वैसे तो पहलगाम कांड के बाद सभी विपक्षी पार्टियों ने सरकार का समर्थन किया था। उसकी जवाबी कार्रवाई के तौर पर हुए ऑपरेशन सिंदूर का भी सभी पार्टियों ने समर्थन किया। लेकिन पिछले एक हफ्ते से कांग्रेस ने समर्थन बंद कर दिया है। अब कांग्रेस लड़ने के मूड में है। पहलगाम में हुई सुरक्षा व खुफिया चूक, ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी कथित तौर पर पाकिस्तान को देने का मामला, भारतीय सेना को हुए नुकसान का सवाल, अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा सीजफायर की घोषणा जैसे कई मसलों पर कांग्रेस अब सीधे भाजपा और केंद्र सरकार से लड़ रही है।
लेकिन उसकी कम से कम एक सहयोगी पार्टी ऐसी है, जो इस समय पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ी है। शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले खुल कर सरकार और भाजपा का समर्थन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इनका समर्थन देशभक्ति और राष्ट्रवाद के कारण है। उसका कारण राजनीतिक है। धीरे धीरे यह साफ हो रहा है कि उनकी पार्टी का विलय भतीजे अजित पवार की पार्टी के साथ होने जा रहा है और उनकी बेटी और भतीजा दोनों भाजपा का साथ देंगे।
शरद पवार का नया राजनीतिक संकेत
अगर ऐसा नहीं होता तो शरद पवार और सुप्रिया सुले को इतना खुल कर हर मसले पर सरकार का साथ देने की जरुरत नहीं थी। अब बात इतनी आगे बढ़ गई है कि जिस बात पर भाजपा के नेता भी चुप रहे उस सुप्रिया सुले ने सरकार का बचाव किया। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को निशाना बनाया। खड़गे ने एक कार्यक्रम में भारत और पाकिस्तान के संघर्ष को ‘छुटपुट युद्ध’ यानी छोटी मोटी लड़ाई बता दिया। यह बात सुप्रिया सुले को इतनी बुरी लग गई कि उन्होंने कहा कि आतंकवाद की बात आती है तो कोई भी लड़ाई छोटी या बड़ी नहीं होती है।
उन्होंने खड़गे को चुप कराया और नसीहत दी कि इस समय भारतीय की तरह सोचने की जरुरत है। गौरतलब है कि सुप्रिया सुले को सरकार ने विदेश दौरे वाले एक डेलिगेशन का नेतृत्व सौंपा है। वे बहुत खुश हैं और उन्होंने कहा कि इस समय वे पार्टी प्रतिनिधि के तौर पर नहीं, बल्कि भारतीय के तौर पर विदेश जा रही हैं। उन्होंने अपने को ‘प्राउड इंडियन’ बताया और कहा कि वे ऑपरेशन सिंदूर के लिए भारतीय सेना को सौ में से सौ नहीं, बल्कि एक हजार अंक देंगी।
उधर शरद पवार भी खुल कर सरकार के लिए खेलने लगे हैं। उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता संजय राउत ने प्रतिनिधियों को विदेश भेजने पर सवाल उठाया तो यह बात शरद पवार को बुरी लग गई। उन्होंने संजय राउत को संभल कर बोलने की नसीहत दी। उन्होंने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा कि वे खुद अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भारत की बात रखने विदेश जा चुके हैं।
उससे पहले विपक्षी पार्टियों ने, जिसमें कांग्रेस और लेफ्ट दोनों शामिल हैं, संसद के विशेष सत्र बुलाने की मांग की तो सरकार से पहले शरद पवार इस आइडिया को खारिज करने पहुंच गए। उन्होंने कहा कि इस समय विशेष सत्र बुलाने की जरुरत नहीं है। इसकी बजाय शरद पवार ने सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात का समर्थन किया। हालांकि उसमें भी दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह उन्होंने यह नहीं कहा कि पहले की दो सर्वदलीय बैठकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं शामिल हुए हैं इसलिए तीसरी सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता उनको खुद करनी चाहिए।
Also Read: न सर्वदलीय बैठक और न विशेष सत्र
Pic Credit: ANI