महाराष्ट्र में तीन चरण के मतदान के बाद कांग्रेस की दोनों सहयोगी पार्टियों के सामने एक खास किस्म की चुनौती देखने को मिली है। उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों के उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह की चुनौती की सामना करना पड़ रहा है। इसके उलट एकनाथ शिंदे और अजित पवार को पुराने चुनाव चिन्ह का फायदा मिल रहा है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने शिव सेना और एनसीपी टूटने के बाद जो फैसला किया उसमें एकनाथ शिंदे और अजित पवार गुट को असली पार्टी माना। इसका नतीजा यह हुआ कि शिंदे को शिव सेना का पुराना तीर धनुष चुनाव चिन्ह मिल गया। इसी तरह अजित पवार गुट को असली एनसीपी माना गया तो उनको भी घड़ी चुनाव चिन्ह मिल गया।
इसके उलट उद्धव ठाकरे गुट को मशाल का नया चुनाव चिन्ह मिला और शरद पवार को तुरही बजाता इंसान चुनाव चिन्ह मिला। उनके साथ एक मुश्किल यह है कि चुनाव आयोग के रिजर्व चुनाव चिन्ह सूची में तुरही एक अलग चुनाव चिन्ह है। बहरहाल, पिछले करीब छह महीने में उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने अपना चुनाव चिन्ह लोगों तक पहुंचाने में बड़ी मेहनत की है। लेकिन उम्मीदवारों का मानना है कि दशकों से लोग जिस चुनाव चिन्ह को वोट देते आए हैं वह उनके अवचेतन में हैं। हो सकता है कि इसका आधा या एक फीसदी से ज्यादा असर न हो लेकिन जहां नजदीकी मुकाबला होगा वहां इतना वोट भी बड़ा असर पैदा कर सकता है। ध्यान मंगलवार को जिन 11 सीटों पर मतदान हुआ है वह उद्धव और पवार दोनों के लिए बहुत अहम था। पिछले चुनाव में उद्धव की एकीकृत शिव सेना ने चार और पवार की एकीकृत एनसीपी ने तीन सीटें जीती थीं।