रों का कहना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी तय करती है कि उप राष्ट्रपति के जरिए दलित और पिछड़ा राजनीति साधनी है तो इससे स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा का अध्यक्ष अगड़ी जाति का बनेगा। अगर उप राष्ट्रपति किसी अगड़ी जाति का बनता है तभी कोई पिछड़ा नेता के भाजपा अध्यक्ष बनेगा।
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि राष्ट्रपति आदिवासी समाज की हैं और प्रधानमंत्री पिछड़ी जाति के हैं। भाजपा की ओर से बार बार इसका हवाला भी दिया जाता है। खुद प्रधानमंत्री अपनी पिछड़ा पहचान को कई बार जाहिर कर चुके हैं। अब अगर पिछड़ा या दलित समाज का उप राष्ट्रपति बनता है तो तीनों सर्वोच्च पदों पर आदिवासी और पिछड़ा या दलित आसीन होंगे। ध्यान रहे देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई भी दलित समाज के हैं और पहले दलित व बौद्ध चीफ जस्टिस हैं। ऐसे में भाजपा किसी अगड़े नेता को अध्यक्ष बना सकती है। वैसे भी पिछले 20 साल से ज्यादा समय से अगड़ी जाति का ही भाजपा अध्यक्ष बनता रहा है। लालकृष्ण आडवाणी के बाद राजनाथ सिंह और फिर नितिन गडकरी, उनके बाद फिर राजनाथ सिंह, फिर अमित शाह और फिर जेपी नड्डा अध्यक्ष बने। इस बार भी यह पंरपरा कायम रह सकती है। अगर पिछड़ा या दलित उप राष्ट्रपति बनेगा तब तो यह परंपरा निश्चित रूप से कायम रहेगी।


