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13-06-2025 Vol 19

फर्ज भी निभाया और संस्कार भी…वैभव सूर्यवंशी में दिखी ‘सूर्यवंशम’ की जीती-जागती झलक!

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दिल्ली के मैदान पर जब चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ मुकाबले में राजस्थान रॉयल्स के बल्लेबाज वैभव सूर्यवंशी उतरे, तो मैदान सिर्फ एक खेल का मंच नहीं रहा, बल्कि वो एक फिल्मी दृश्य बन गया — और वो भी अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म ‘सूर्यवंशम’ का!

वैभव सूर्यवंशी का अंदाज, उनका जोश, और फिर उनके संस्कार… सब कुछ बिल्कुल वैसा ही जैसे ‘सूर्यवंशम’ के किरदारों में झलकता है।

मैच की शुरुआत में वैभव सूर्यवंशी ने बल्ला उठाया और विपक्षी टीम पर जैसे बिजली बनकर टूट पड़े। हर गेंद पर आक्रामक शॉट, हर रन में जुनून, और हर चौके-छक्के में एक फर्ज निभाने का जज्बा।

वो फर्ज जो एक खिलाड़ी का होता है — अपनी टीम के लिए, अपने साथी खिलाड़ियों के लिए मैदान में सब कुछ झोंक देने का। यही तो था वो क्षण, जब वैभव सूर्यवंशी ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया कि वो सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि मैदान पर एक योद्धा हैं।

लेकिन असली कहानी तो मैच खत्म होने के बाद शुरू हुई — जब वैभव सूर्यवंशी ने द लीजेंड महेंद्र सिंह धोनी के पैर छूकर भारतीय संस्कृति की उस परंपरा को निभाया, जिसे आज की पीढ़ी अक्सर भूल जाती है।

विरोधी टीम के खिलाड़ी के रूप में धोनी से भिड़े जरूर, लेकिन मैच खत्म होते ही उन्होंने अपने संस्कारों से सबका दिल जीत लिया। यही वो दृश्य था, जिसने हर दर्शक को ‘सूर्यवंशम’ की उस यादगार लाइन की याद दिला दी — “फर्ज और संस्कार, दोनों साथ निभाना आसान नहीं होता।”

वैभव का अंदाज ना हुआ फिल्म ‘सूर्यवंशम’ की कहानी हो गई

अब सोचिए, क्या ये सब फिल्म ‘सूर्यवंशम’ से मेल नहीं खाता? अगर आपने वो फिल्म देखी है, तो वो सीन ज़रूर याद होगा जब ठाकुर भानु प्रताप सिंह (अमिताभ बच्चन) अपनी बहू राधा सिंह (सौंदर्या) के ऑफिस में पानी की गुहार लगाने जाते हैं।

राधा, कलेक्टर की कुर्सी पर बैठकर अपने पद का फर्ज निभाती हैं, लेकिन जब पिता समान ससुर उठकर जाने लगते हैं, तो वो कुर्सी से उठती हैं और उनके चरण छूकर अपने संस्कार का प्रमाण देती हैं। एक ही पात्र में दो भाव — कर्तव्य और मर्यादा — ठीक वैसे ही जैसे वैभव सूर्यवंशी ने मैदान पर निभाए।

वैभव सूर्यवंशी का यह अंदाज़ अब सिर्फ क्रिकेट की बात नहीं रही। यह एक मिसाल बन गई है — उन युवाओं के लिए जो अपने करियर के साथ-साथ संस्कृति और परंपरा को भी साथ लेकर चलना चाहते हैं। उन्होंने बता दिया कि आधुनिकता के साथ भी संस्कारों को जिया जा सकता है।

दिल्ली का मैदान उस दिन सिर्फ एक स्पोर्ट्स ग्राउंड नहीं था, बल्कि वो एक परदे की तरह था, जिस पर एक नई ‘सूर्यवंशम’ लिखी जा रही थी — वैभव सूर्यवंशी के नाम से।

हाथ में बल्ला लेकर विरोधी होने का फर्ज

20 मई की शाम दिल्ली के मैदान पर खेले गए IPL 2025 के एक बेहद अहम मुकाबले में एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसने ना सिर्फ क्रिकेट प्रेमियों का दिल छू लिया, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई को भी दिखा दिया।

राजस्थान रॉयल्स की ओर से खेलने वाले युवा बल्लेबाज़ वैभव सूर्यवंशी ने ना सिर्फ चेन्नई सुपर किंग्स के विरुद्ध एक आक्रामक बल्लेबाज़ी का प्रदर्शन किया, बल्कि मैच के बाद अपने व्यवहार से भी करोड़ों दिलों को जीत लिया।

ये मुकाबला एक आम टी20 मैच से कहीं बढ़कर साबित हुआ। राजस्थान रॉयल्स की जीत के हीरो रहे वैभव सूर्यवंशी ने 33 गेंदों में तूफानी 57 रन बनाए, जिसमें उन्होंने 4 चौके और 4 गगनचुंबी छक्के लगाए।

उनका स्ट्राइक रेट रहा 172.72 – और ये पारी उस समय आई जब टीम को सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। उन्होंने विपक्षी गेंदबाज़ों की लाइन और लेंथ बिगाड़ दी, खासतौर पर CSK के अनुभवी अटैक के सामने उन्होंने एक युवा योद्धा की तरह मोर्चा संभाला।

लेकिन इस मैच की सबसे खास बात तब सामने आई जब खेल समाप्त हुआ। मैच के बाद आमतौर पर खिलाड़ी एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं, लेकिन वैभव सूर्यवंशी ने सिर्फ हाथ नहीं मिलाया — उन्होंने भारतीय क्रिकेट के सबसे सम्मानित चेहरे महेंद्र सिंह धोनी के पैर छूकर उन्हें प्रणाम किया। यह दृश्य कैमरों में कैद हुआ और सोशल मीडिया पर देखते ही देखते वायरल हो गया।

मैदान पर प्रतिस्पर्धा, बाहर सम्मान

इस घटना ने लोगों को याद दिलाया कि चाहे मैदान पर कितनी भी प्रतिस्पर्धा हो, असली संस्कार वही होते हैं जो खेल के बाद भी इंसान को विनम्र बनाए रखते हैं। धोनी, जिनकी कप्तानी, शांत स्वभाव और खेल भावना को दुनिया सलाम करती है, को इस तरह से सम्मान देना सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने वाला आदर का प्रतीक बन गया।

वैभव सूर्यवंशी की ये पारी और उनका यह आचरण एक सच्चे भारतीय खिलाड़ी की पहचान है — जो मैदान पर विरोधी बनकर उतरता है, लेकिन मैदान के बाहर बड़ों के प्रति सम्मान और संस्कार नहीं भूलता।

यह पल मानो हिंदी फिल्मों के क्लासिक “सूर्यवंशम” की याद दिला गया, जहां परंपरा और आधुनिकता का मेल देखने को मिलता है। बल्ले से विरोध और संस्कार से वंदन – वैभव सूर्यवंशी ने एक ही शाम में दोनों का बेहतरीन प्रदर्शन किया।

यह सिर्फ एक मैच नहीं था, यह एक संदेश था – कि सफलता से पहले और बाद में भी संस्कार ही असली पहचान होते हैं।

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pic credit- ANI

Naya India

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