प्रधानमंत्री ने लाल किले से ऐलान कर दिया कि जीएसटी में बहुत बड़ा बदलाव होगा और इस साल दिवाली पर डबल दिवाली मनेगी। सो, अब जीएसटी कौंसिल को फैसला करना है और दरों को तर्कसंगत बनाना है। जीएसटी में कटौती का असर राज्यों के राजस्व पर भी पड़ेगा। उनका राजस्व कम होगा। कहा जा रहा है कि जीएसटी की दरों में कटौती से अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ेगा क्योंकि लोगों के पास जो पैसे बचेंगे वह पैसा वापस बाजार में आएगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी का 12 फीसदी का स्लैब खत्म करके उसकी 99 फीसदी वस्तुओं व सेवाओं को पांच फीसदी के दायरे में लाने से देश की जीडीपी का आकार 0.7 फीसदी बढ़ सकता है।
हो सकता है कि जीडीपी का आकार बढ़े और उससे भी जीएसटी राजस्व में भी बढ़ोतरी हो। लेकिन यह तत्काल नहीं होने वाला है। जीडीपी का आकार बढ़ने के बाद भी ऐसा नहीं है कि जीएसटी का संग्रह बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। दर घटाने से जितनी कमी होगी उसकी भरपाई हो जाएगी। यानी यथास्थिति बनी रहेगी। अब सवाल है कि इसका राजनीतिक लाभ किसको मिलेगा? अगर जीएसटी की दरों में कटौती से महंगाई कम होती है तो उसका पूरा श्रेय सिर्फ नरेंद्र मोदी को जाएगा और पूरा लाभ सिर्फ भाजपा को मिलेगा। जब जीएसटी में बदलाव और डबल दिवाली की घोषणा लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने की है तो कैसे राज्य सरकारें या राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियां इसका श्रेय ले पाएंगी? वहां तो यही मैसेज होगा कि मोदी ने जीएसटी की दर घटाई और उससे महंगाई कम हुई। जब जीएसटी की दरें कम नहीं हो रही थीं तब भाजपा कहती थी कि प्रादेशिक पार्टियां नहीं करने दे रही हैं तो क्या अब कटौती होने पर भाजपा कहेगी की प्रादेशिक पार्टियों के समर्थन से कटौती हो रही है?