Indian foreign policy

  • कठघरे में है सरकार की विदेश नीति

    यह वक्त गहरे आत्म-निरीक्षण का है। भारत के नीति निर्माताओं को इस बात की समीक्षा अवश्य करनी चाहिए कि वैसे तो पिछले साढ़े तीन दशक में, लेकिन खासकर पिछले नौ वर्षों के दौरान विदेश नीति संबंधी जो प्राथमिकताएं तय की गईं, उनसे देश को असल में क्या हासिल हुआ है? क्या इस प्राथमिकताओं से भारतीय जनता के हित सधे हैं? और इनसे भारत अपने इतिहास, अपने आकार, अपनी शक्ति, और अपनी संभावनाओं के अनुरूप विश्व मंच पर अपनी हैसियत बनाने में कामयाब हुआ है? बात की शुरुआत हाल में घटी कुछ घटनाओं के जिक्र से करते हैं। ध्यान दीजिएः बीजिंग...

  • भारत का संदेश क्या है?

    भारत सरकार को यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि उसके सामने असली चुनौती वह रुख और संदेश तय करने की है, जिससे वह भारत को नए उभरते वैश्विक ढांचे में नेतृत्वकारी भूमिका रखने वाले देशों में शामिल कर सके। यह खबर महत्त्वपूर्ण है कि भारत अपनी विदेश सेवा के पुनर्गठन की योजना बना रहा है। इसके तहत प्रवेश स्तर (एंट्री लेवल) के अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाएगी। इसके पहले विदेश मामलों की संसदीय स्थायी कमेटी ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत की राजनयिक सेवा अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों के मुकाबले भी कम स्टाफ वाली है। कमेटी...

  • पुतिन, जिनफिंग से पल्ला छूटा?

    यह हेडिंग कूटनीति के मिजाज में सही नहीं है। एक सियासी शीषर्क है। मगर भारत की विदेश नीति की हाल में जो नई दिशा बनी है वह वैश्विक मायने वाली है। पहले जापान, ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी नेताओं के साथ गलबहियां हुईं! फिर इस सप्ताह चीन की छत्रछाया के शंघाई सहयोग संगठन की दिल्ली शिखर बैठक को भारत ने रद्द किया। अचानक सब तैयारियों, न्योता देने के बाद भारत ने जुलाई में पुतिन और शी जिनफिंग, शहबाज शरीफ आदि की प्रत्यक्ष मेजबानी से किनारा काटा। सभी नेताओं की प्रत्यक्ष उपस्थिति की बजाय तीन-चार घंटों की मोदी की अध्यक्षता...

  • मोदी हों या राहुल, सबका मक्का अमेरिका-लंदन!

    यह सच्चाई है। तभी आजाद भारत की मनोदशा का यह नंबर एक छल है कि हम रमते हैं पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति में लेकिन तराना होता है हिंदी-चीनी भाई-भाई या रूस-भारत भाई-भाई। यों आजाद भारत का पूरा सफर दोहरे चरित्र व पाखंडों से भरा पड़ा है लेकिन भारत की विदेश नीति में जितना पाखंड, दिखावा और विश्वगुरू बनने की जुमलेबाजी हुई वह रिकार्ड है। मैंने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले, शीतयु्द्ध के पीक वक्त में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर लिखना शुरू किया था। तब से आज तक वैश्विक मामलों में भारत की विदेश नीति के दिखावे और हकीकत, झूठ और सत्य के...

  • मोदी और राहुल का फर्क

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विदेश दौरे पर जाते हैं तो हर देश में सैकड़ों लोगों की भीड़ उनका स्वागत करने के लिए उमड़ती है। सड़कों पर मोदी मोदी के नारे लगते हैं। वे उन देशों के प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों के गले लगते हैं। दूसरे देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी कभी मोदी को रॉकस्टार तो कभी बॉस कह कर उनको खुश करते हैं। दोपक्षीय वार्ताओं के अलावा मोदी प्रवासी भारतीयों की भीड़ को संबोधित करते हैं। वहां अपनी सरकार की उपलब्धियां बताते हैं और पहले की सरकारों को नाकाम-नाकारा साबित करते हैं। वे कारोबारियों को संबोधित करते हैं और उनको भारत आने...

  • ऑस्ट्रेलिया यात्रा से क्या हासिल?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विदेश दौरे पर जाते हैं तो हर देश में सैकड़ों लोगों की भीड़ उनका स्वागत करने के लिए उमड़ती है। सड़कों पर मोदी मोदी के नारे लगते हैं। वे उन देशों के प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों के गले लगते हैं। दूसरे देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी कभी मोदी को रॉकस्टार तो कभी बॉस कह कर उनको खुश करते हैं। दोपक्षीय वार्ताओं के अलावा मोदी प्रवासी भारतीयों की भीड़ को संबोधित करते हैं। वहां अपनी सरकार की उपलब्धियां बताते हैं और पहले की सरकारों को नाकाम-नाकारा साबित करते हैं। वे कारोबारियों को संबोधित करते हैं और उनको भारत आने...

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