• दुश्चक्र में फंसा फ्रांस

    राजनीति से जब रोजी-रोटी समेत रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े अन्य मुद्दों को गायब किया जाता है, तो उसका क्या नतीजा होता है, फिलहाल फ्रांस उसका एक खास उदाहरण बना हुआ है। फ्रांस लंबे समय तक अपनी जन-कल्याणकारी व्यवस्था और आधुनिक लिबरल उसूलों के लिए जाना जाता रहा। लेकिन कुछ समय पहले वहां के राजनीतिक विमर्श में सांप्रदायिक और नस्लवादी मुद्दों को महत्त्व देने की जो होड़ लगी, उसने वहां के समाज की हालत तीसरी दुनिया के किसी देश की तरह बना दी है। पेरिस के एक उपनगर में 17 साल के लड़के की पुलिस की गोली से हुई मौत...

  • भेदभाव बेपर्दा हुआ

    क्रिकेट में मौजूद भेदभाव के मुद्दे पर सिर्फ ईसीबी को कोसने का कोई लाभ नहीं है। ऐसी ही जांच भारत या किसी अन्य देश में कराई जाए, तो वहां भी मिलते-जुलते निष्कर्ष ही सामने आएंगे। क्या ये तमाम देश भी अपने सच का सामना करेंगे? इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) का क्रिकेट में भेदभाव और पूर्वाग्रहों के शिकार हुए लोगों से सार्वजनिक माफी मांगना एक स्वागतयोग्य कदम है। बोर्ड ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया, उसकी जांच कराई और जांच रिपोर्ट को स्वीकार किया, इसे भी एक सकारात्मक घटनाक्रम कहा जाएगा। लेकिन यह भी उतना ही अहम है...

  • अंतरिक्ष में रहने का मस्तिष्क पर कैसा असर?

    जो यात्री कम समय के लिए अंतरिक्ष में गए थे, उनके मस्तिष्क में बदलाव बेहद मामूली या बिल्कुल नहीं हुआ। लेकिन शोध के दौरान छह महीने या उससे ज्यादा समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले यात्रियों में फैलाव देखा गया। अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने का मस्तिष्क पर असर होता है। इस बारे में नासा ने अध्ययन किया है। अंतरिक्ष का आकर्षण अपनी जगह है और वहां होने के खतरे अपनी जगह। अंतरिक्ष का वातावरण मानव शरीर के लिए काफी मुश्किल होता है। माइक्रोग्रैविटी के हालात और अन्य कई चीजें शरीर पर बुरा असर डालती हैं। इनमें मस्तिष्क भी...

  • बात हुई, यही काफी!

    आयोजन से जुड़े कई प्रतिनिधियों को यह कहते सुना गया कि इस मुद्दे पर अलग से बातचीत की जरूरत थी, जो अब शुरू हुई है। यानी फिलहाल यही संतोष की बात है कि ऐसी बात शुरू हो गई है। दुनिया में एक नया वित्तीय करार करने के इरादे से पेरिस में पिछले हफ्ते हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। इसलिए आयोजन से जुड़े कई प्रतिनिधियों को यह कहते सुना गया कि इस मुद्दे पर अलग से बातचीत की जरूरत थी, जो अब शुरू हुई है। यानी फिलहाल यही संतोष की बात है कि ऐसी बात शुरू हुई...

  • उपाय सोचने की जरूरत

    रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल के कारण देश की 30 फीसदी जमीन बंजर होने के कगार पर है। तेजी से बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती में रासायनिक खादों का इस्तेमाल बढ़ा है। लेकिन इसका लोगों की सेहत पर भी खराब असर हो रहा है। रासायनिक खादों का उपज बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन जैसे किसी भी चीज का अत्यधिक उपयोग हानिकारक होता है, तो वही बाद इन उर्वरकों पर भी लागू होती है। कृषि वैज्ञानिक आगाह करते रहे हैं कि अगर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में...

  • कटिंग-एज तो नहीं

    रणनीतिक क्षेत्र में भारत में अमेरिकी नौसैनिक बेड़ों को “मरम्मत की सुविधा” देने पर बनी सहमति को एक अहम घटना समझा जाएगा। इसका अर्थ है कि भारत ने अमेरिकी सेना के अभियानों में अपनी जमीन का इस्तेमाल करने की इजाजत देने की शुरुआत कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका दौरे का प्रतीकात्मक या मोदी के लिए राजनीतिक महत्त्व चाहे जो हो, लेकिन इससे भारत को तकनीक या आर्थिक क्षेत्र में कोई लाभ हुआ, यह कहने का कोई ठोस आधार नहीं है। रणनीतिक क्षेत्र में भारत में अमेरिकी नौसैनिक बेड़ों को “मरम्मत की सुविधा” देने पर सहमति बनी, उसे...

  • मौसम क्यों बना जानलेवा?

    सवाल है कि गरमी से मौतें क्यों हुईं। हकीकत यह है कि अपने देश में असामान्य मौसम को लेकर आम जन को पहले से सचेत करने का कोई प्रभावी सिस्टम नहीं है। ना ही चिकित्सा व्यवस्था का दुरुस्त तंत्र है। यह पुरानी समझ है कि अक्सर लोगों की मौत अत्यधिक गरमी या ठंड से नहीं, बल्कि उनकी गरीबी के कारण होती है। जिन लोगों को पूरा पोषण मिलता है और जिनके रहने की उचित व्यवस्था रहती है, वे प्रकृति के ऐसे कहर का कम ही शिकार होते हैं। इसलिए इस समय खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में गरमी के कारण...

  • बड़े बदलाव की जरूरत

    भारत में अंग प्रत्यारोपण जीवित डोनरों के जरिए संभव हो पाता है। लेकिन मृत अंगदाताओं के अंग प्रत्यारोपण के मामले देश में बहुत ही पीछे है। इस कारण अनेक ऐसी जानें चली जाती हैं, जिन्हें बचाया जा सकता था। भारत में अंगदान की मांग उपलब्धता की तुलना में बहुत ज्यादा है। कारण देश में अंगदान करने वाले लोगों की भारी कमी है। प्रति दस लाख आबादी में सिर्फ एक व्यक्ति ऐसा होता है, जो मरने के बाद अपने अंगदान का वसीयत करता है। यह संख्या अमेरिका और स्पेन जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है, जहां डोनरों की दर...

  • हर सिगरेट खतरनाक है

    विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से जारी ताजा चेतावनी को सामयिक और सही दिशा में कहा जाएगा। संगठन ने कहा है कि ई-सिगरेट का सेवन भी सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी एक प्रमुख चिंता है। समाज में यह गलत धारणा बनाई गई है कि ई-सिगरेट खतरनाक नहीं है। इस भ्रम के कारण कई लोग सिगरेट छोड़ने की कोशिश में इसे अपना लेते हैं। उधर नौजवान भी यह सोच कर इसकी लत पाल लेते हैं कि इसमें वह खतरा नहीं है, जो तंबाकू वाली सिगरेट में होता है। इसलिए इस सिलसिले में विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से जारी ताजा चेतावनी को सामयिक...

  • समस्या व्यवस्थागत है

    भारत में डॉक्टरों के साथ हिंसक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मरीजों के परिजनों का गुस्सा अक्सर उन्हें झेलना पड़ता है। लेकिन हम अगर गौर करें, ज्यादातर मामलों की जड़ में ना तो डॉक्टरों की लापरवाही आएगी, ना परिजनों का असामाजिक व्यवहार। समस्या व्यवस्थागत है।      इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार 75 फीसदी से अधिक डॉक्टरों ने कार्यस्थल पर किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना किया है। ऐसे ज्यादातर मामलों में मरीज के परिजन शामिल थे। हालांकि स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा को लेकर देश में कोई केंद्रीकृत डेटाबेस मौजूद नहीं है, लेकिन मीडिया...

  • तमाम प्रगति के बावजूद

    माना जाता है कि इक्कसवीं सदी में दुनिया पुरातन जीवन शैली के साथ-साथ पुरातन मान्यताओं को पीछे छोड़ चुकी है। लेकिन अगर महिलाओं के प्रति भेदभाव की मानसिकता पर ध्यान दें, तो यह राय कतई सच नहीं है। बीसवीं सदी में ही दुनिया के प्रगति के अभूतपूर्व मुकाम पर पहुंच जाने का दावा किया गया था। 21वीं सदी में तो माना जाता है कि दुनिया के अधिकांश हिस्से पुरातन जीवन शैली के साथ-साथ पुरातन मान्यताओं को पीछे छोड़ चुके हैँ। लेकिन अगर महिलाओं के प्रति भेदभाव की मानसिकता पर ध्यान दें, तो यह राय सच नहीं है। हकीकत यह है...

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