Sharad Pawar

  • पवार, भुजबल मुलाकात से क्या गुल खिलेगा

    शायद ही किसी को इस बात पर यकीन होगा कि महाराष्ट्र की महायुति सरकार के मंत्री और ओबीसी समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक छगन भुजबल ने शरद पवार से मराठा और ओबीसी आरक्षण पर बात करने के लिए मुलाकात की। शरद पवार से भुजबल का मिलना संयोग भी नहीं है। यह किसी बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसके संकेत पिछले कुछ समय से मिल रहे थे। छगन भुजबल राज्य सरकार से नाराज हैं। नाराजगी का पहला कारण यह है कि एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र देकर उनको ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का फैसला...

  • पवार की पसंद हैं उद्धव!

    एनसीपी के संस्थापक और महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेता शरद पवार ने वैसे तो कहा है कि विपक्षी गठबंधन की ओर से किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करने की जरुरत नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि उनकी पसंद शिव सेना के नेता उद्धव ठाकरे हैं। ध्यान रहे 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जब भाजपा और एकीकृत शिव सेना के बीच सरकार बनाने को लेकर जद्दोजहद चल रही थी तब शरद पवार ने ही उद्धव ठाकरे को इस बात के लिए तैयार किया था कि वे भाजपा का साथ छोड़ कर कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन के साथ...

  • पवार के यहां घर वापसी शुरू

    लोकसभा चुनाव के नतीजों ने शरद पवार को एक बार फिर मराठा नायक के तौर पर स्थापित किया है। उनकी पार्टी सिर्फ 10 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से नौ सीटों पर जीती। 90 फीसदी का स्ट्राइक रेट राज्य में किसी पार्टी का नहीं रहा। भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था फिर भी नौ ही सीट जीत पाई। शरद पवार का साथ छोड़ कर गए अजित पवार की पार्टी चार सीटों पर लड़ कर सिर्फ एक सीट जीत पाई। तभी अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अजित पवार की असली एनसीपी में भगदड़ मचने...

  • शरद पवार खेमे में भी विवाद

    महाराष्ट्र की राजनीति में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद नए सिरे से राजनीतिक हलचल शुरू हो गई है। एक तरफ भाजपा में खींचतान और झगड़े शुरू हुए हैं तो दूसरी ओर विपक्षी खेमे में एनसीपी के दोनों गुटों में विवाद शुरू हो गया है। अजित पवार खेमे में कई नेता नाराज हैं और पाला बदल कर शरद पवार के खेमे में लौटना चाहते हैं तो शरद पवार के गुट में अलग झगड़ा छिड़ा है। यह विवाद शरद पवार के पोते और पार्टी के विधायक रोहित पवार और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के बीच है। गौरतलब है कि...

  • मोदी युग के अंत की हुई शुरुआत

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • बीजेपी की कढ़ाई उतर गई और कांग्रेस दफ्तर!

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • अंहकार हारा, वानर सेना जीती!

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • शिंदे, पवार की दबाव की राजनीति

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • महाराष्ट्र में भाजपा को कितना नुकसान

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  • महाराष्ट्र में कौन किसके साथ जाएगा?

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  • कांग्रेस में किस पार्टी का विलय होगा?

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  • उद्धव और शरद के इलाके में सुधरा मतदान

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  • उद्धव और शरद को चुनाव चिन्ह की चुनौती

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  • पवार और रेड्डी परिवार की दिलचस्प खबरें

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  • उद्धव की पार्टी 21 सीटों पर लड़ेगी

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  • महाराष्ट्र में विपक्षी तालमेल में खटपट

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • शरद पवार का नाम का इस्तेमाल नहीं करेंगे अजित

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  • ‘अब आप अलग पार्टी, फिर शरद पवार की तस्वीर का इस्तेमाल क्यों: सुप्रीम कोर्ट

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • शरद पवार ने शिंदे और अजित को लंच पर बुलाया

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

  • शरद पवार को नया नाम इस्तेमाल करने की सलाह

    चुनावी राजनीति का एक हद तक सामान्य रूप रूप में लौटने का संकेत ही इस आम चुनाव की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि नरेंद्र मोदी परिघटना (phenomena) पर विराम लग गया है। यह धारणा टूट गई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा चुनावों में उसकी सफलता की गारंटी बना रहेगा। इस आम चुनाव में वास्तव में यही कथित करिश्मा जख्मी हुआ है। साल 2024 में आकर राष्ट्रीय जनादेश एक बार फिर खंडित रूप में सामने आया है। वैसे 2014 और 2019 में भी जनादेश इलाकाई आधार पर खंडित रहा था। तब उत्तर और पश्चिमी भारत में भाजपा का...

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