कठघरे में है सरकार की विदेश नीति
यह वक्त गहरे आत्म-निरीक्षण का है। भारत के नीति निर्माताओं को इस बात की समीक्षा अवश्य करनी चाहिए कि वैसे तो पिछले साढ़े तीन दशक में, लेकिन खासकर पिछले नौ वर्षों के दौरान विदेश नीति संबंधी जो प्राथमिकताएं तय की गईं, उनसे देश को असल में क्या हासिल हुआ है? क्या इस प्राथमिकताओं से भारतीय जनता के हित सधे हैं? और इनसे भारत अपने इतिहास, अपने आकार, अपनी शक्ति, और अपनी संभावनाओं के अनुरूप विश्व मंच पर अपनी हैसियत बनाने में कामयाब हुआ है? बात की शुरुआत हाल में घटी कुछ घटनाओं के जिक्र से करते हैं। ध्यान दीजिएः बीजिंग...