गिरफ्तारी और 30 दिन की हिरासत पर मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को पद से हटाए जाने के प्रावधान वाले बिल को लेकर शुरू हुआ विवाद थम नहीं रहा है। लोकसभा में जिस समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह बिल पेश किया उस समय विपक्ष ने बड़ा हंगामा किया। विपक्ष के सांसदों ने बिल की कॉपी फाड़ी और उसके गोले बना कर अमित शाह की ओर उछाले। उन्होंने इस पर कोई चर्चा नहीं होने दी। बिना चर्चा को बिल को संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में भेजा गया। अब जेपीसी के गठन का विवाद अलग शुरू हो गया है। विपक्षी पार्टियों में इस पर एक राय नहीं बन रही है।
बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जेपीसी में शामिल होने से इनकार किया है। इतना ही नहीं पार्टी चाहती है कि विपक्ष की कोई भी पार्टी जेपीसी में शामिल नहीं हो। ममता बनर्जी की पार्टी चाहती है कि जेपीसी का बहिष्कार किया जाए। उनका कहना है कि जेपीसी में शामिल होने पर भी होगा वही जो सरकार चाहती है इसलिए उसका हिस्सा बनने की जरुरत नहीं है। हालांकि कांग्रेस और दूसरी पार्टियों का कहना है कि अगर विपक्ष जेपीसी में शामिल नहीं होता है तो केंद्र सरकार को मनमानी की छूट रहेगी। शामिल होने पर कम से कम विपक्ष इस बिल की कमियों को उजागर सकता है। बैठक में अपने विरोध का नोट दे सकता है और अगर विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं तो यह भी संभव है कि कुछ विशेषज्ञ भी इस पर सवाल उठाएं और इसमें कमियां निकालें। इसके बावजूद हो सकता है कि कोई बदलाव न हो लेकिन जनता की नजर में इसकी कमियां जाहिर होंगी और सरकार की मंशा का खुलासा होगा।