भोपाल। अकेले भारत में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में इन दिनों धर्म और राजनीति के घालमेल का दौर चल रहा है, कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने उपस्थित श्रोताओं से ‘जय बजरंगबली’ के नारे लगवाए, वहीं अब अमेरिका की एक ताजा रिपोर्ट सुर्खियों में है जिसमें भारत के साथ रूस चीन और सऊदी अरब के धार्मिक समुदायों को खुलेआम निशाना बनाने की बात कही गई है। रिपोर्ट में बाईडन प्रशासन ने कहा है कि रूस चीन भारत व सऊदी अरब सहित कई देशों की सरकारें खुलेआम धार्मिक समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाती रही है, भारत ने इस रिपोर्ट को यद्यपि खारिज कर दिया है तथा इसे पक्षपातपूर्ण निरूपित किया है, किंतु इसी माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी अगले माह अमेरिकी यात्रा पर जा रहे हैं तथा वहां के राष्ट्रपति जो बाईडन से भेंट भी करेंगे।
यद्यपि अमेरिका के भी संविधान में भी भारत की तरह ही धर्म को राजनीति से पृथक रखने की बात कही गई है, किंतु अब जबकि विश्व के प्रजातंत्र देशों के नागरिकों ने अपनी सरकार और उनकी राजनीति पर भरोसा करना बंद कर दिया है, तो हर देश की सरकार अपनी गरज साधने के लिए धर्म का सहारा लेकर अपने वोटरों को साधने का प्रयास कर रही है। भारत भी अब इससे अछूता नहीं रहा है।
अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मुख्यालय के विशेष राजदूत रसद हुसैन ने रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि भारत में कानून के हिमायती नेताओं ने हरिद्वार में मुस्लिमों के खिलाफ नफरती भाषण के मामलों की निंदा की थी रिपोर्ट के भारत वाले हिस्से में कहा गया है कि कई राज्यों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ पुलिस की हिंसा की रिपोर्ट सामने आई है, इनमें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाने का मामला भी शामिल है, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने अपनी इस संदर्भ में जारी टिप्पणियों में भारत का जिक्र नहीं किया।
यद्यपि इस विवादित रिपोर्ट पर भारत ने अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है किंतु उस आपत्ति का क्या असर होता है, इसके खुलासे के पहले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने इसी माह के अंत में अपना अमेरिकी दौरा तय कर लिया है। मोदी जी के पहले राहुल के दौरे को लेकर भारत सरकार चौकन्नी हो गई है, क्योंकि राहुल के बहुचर्चित ब्रिटेन व अन्य देशों के हाल ही के दौरे के विवादों की स्याही अभी सुखी नहीं है और यह तो तय है कि अमेरिका की हाल ही की एक ताजा रिपोर्ट को लेकर राहुल चुप रहने वाले नहीं है और फिर विवादों की एक नई श्रृंखला तैयार हो जाएगी, जो छह माह बाद होने वाले चुनाव को प्रभावित कर सकती है।
यहां अब यह भी नया खुलासा होने लगा है जिसे मोदी सरकार व सत्तारूढ़ पार्टी की भी मौन स्वीकृति मिल रही है कि अब धीरे धीरे जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव निकट आ रहे हैं वैसे वैसे कांग्रेस में प्रियंका जी राहुल जी से अधिक सक्रिय और जागरूक दिखाई देने लगी है, इसलिए सत्तारूढ़ दल अब राहुल से अधिक प्रियंका जी पर नजर गड़ाए हुए हैं और उनकी हर गतिविधि पर गंभीर चिंतन करने लगा है क्योंकि वैसे भी भारतीय राजनीति में यह माना जाने लगा है कि प्रियंका जी की राजनीति अपनी दादी स्वर्गीय इंदिरा जी से काफी मेल खाती है तथा वे उसी तरह धीरे-धीरे कांग्रेस में प्रभावी होती जा रही हैं, जिस तरह कि पंडित नेहरू के बाद इंदिरा जी हुई थी, इसी आशंका को लेकर भाजपा व उसका नेतृत्व इन दिनों काफी चिंतित है।
इस तरह कुल मिलाकर भारत में चुनावों से पहले राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीति में धार्मिक आजादी जैसे अनेक ऐसे मसले जोड़ रहे हैं जो भारत की अगली राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं, इसलिए देश की पूरी राजनीति सतर्क है।