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Editorial

मतदान प्रतिशत का संकेत

ByNI Editorial,
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मतदान संबंधी सूचना देने को लेकर उठे विवादों ने समाज के एक बड़े हिस्से में संशय पैदा कर रखा है। इसी कारण अब तक जो आंकड़े बताए गए हैं, उनके आधार पर कोई संकेत ग्रहण करना बहुत से लोगों को सार्थक नहीं मालूम पड़ा है।

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 64.5 प्रतिशत मतदान हुआ। 2019 की तुलना में यह तकरीबन डेढ़ प्रतिशत कम है। चूंकि ये आंकड़े अस्थायी हैं, इसलिए संभव है कि अंतिम आंकड़ों में इस चरण में मतदान का प्रतिशत पिछली बार की तुलना में ज्यादा हो जाए। पहले दो चरण का तजुर्बा यह है कि निर्वाचन आयोग ने अस्थायी आंकड़ों में साढ़े चार प्रतिशत तक की वृद्धि की थी। उन चरणों के आंकड़ों पर विवाद अब तक जारी है। उसका एक कारण तो बाद में मतदान प्रतिशत में बड़ा बदलाव है, लेकिन उससे बड़ी वजह फॉर्म 17 के अनुरूप आंकड़ों को जारी ना किया जाना है। फॉर्म 17 में यह सूचना होती है कि हर बूथ पर कितने मतदाताओं के नाम हैं, और उनमें से वास्तव में कितनों ने मतदान किया। तीसरे चरण के मतदान के दिन ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन में शामिल अपने साथी दलों को पत्र लिखकर इस मुद्दे को गंभीरता से उठाने का आग्रह किया।

खड़गे ने निर्वाचन आयोग के व्यवहार और मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। यह सचमुच रहस्यमय है कि जब 2019 तक फॉर्म 17 के आंकड़ों का योग मतदान के हर चरण के बाद जारी किया जाता था, तो इस बार इसमें क्या दिक्कत है? इस बार अंतिम मतदान प्रतिशत बताने में भी आयोग ने असामान्य रूप से अधिक समय लिया। इन विवादों ने विपक्ष और सिविल सोसायटी के एक बड़े हिस्से में संशय पैदा कर रखा है। इसी कारण मतदान खत्म होने के बाद जो आंकड़ा बताया गया, उसके आधार पर कोई संकेत ग्रहण करना बहुत से लोगों को सार्थक नहीं मालूम पड़ा है। सामान्य स्थितियों में अब तक के मतदान के आधार पर कहा जाता कि इस बार मतदाताओं में उत्साह कम है। फिर उसके कारणों पर कयास लगाए जाते। बेशक एक बड़ी वजह हालिया वर्षों में लोगों की रोजमर्रा की बढ़ी समस्याएं हो सकती है। अगर ऐसा है, तो उसका नुकसान सत्ताधारी भाजपा को होना संभव है। मगर फिलहाल, हालात सामान्य नहीं हैं। विपक्ष के लिए असमान धरातल के कारण कोई समझ बना पाना मुश्किल बना हुआ है।

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