nayaindia Mamata banerjee ममता का मछली का नैरेटिव कितना चलेगा?

ममता का मछली का नैरेटिव कितना चलेगा?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने मछली का नैरेटिव बनाया है। वे एक बार फिर बंगाली अस्मिता का कार्ड चल रही हैं, जिस पर उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता था। गौरतलब है कि 2021 में ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बाहरी बता कर बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उठाया था। उन्होंने जय श्रीराम के बरक्स काली पूजा का नैरेटिव भी बनाया था। बांग्ला भाषा का मुद्दा भी उठा था। चूंकि विधानसभा में भाजपा के पास कोई बड़ा स्थानीय चेहरा नहीं था, जो ममता को टक्कर दे सके तो वह दांव चल गया। अब लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी इसी तरह का मुद्दा बना रही हैं। इस बार वे खान पान के बहाने मोदी को चुनौती दे रही हैं। सवाल है कि क्या धार्मिक मान्यता, खान पान और भाषा का मुद्दा इस बार भी बंगाल में चल पाएगा?

असल में पिछले दिनों ममता बनर्जी ने एक बयान में कहा कि वे तो नरेंद्र मोदी के लिए खाना बनाने को तैयार हैं लेकिन क्या मोदी उनका बनाया खाना खाएंगे? ममता यह मैसेज बनवाना चाहती है कि भाजपा अगर जीतती है तो वह बंगालियों के खान पान की परंपरा को बदलने की कोशिश करेगी। ध्यान रहे भाजपा और आरएसएस की ओर से वैष्णव विचार को लगातार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के साथ लगभग समूचे पूर्वी भारत में मांसाहार का चलन रहा है। पूजा पाठ में भी बलि से लेकर मांस, मछली के इस्तेमाल की परंपरा रही है। इन इलाकों में शक्ति की पूजा होती है। मछली बंगाली लोगों का प्रिय भोजन है और उनकी संस्कृति व जीवन शैली का हिस्सा है। भाजपा इसे चुनौती नहीं दे रही है और न इसे बदलने की बात कर रही है लेकिन ममता बनर्जी के बयान देने के बाद से प्रदेश भाजपा के नेता परेशान हैं और इसकी काट खोज रहे हैं। क्योंकि बड़े राजनीतिक मुद्दों के बरक्स इस तरह के भावनात्मक मुद्दे चुनाव में ज्यादा काम करते हैं।

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