विपक्षी पार्टियों ने मुंबई की बैठक में तय किया था कि अलग अलग राज्यों में गठबंधन की साझा रैली होगी। मुंबई की एक सितंबर की बैठक के बाद दिल्ली में शरद पवार के घर पर 13 सितंबर को एक बैठक हुई थी, जिसमें तय किया गया था कि पहली साझा रैली भोपाल में होगी। उस समय मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले थे और उसी समय डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन सनातन धर्म को लेकर बेहद विवादित बयान दिया था। सो, मध्य प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष कमलनाथ ने एकतरफा तरीके से साझा रैली रद्द कर दी। उसके बाद चार महीने हो गए हैं और विपक्षी पार्टियों ने कोई भी साझा रैली नहीं की है। मुंबई में सभी इस बात पर सहमत हुए थे कि साझा रैलियों से विपक्ष की एकता दिखेगी, जनता में सकारात्मक मैसेज जाएगा और माहौल बनेगा। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव के चलते कांग्रेस ने सब कुछ स्थगित रखा।
अब जबकि विपक्षी गठबंधन की चौथी बैठक नई दिल्ली में हो गई है और सीट बंटवारे की बातचीत दोबारा शुरू हो रही है तब भी साझा रैली की कोई तैयारी नहीं है। गठबंधन का सचिवालय बनाने या संयोजक की नियुक्ति का मामला भी 10-15 दिन टला रहेगा। मल्लिकार्जुन खड़गे ने नीतीश की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर शनिवार को कहा कि अगले 10 से 15 दिन में इस बारे में फैसला हो जाएगा। इसी तरह यह भी बताया जा रहा है कि अगले 10-15 दिन तक कोई साझा रैली भी नहीं होने जा रही है। कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तैयारियों में बिजी है और बाकी प्रादेशिक पार्टियों ने साफ कर दिया है कि सीट बंटवारे का फैसला होने के बाद ही साझा रैली होगी। वैसे खड़गे ने कहा है कि ‘इंडिया’ की आठ साझा रैलियां होंगी। ये रैलियां मार्च के पहले हफ्ते में होने वाली चुनाव की घोषणा से पहले होंगी या बाद में यह स्पष्ट नहीं है।