देश में दो ही पार्टियां हैं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, जिनको इलेक्टोरल बॉन्ड् से ज्यादा चंदा नहीं मिल रहा है। यह बहुत दिलचस्प है क्योंकि वित्त वर्ष 2022-23 में कांग्रेस की चार राज्यों में सरकार थी और आम आदमी पार्टी की भी दो राज्यों में सरकार थी। फिर भी इन दोनों पार्टियों को दूसरी सत्तारूढ़ प्रादेशिक पार्टियों के मुकाबले भी इलेक्टोरल बॉन्ड से बहुत कम चंदा मिला है। भाजपा को सबसे ज्याद चंदा मिला है लेकिन उसके बाद कांग्रेस या आप को नहीं, बल्कि तेलंगाना में सत्तारूढ़ रही भारत राष्ट्र समिति को चंदा मिला है। सवाल है कि ऐसा स्वाभाविक रूप से हो रहा है या इसके पीछे कोई डिजाइन है? क्या जान-बूझकर भाजपा के लिए चुनौती बनने वाली दो पार्टियों- कांग्रेस और आप को बड़े कारोबारी इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा नहीं दे रहे हैं? दोनों को बॉन्ड के अलावा दूसरे तरीके से यानी 20 हजार रुपए से कम के नकद चंदे मिल रहे हैं पर बॉन्ड के मामले में दोनों अछूत हुए हैं।
वित्त वर्ष 2022-23 में इलेक्टोरल बॉन्ड से कांग्रेस को सिर्फ 79 करोड़ रुपए का चंदा मिला है, जबकि इससे पहले के साल में उसे 94.5 करोड़ रुपए मिले थे। इसी तरह 2022-23 में आम आदमी पार्टी को सिर्फ 36.4 करोड़ रुपए मिले। दूसरी ओर के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति को इसी अवधि में 529 करोड़ रुपए मिले। पश्चिम बंगाल में सरकार चला रहीं ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 325 करोड़ और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके को 185 करोड़ रुपए इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 719 करोड़ रुपए का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला।