nayaindia Jharkhand politics Sita soren सीता सोरेन से भाजपा को क्या फायदा?

सीता सोरेन से भाजपा को क्या फायदा?

sita soren joined bjp
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यह सबको पता है कि भाजपा झारखंड को लेकर पिछले चार से बेचैन है। जब से वह 2019 का चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हुई तब से झारखंड में भाजपा ऑपरेशन लोटस के प्रयास में है। कई बार कोशिश हुई और हर बार विफलता हाथ लगी। अब भाजपा दावा कर सकती है कि उसे पहली सफलता हाथ लगी है।

उसने झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है। लेकिन यह सफलता जितनी भाजपा की है, उससे ज्यादा सुप्रीम कोर्ट की है। असल में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों सांसदों और विधायकों को सदन के अंदर की कार्यवाही में मिले विशेषाधिकार को नए सिरे से परिभाषित किया और कहा कि सांसदों और विधायकों को सदन के अंदर रिश्वत लेने का विशेषाधिकार नहीं हासिल है। उसके बाद 2012 के राज्यसभ चुनाव में रिश्वत लेने के मामले में सीता सोरेन के खिलाफ सीबीआई की जांच और मुकदमे का रास्ता साफ हो गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले दो हफ्ते बीतते बीतते सीता सोरेन भाजपा में चली गईं।

इससे सीता सोरेन को क्या फायदा है वह तो समझ में आता है लेकिन सवाल है कि भाजपा को क्या फायदा है? क्या भाजपा यह उम्मीद कर रही है कि सीता सोरेन के जरिए वह जेएमएम को कमजोर कर देगी या संथालपरगना के इलाके में जेएमएम के वोट में सेंधमारी कर देगी? हो सकता है कि पार्टी के कुछ प्रदेश नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को ऐसा समझाया हो लेकिन यह बहुत मुश्किल है। भाजपा को पिछले अनुभव से सबक लेना चाहिए था।

पार्टी ने बड़े जोश-खरोश और उम्मीद के साथ शिबू सोरेन के सबसे करीबी नेताओं में से एक हेमलाल मुर्मू को भाजपा में शामिल कराया था। लेकिन वे एक एक बाद एक तीन चुनाव लड़े और हर बार हारे। थक हार कर वे वापस जेएमएम में लौट गए। हेमलाल मुर्मू खुद अपने चुनाव की कहानी बताते थे कि हर व्यक्ति कहता था उसने उनको ही वोट दिया है तीर-धनुष छाप पर, जबकि वे कमल के फूल छाप पर चुनाव लड़ रहे थे। वहां व्यक्ति से ज्यादा शिबू सोरन, जेएमएम और तीर-धनुष चुनाव चिन्ह का मतलब होता है।

बहरहाल, कहा जा रहा है कि भाजपा सीता सोरेन को दुमका सीट पर चुनाव लड़ा सकती है। गौरतलब है कि दुमका से पहले पार्टी ने मौजूदा सांसद सुनील सोरेन को फिर से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अब उनको बदले जाने की चर्चा है। दूसरी ओर यह कहा जा रहा है कि जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद दुमका सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।

ऐसे में हो सकता है कि भाजपा को सीता सोरेन के लड़ने से फायदा दिख रहा हो। लेकिन कुल मिला कर धारणा के स्तर पर भाजपा को फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। गौरतलब है कि सीता सोरेन तीन बार से जेएमएम से विधायक बन रही थीं और जब हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दिया था तब सीता सोरेन के सबसे मुखर विरोध की वजह से हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन सीएम नहीं बन सकी थीं। सीता सोरेन के पार्टी छोड़ने से कल्पना की राह आसान होगी।

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