कर्नाटक में एक दशक पुरानी जाति गणना की रिपोर्ट पर विवाद खत्म नहीं हो रहा है। इस रिपोर्ट के आंकड़े सामने आ गए हैं लेकिन उसके बाद से ही घमासान मचा है। राज्य के दोनों बड़े समुदाय यानी लिंगायत और वोक्कालिगा आंदोलित हैं। उनका कहना है कि जान बूझकर इन दोनों समुदायों की आबादी कम दिखाई गई है।
इनके मुकाबले पिछड़ी जातियों की संख्या ज्यादा बताई गई है और मुसलमानों की आबादी भी ज्यादा बताई गई है। कई नेता इस बात से आशंकित हैं कि मुसलमानों की आबादी ज्यादा बताने और उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था का लाभ भाजपा को मिलेगा। वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ज्यादा आसानी से करा पाएगी। ध्यान रहे कर्नाटक में जाति गणना में दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह मुस्लिम ही दिख रहा है।
जाति गणना रिपोर्ट पर सिद्धारमैया की हड़बड़ी
सो, लिंगायत व वोक्कालिगा समुदायों की नाराजगी और भाजपा को फायदा मिलने की अटकलों के बीच राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट पर होने वाली विशेष कैबिनेट बैठक टाल दी। अब कहा जा रहा है कि दो मई को कैबिनेट इस मसले पर विचार करेगी। लेकिन उसमें भी संदेह लग रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया खुद आरोपों से घिरे हैं क्योंकि उनकी जाति कुरुबा के वोट बाकी जातियों से ज्यादा हैं। वोक्कालिगा आबादी अनुमान से काफी हम होने से जो विवाद शुरू हुआ तो उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने अपने वोक्कालिगा समुदाय के लोगों के साथ बैठक की।
कहा जा रहा है कि सिद्धारमैया ने हड़बड़ी में रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। इसके पीछे यह कारण बताया जा रहा है कि गुजरात में कांग्रेस अधिवेशन में राहुल गांधी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की जम कर तारीफ की। वे हर जगह तेलंगाना मॉडल से जाति गणना की बात कर रहे हैं। सिद्धारमैया को रेवंत रेड्डी और डीके शिवकुमार के अच्छे संबंधों की खबर है। तभी अपने ऊपर फोकस बनवाने के लिए उन्होंने जल्दबाजी में रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी।
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