वक्फ संशोधन बिल पर उद्धव ठाकरे की शिव सेना बड़ी दुविधा में रही। उद्धव की पार्टी के लिए किसी भी मसले पर मुसलमानों के पक्ष में खड़ा होना उनकी पारंपरिक राजनीति के लिहाज से थोड़ा मुश्किल है। उनकी विरोधी पार्टियों खास कर भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिव सेना को उनकी दुविधा का अंदाजा था। इसलिए महाराष्ट्र भाजपा के और शिंदे की पार्टी के सांसदों ने इस दुखती रग पर चोट किया। मजबूरी में विपक्ष
उन्होंने उद्धव की पार्टी को ललकारा और बाला साहेब ठाकरे के मूल्यों की याद दिलाई। तभी लोकसभा में पार्टी के नेता अरविंद सावंत ने पार्टी का पक्ष रखते हुए गोलमोल अंदाज में अपनी बात कही। कई बार तो यह साफ ही नहीं हुआ कि वे बिल का समर्थन कर रहे हैं या विरोध। उन्होंने अपने पूरे भाषण में यह अस्पष्टता बनाए रखी और यहीं से राज्यसभा के लिए संजय राउत को सूत्र मिला।
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असल में उद्धव ठाकरे की पार्टी की चिंता बृहन्नमुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव को लेकर है। अब तक शिव सेना हिंदू और मराठा वोटों के दम पर लगातार पांच चुनाव जीतती रही है। बीएमसी पर उसी का कब्जा रहा है। लेकिन भाजपा से अलग होने और कांग्रेस व शरद पवार की पार्टी के साथ तालमेल करने के बाद उद्धव की पार्टी के सामने मुश्किल है। अब वे कट्टर हिंदू और मराठा वोट की उम्मीद पहले की तरह नहीं कर सकते हैं। वे रातों रात अपने को बदल लें और गठबंधन तोड़ लें तब भी यह मुश्किल होगा।
तभी उनको मजबूरी में कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी के साथ रहना है और उम्मीद करना है कि मुस्लिम उनको वोट करेंगे। ध्यान रहे शिवसेना तोड़ने वाले एकनाथ शिंदे का आधार मुंबई महानगर में नहीं है। इसलिए शिव सेना का मुख्य मुकाबला भाजपा से होगा और भाजपा को रोकने के लिए मुस्लिम मजबूरी में ही सही शिव सेना की पार्टी को वोट करेंगे। इसी उम्मीद में उद्धव के सांसदों ने दोनों सदनों में मजबूरी में विपक्ष के साथ खड़े होने का दिखावा किया।
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