बिहार विधानसभा का चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे आरक्षण को लेकर चर्चा तेज होती जा रही है। ऐसा लग रहा है कि आरक्षण ही बिहार में सबसे बड़ा मुद्दा होने जा रहा है। ध्यान रहे आरक्षण के मसले पर ही लालू प्रसाद की पार्टी राजद की बिहार में वापसी हुई थी। महज 22 सीटों पर पहुंच गई राजद ने आरक्षण पर दिए संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान को मुद्दा बना कर चुनाव लड़ा और 80 सीटों पर पहुंच गई। लेकिन उस समय नीतीश कुमार उसके साथ थे और चुनाव नीतीश के चेहरे पर लड़ा गया था। इस बार लालू प्रसाद की पार्टी के साथ कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां हैं। कांग्रेस भी जाति जनगणना और आरक्षण की चैंपियन बनी है इसलिए दोनों मिल कर इसे मुद्दा बना रहे हैं।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखी और वंचितों के लिए आरक्षण 85 फीसदी करने की मांग की। ध्यान रहे बिहार सरकार ने जाति गणना कराई थी और दलित, पिछड़ा व आदिवासी का आरक्षण 65 फीसदी कर दिया था। उस समय तेजस्वी सरकार में शामिल थे और उप मुख्यमंत्री थे। अब वे चाहते हैं कि आरक्षण 85 फीसदी हो जाए। पहले वे कह रहे थे कि नीतीश कुमार केंद्र सरकार में सहयोगी हैं तो केंद्र पर दबाव डाल कर आरक्षण बढ़ाने वाले बिल को नौवीं अनुसूची में शामिल कराएं। लेकिन अब वे 85 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राहुल गांधी ने भी बिहार की एक सभा में पिछले दिनों कहा कि आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा गलत है और इसको बदला जाएगा। सो, भाजपा विरोधी पार्टियों ने आरक्षण को मुद्दा बना दिया है। अब देखना है कि भाजपा और जदयू सिर्फ जाति जनगणना के मसले पर आगे बढ़ते हैं या वे भी आरक्षण का मुद्दा उठाते हैं।