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दांव-पेच और जोड़-तोड़

Rajya Sabha Election cross voting

खेला” करने की सियासत से अधिकांश पार्टियों को गुरेज नहीं रह गया है। अब तो यह हाल है कि जो इसमें ज्यादा कारगर होता है, मीडिया और विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग भी उससे मोहित होकर उसका गुणगान करने लगता है। Rajya Sabha Election cross voting

बात नई नहीं है, लेकिन अब बहुत बदरूप ढंग ले चुकी है। अक्सर राज्यसभा चुनावों के दौरान इसका नंगा नाच देखने को मिलता है। इस दौरान की खरीद-फरोख्त को पार्टियों ने अपनी शक्ति और सियासी कौशल के प्रदर्शन का प्रतीक बना लिया है। अब तो यह हाल है कि जो इसमें ज्यादा कारगर होता है, मीडिया और विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग भी उससे मोहित होकर उसका गुणगान करने लगता है। चूंकि “खेला” करने की सियासत से अधिकांश पार्टियों को गुरेज नहीं रह गया है, इसलिए इस हमाम में सभी नंगे नजर आते हैं।

मसलन, मंगलवार को राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान के समय हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने अपने इस “कौशल” का परिचय दिया, तो कर्नाटक में कांग्रेस इसमें भारी पड़ी। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है, जब बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने “खेला” कर दिखाने का एलान किया था, हालांकि असल वक्त आने पर खुद उनकी पार्टी के साथ “खेला” हो गया।

बहरहाल, जब कोई चलन इतना बेपर्द रूप ले चुका हो, तो यह जरूरी हो जाता है कि उसे संचालित करने वाली परदे के पीछे की परिघटना को समझने की कोशिश की जाए। तो अगर हम गौर करें, तो यह साफ होने में देर नहीं लगती कि जिस “लोकतंत्र” पर हम गर्व करते हैं, वह धीरे-धीरे धनिकतंत्र या अभिजात्य-तंत्र में तब्दील हो चुका है। जो राजनीतिक पार्टियां हैं, वे असल में देश के छोटे से प्रभु वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करने लगी हैं।

अगर गौर से देखें, तो यह साफ होगा कि इन दलों के बीच होड़ प्रभु वर्ग का भरोसा हासिल करने की होड़ लगी हुई है। फिलहाल यह भरोसा पार्टियों की चुनाव जीत सकने की क्षमता के आधार पर मिलता है। तो दलों के बीच धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर भावनाएं भड़का कर जीत सकने की क्षमता दिखाने की होड़ लगी है। प्रभु वर्ग इसी क्षमता के अनुपात में पार्टियों को “राज” का प्रबंधन करने के संसाधन वह उपलब्ध कराता है। मगर इस क्रम में निष्ठा, आदर्श, राजनीतिक नैतिकता और लोकतांत्रिक मर्यादाओं की बलि चढ़ गई है। Rajya Sabha Election cross voting

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