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राहुल तो कभी माफी नहीं मांगेगे!

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राहुल मंगलवार को एक नए सवाल के साथ आ गए कि भारत की विदेश नीति का लक्ष्य क्या है? बताइए यह भी कोई बात है।दुनिया जानती है कि भारत की विदेश नीति निर्गुट आंदोलन के आधार पर दुनिया भर में सम्मानित रही। भारत तीसरी दुनिया के देशों का नेता रहा। उसके प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू उनकी आवाज उठाते रहे। और यह क्या बात हुई कि आज राहुल कह रहे हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी विदेशों में अडानी की आवाज उठाते हैं। पड़ोसी देशों पर अडानी की सहायता का दबाव बनाते हैं।राहुल ने तथ्यों के साथ एक वीडियो इश्यू कर दिया है। भाजपा परेशान है कि इसशख्स का क्या किया जाए।

राजनीति में कोई अकेला क्या इससे पहले कभी इतना भारी पड़ा? इतना स्पष्टवादी दिखा? इतना निर्भिक इतना साहसी हुआ? जिसको जो कहना है कह ले। मगर सच यही है कि राहुल गांधी भारतीय राजनीति के सबसे दमदार चेहरों में एक हैं। और एक मामले में बिल्कुल अकेले और सबसे आगे हैं कि बिना कुर्सी पर रहे इतनी चर्चा में हैं।

यहां किसी से तुलना करने का कोई इरादा नहीं। अपमान का या किसी को छोटादिखाने का तो सवाल ही नहीं। मगर आजादी के बाद से भारत में जितने नेता हुएउनमें से किसी ने इतने साल, दो दशक होने वाले हैं इतना विरोध नहीं सहा।हमले बहुतों पर हुए मगर इतनी निरंतरता के साथ और अपने परायों सबके किसीपर नहीं।

हमारा मानना है कि भारतीय राजनीति में तीन नेता नई जमीन तोड़ने वाले हुए। इतिहास को नया मोड़ देने वाले। भगत सिंह, नेहरू और आंबेडकर। इसमें हम गांधी जी को शामिल नहीं करते हैं। वे सबसे ऊपर थे। और उनका काम बहुत बड़ा। विशाल। समग्रता लिए हुए। देश को आजादी दिलाने वाला।

लेकिन बाकी येतीनों अपने राजनीतिक विचारों के प्रति काफी आग्रही। और नए विचारों के साथकाम करने वाले हिम्मती नेता थे। तीनों का बड़ा काम आजादी के पहले का रहा। बाकी नेहरू और आंबेडकर का आजादी के बाद भी नव निर्माण और नए संविधान का।तीनों को बहुत विरोध सहना पड़ा। भगत सिंह को 23 साल की उम्र में ही अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया। नेहरू को दस साल से ज्यादा जेलों में ऱखा गया और आंबेडकर की तकलीफों का तो कहना ही क्या। सबसे बड़ा जो कष्टहोता है सामाजिक अपमान का वह सहना पड़ा। इसलिए जैसे गांधी से इन तीनों कीतुलना नहीं। ऐसे ही इन तीनों से किसी और की नहीं हो सकती।

राहुल का समय अलग है। और शायद सबसे प्रतिकूल। क्योंकि उनके मुकाबले जोनेता है वह भी अपने समय का सबसे ताकतवर नेता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। उन्होंने भी अपने तरीके का नया इतिहास रचा है। 2014 तक और उसके कुछ सालों बाद तक भी कोई नहीं मानता था और मानना क्या किसी की कल्पना में भीनहीं था कि मोदी इतने शक्तिशाली हो जाएंगे कि उनके सामने पूरी पार्टी शरणागत हो जाएगी। और पार्टी भाजपा से भी ऊपर संघ अपने सारे नियंत्रण छोड़देगा। वैसे हम यह नहीं मानते कि संघ पर मोदी का कंट्रोल हो गया है।

हां, मगर यह जरूर है कि संघ के सारे कार्यक्रम पूरे हो रहे हैं और मोदी का असरबहुत ज्यादा है तो संघ ने भी उन्हें खुली छूट दे दी है। ऐसी छूट आडवानीको भी नहीं मिली थी। और वाजपेयी को तो सवाल ही नहीं। उनका प्रभाव बढ़तादेखकर ही संघ ने अपने द्वारा भेजे गए गोविन्दाचार्य से उन्हें उसी तरहमुखौटा कहलवाया था जैसे बाद में कांग्रेस ने अर्जुन सिंह के लिए अपनीप्रवक्ता से चापलूस कहलवाया था। जिन्हें पता नहीं हो उनके समझने के लिएसंक्षेप में कि कांग्रेस ने एक प्रेस कान्फ्रेंस करवाकर अपनी प्रवक्ताजयंती नटराजन से कहलवाया था कि कांग्रेस को चापलूसी पसंद नहीं है। यह अर्जुन सिंह जैसे बड़े नेता को निपटाने के लिए कांग्रेस के कुछ मैनेजर टाइप नेताओं ने करवाया था।

खैर तो मोदी तो इस समय पार्टी में और संघ किसी भी चुनौति और सवालों सेपरे बहुत ऊंचे नेता हैं। मगर इसी समय राहुल नाम का एक नेता है जो कभी सत्ता की किसी कुर्सी पर नहीं रहा और जैसा उसके तौर तरीकों से दिखता हैकि शायद जब कभी मिले तो वह भी अपनी मां सोनिया गांधी की तरह उसे ठुकरादे।

लेकिन वह समय आएगा और आएगा भी तो कब आएगा पता नहीं। अभी तो जिस तरहविपक्ष आपस में ही एक दूसरे से हिसाब करने में लगा है उसे देखते हुए कुछभी कहना संभव नहीं है।

हां, मगर एक बात कही जा सकती है। और पूरे विश्वास के साथ कि राहुल माफीनहीं मांगेगे। राहुल की पूरी हिम्मत और मोदी पर सीधे हमले के बाद भाजपाको इसका एक ही तोड़ नजर आ रहा है कि राहुल से माफी मंगवा लें। अगर राहुलजरा भी झुके तो राहुल का जो पूरा माहौल बना है दमदारी का वह एक मिनट में ध्वस्त हो जाएगा।

इसीलिए संसद के बजट सत्र के दूसरे पार्ट की शुरूआत भाजपा ने राहुल माफी मांगो अभियान से शुरू की। मामला अडानी का था मगर भाजपा उसे राहुल पर लेआई। अंग्रेजी में इसे कहते हैं कि शूट/ ब्लेम / किल द मैसेंजर! खतरे को,संदेश को, चेतावनी को नहीं देखो बल्कि बताने वाले पर आरोप लगा दो। इतिहासऐसी कहानियों से भरा पड़ा है। और उनके नतीजों से भी। दूत को मारनामैसेंजर पर आरोप कोई समाधान नहीं है।

लेकिन इतिहास खुद को बार बार दोहराता है। और गलतियों को तो लगातार। इसलिए संसद शुरू होते ही इस बात का जवाब देने के बदले कि अडानी देश के बाकी उद्योगपतियों को पीछे छोड़कर नंबर एक कैसे बन गए सत्ता पक्ष यह चिल्लाने लगा कि राहुल माफी मांगे। दूत, संदेश वाहक तुम यह खबर क्यों लाए कि अडानी ने देश के बैंकों का, एलआईसी का, जनता का पैसा खतरे में डाल दिया? माफी मांगो!
और फिर ये राहुल भी कम नहीं हैं। मंगलवार को एक नए सवाल के साथ आ गए किभारत की विदेश नीति का लक्ष्य क्या है? बताइए यह भी कोई बात है।

दुनिया जानती है कि भारत की विदेश नीति निर्गुट आंदोलन के आधार पर दुनिया भर में सम्मानित रही। भारत तीसरी दुनिया के देशों का नेता रहा। उसके प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू उनकी आवाज उठाते रहे। और यह क्या बातहुई कि आज राहुल कह रहे हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी विदेशों में अडानी की आवाज उठाते हैं। पड़ोसी देशों पर अडानी की सहायता का दबाव बनाते हैं।

राहुल ने तथ्यों के साथ एक वीडियो इश्यू कर दिया है। भाजपा परेशान है कि इसशख्स का क्या किया जाए। परेशान कांग्रेस के नेता भी रहे। पार्टी अध्यक्षबनने के बाद ऐसा घेरा कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर भी चैन नहीं पड़ातो एक गिरोह जिसे मीडिया बहुत सम्मानपूर्वक जी 23 कहता रहा बना डाला।राहुल के कांग्रेस के उन सोनिया तक के विरोध में जिन्होंने इन्हें सब कुछदिया खूब ऊट पटांग बोला। लेकिन राहुल को डरा नहीं पाए। और ऐसे में हीराहुल ने एक ऐसी यात्रा निकाल डाली जिसने कांग्रेसियों का तो मुंह बंद करही दिया सत्ता पक्ष में भी खलबली मचा दी।

अभी तक भाजपा और मीडिया बहुत सीना तान कर कहते कि मोदी के मुकाबले कौन?मगर राहुल की यात्रा के बाद पूरा सीन बदल गया अब खुद भाजपा में, संघ मेंऔर मीडिया में यह सवाल पैदा होने लगा कि क्या किसी से नहीं डरने वाले इसराहुल से अडानी बच पाएंगे? और अगर अडानी का गुब्बारा फट गया तो क्या मोदीउस धमाके से खुद को बचा पाएंगे।

भारत की राजनीति में माहौल मिनटों में बनता है। मिनटों मुहावरे में है। मतलब तेजी में। भाजपा और संघ अन्ना हजारे को लाई और पहले शीला दीक्षित काऔर फिर यूपीए सरकार का तख्ता पलट दिया। ईडी सीबाआई जेल का खतरा सबको है। संसद में 16 विपक्षी दल रोज मीटिंग करकेसाथ काम करने की बात करते हैं। अब यह नहीं हो सकता कि संसद में साथ आएंऔर संसद के बाहर नहीं। जनता उन्हें या तो एकजुट कर देगी या जो विपक्षीएकता के साथ नहीं आएंगे उन्हें भाजपा की तरफ धकेल देगी।

राजनीति में खींचने से ज्यादा शक्तिशाली हथियार है धकेलना! जो विपक्ष केसाथ आना नहीं चाहते वह मोदी के साथ हैं। जिस दिन यह मैसेज जाएगा देखना कैसी घबराहट मचती है!

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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