क्या विपक्ष लाचार रहने को अभिशप्त है? संभवतः ऐसा नहीं होगा, अगर विपक्ष यह समझे कि राजनीति का अर्थ सिर्फ चुनाव लड़ना नहीं है। वरना, अपने समर्थकों के बीच सोशल मीडिया पर तूफान लाने से आगे वह नहीं बढ़ पाएगा।
कांग्रेस ने बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा चुनाव क्षेत्र के तहत आने वाली महादेवपुरा विधानसभा सीट की मतदाता सूची की जांच कर ‘वोट चोरी’ के सबूत जुटाने का दावा किया है। इसके मुताबिक एक ही चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं के कई पंजीकरण, मतदाताओं के अनेक नामों के साथ एक जैसे फोटो, एक मतदाता का अनेक राज्यों में पंजीकरण, और एक पते पर बड़ी संख्या में नाम दर्ज होने जैसी कथित गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है। सामान्यतः होना यह चाहिए था कि इन शिकायतों का निर्वाचन आयोग स्वतः संज्ञान लेता और शिकायतों का निवारण करने का संकल्प जाहिर करता। मगर यह सामान्य दौर नहीं है।
इस दौर में अन्य संस्थाओं और उच्च पदाधिकारियों की तरह निर्वाचन आयोग भी अपनी कोई जवाबदेही नहीं मानता। तो उसने उलटे राहुल गांधी समेत कांग्रेस नेताओं को ही कठघरे में खड़ा करने की मुहिम शुरू की है। चुनाव संचालन संबंधी शिकायतों के मामले में ऐसा पहले भी होता रहा है। जबकि चुनाव संचालन को लेकर विपक्षी दलों और सिविल सोसायटी एक बड़े हिस्से में शिकायतें गहराती जा रही हैं। उससे चुनावों की साख प्रभावित हो रही है। फिर भी निर्वाचन आयोग बेपरवाह है। उसके इस रुख से बढ़ी रही हताशा का ही परिणाम है कि कई विपक्षी नेता यह कहते सुने गए हैं कि मौजूदा हाल के बीच चुनाव लड़ना निरर्थक है। ऐसे में विपक्षी दल क्या करेंगे?
एक रास्ता न्यायपालिका में जाने का है, लेकिन आजकल वहां से भी ऐसे मामलों में चीजें दुरुस्त होने की संभावनाएं अधिक उज्ज्वल नहीं रहतीं, जिनके राजनीतिक आयाम हों, या जिनमें वर्तमान शासक विचारधारा से अलग संवैधानिक व्याख्या की जरूरत हो। तो एक अन्य विकल्प चुनाव बहिष्कार का है, लेकिन ऐसा कदम आत्मघाती हो सकता है। दुनिया भर में बहिष्कार के तजुर्बे अच्छे नहीं रहे हैं। तो फिर क्या विपक्ष लाचार रहने को अभिशप्त है? संभवतः ऐसा नहीं होगा, अगर विपक्ष यह समझे कि राजनीति का अर्थ सिर्फ चुनाव लड़ना नहीं है। अगर वह राजनीति की अभिनव समझ विकसित करे, तो आज अपनी ऐतिहासिक भूमिका बना सकता है। वरना, अपने समर्थकों के बीच सोशल मीडिया पर तूफान लाने से आगे वह नहीं बढ़ पाएगा।