nayaindia Democracy दुनिया सब देखती है

दुनिया सब देखती है

Democracy

बुनियादी सवाल यह है कि आज दुनिया को भारत में लोकतंत्र की हालत पर चिंता जताने का मौका क्यों मिल रहा है? भारत ने दुनिया में अपना जो सॉफ्ट पॉवर बनाया था, आज वह अपनी साख क्यों खोने लगा है? 

यह निर्विवाद है कि हर देश किसी दूसरे देश की अंदरूनी हालत के बारे में टिप्पणी अपने भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही करता है। इसलिए बहुत-से मामलों पर बहुत-से देश चुप रहते हैं या मद्धम टिप्पणी करते हैँ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि बाकी दुनिया किसी देश के अंदर क्या हो रहा है, उससे नावाकिफ रहती है। अब अगर जर्मनी और अमेरिका ने भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बारे में जुबान खोली है, तो मुमकिन है कि इसके पीछे उनकी कुछ भू-राजनीतिक गणनाएं हों। मगर बुनियादी सवाल यह है कि आज दुनिया को भारत में लोकतंत्र की हालत पर चिंता जताने का मौका क्यों मिल रहा है?

यह भी पढ़ें: भारत के लोकतंत्र व चुनाव निष्पक्षता पर अमेरिका नहीं बोलेगा तो क्या रूस बोलेगा?

आखिर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज किए जाने से बने हालात पर संयुक्त राष्ट्र ने भी जो कहा है, उसे इस विश्व संस्था की तरफ से जताई गई चिंता के रूप में ही देखा जाएगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने लोकतंत्र के जीवंत रिकॉर्ड, खुले समाज, और सहिष्णु संस्कृति के कारण भारत ने दुनिया में अपना जो सॉफ्ट पॉवर बनाया था, आज वह अपनी साख खो रहा है।

यह भी पढ़ें: मुख़्तार अंसारी जैसों का यही हश्र!

विश्व मीडिया में बेशक आज भारत की तेज आर्थिक वृद्धि दर की चर्चा सुर्खियों में है, लेकिन साथ ही यहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ह्रास और मानव अधिकारों के लिए बढ़ती चुनौतियों की चर्चा भी आज दुनिया में छाई हुई है। भारत सरकार नहीं चाहती कि यह चर्चा आगे बढ़े या इस चर्चा की खबर भारत में उसके समर्थक वर्ग तक पहुंचे। वह उनके बीच ये धारणा बनाए रखना चाहती है कि आज पूरी दुनिया भारत के “अमृत काल” पर मंत्रमुग्ध है।

यह भी पढ़ें: हंसराज हंस को पंजाब में टिकट मिल गई

इससे बने कथित रुतबे को दिखाने के लिए प्रतिकूल बातें कहने वाले देशों को वह फटकार भी लगा देती है। लेकिन इन सबसे सचमुच भारत के हार्ड पॉवर बनने का कोई संकेत नहीं हैं। उलटे देश चाहे पश्चिमी हों, या ग्लोबल साउथ के- वे विशुद्ध रूप से लेन-देन या नुकसान-मुनाफे की गणना के आधार पर भारत के साथ अपने रिश्ते को आंकने लगे हैं। गुजरे हाल के महीनों में भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत के लिए इसका नतीजा जाहिर होने लगा है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें