पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में से तीन राज्यों में भाजपा की अपनी सरकार है, तीन राज्यों में उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकार है और एक राज्य मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। एक राज्य मिजोरम अब तक एनडीए के खाते नहीं आ पाया। वहां जोराम पीपुल्स फ्रंट यानी जेडपीएम की सरकार है और मिजो नेशनल फ्रंट 10 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी पार्टी है। इसका मतलब है कि एनडीए वहां न तो सरकार में है और न मुख्य विपक्षी गठबंधन है। भाजपा के दो और कांग्रेस का एक विधायक है। असम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में भाजपा की अपनी सरकार है लेकिन इन तीनों राज्यों में भी भाजपा का अपना नेता मुख्यमंत्री नहीं है। तीनों राज्यों में कांग्रेस से आए नेता मुख्यमंत्री हैं। असम में हिमंत बिस्वा सरमा, त्रिपुरा में मानिक साहा और अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू तीनों मुख्यमंत्री 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए हैं। भाजपा से उनका जुड़ाव एक दशक से भी कम का है।
बहरहाल, तीन राज्यों में भाजपा की सहयोगी पार्टियों की सरकार है और तीनों आत्मनिर्भर हैं। उनको सरकार बनाने के लिए भाजपा के समर्थन की जरुरत है। सिक्किम में तो सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के पास तो विधानसभा की सभी 32 सीटें हैं। पिछले साल हुए विधानसभा में पार्टी ने 31 सीटें जीती थीं और बाद में एकमात्र विपक्षी विधायक भी उसी पार्टी में शामिल हो गए। भाजपा का खाता नहीं खुला है। यह अलग बात है कि सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) ने सद्भाव के तहत राज्य की एकमात्र राज्यसभा सीट भाजपा को दे दी है। बाकी दोनों राज्यों, नगालैंड और मेघालय में सहयोगी पार्टियों की सरकार आत्मनिर्भर हो गई है।
नगालैंड में 60 सदस्यों की विधानसभा में सत्तारूढ़ एनडीपीपी के पास 25 विधायक थे, जबकि बहुमत का आंकड़ा 31 का है। इसलिए एनडीपीपी के नेता नेफ्यू रियो की सरकार भाजपा के 12 विधायकों के समर्थन पर टिकी हुई थी। लेकिन पिछले दिनों नेफ्यू रियो ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सभी सात विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। इस तरह एनडीपीपी के विधायकों की संख्या 32 हो गई। यानी उसे अपने दम पर बहुमत हासिल हो गया। अब भी भाजपा उसके साथ है लेकिन सरकार को बहुमत के लिए भाजपा की जरुरत नहीं है। यह दिलचस्प है कि एनसीपी के नेता अजित पवार भाजपा के साथ हैं लेकिन उनके साथ विधायक भाजपा के साथ नहीं गए और जब वे एनडीपीपी में चले गए तो अजित पवार ने कहा कि वे दलबदल कानून के तहत किसी तरह की कार्रवाई की पहल नहीं करेंगे। यानी उन्होंने अपनी पार्टी का एनडीपीपी में विलय स्वीकार कर लिया। इसी तरह मेघालय में कोनरेड संगमा की पार्टी एनपीपी और भाजपा अलग अलग लड़े थे। एनपीपी ने विधानसभा की 60 में 56 सीटें लड़ कर 26 पर जीत हासिल की थी। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 31 सीट का है। सो, संगमा की सरकार यूडीपी के 12 और भाजपा के चार विधायकों सहित कुछ अन्य विधायकों के समर्थन से चल रही थी। लेकिन बाद में संगमा ने कांग्रेस के पांच में से चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया और पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के दो विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया, जिससे उनके विधायकों की संख्या 32 हो गई। यानी वे भी भाजपा या किसी और पार्टी के समर्थन के मोहताज नहीं हैं। मणिपुर में भाजपा ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटा कर राष्ट्रपति शासन लगाया है लेकिन बीरेन सिंह को नाराज करके वहां वह दूसरी लोकप्रिय सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पा रही है। ध्यान रहे बीरेन सिंह भी पूर्व कांग्रेसी हैं।