nayaindia Sedition Law राजद्रोह कानून और विधि आयोग की रिपोर्ट...।

राजद्रोह कानून और विधि आयोग की रिपोर्ट…।

भोपाल। इन दिनों राजद्रोह कानून को लेकर विधि आयोग द्वारा सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट सरकार के सिर दर्द का कारण बनी हुई है, राजद्रोह कानून की धारा 124ए को सरकार का एक वर्ग हटाना चाहता है, जबकि विधि आयोग इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है। विधि आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में सरकार से राजद्रोह कानून कुछ संशोधनों के साथ कायम रखने की सिफारिश की है। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में केंद्र सरकार को सौंंपी है, जिस पर संसद के मानसून सत्र में चर्चा संभावित है।

यद्यपि कानूनी विशेषज्ञों का एक वर्ग विधि आयोग की रिपोर्ट को रूढ़िवादी बता रहा है और इसमें जरूरी संशोधनों की मांग भी कर रहा है, विधि आयोग की 81 पृष्ठों वाली इस रिपोर्ट में 1830 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह रोकने के लिए आईटीसी में शामिल हुए इस राजद्रोह कानून (124ए) को न केवल बहाल रखने की बल्कि सजा को 3 से 7 साल करने की सिफारिश की गई है। एक साल पहले मई में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के प्रयोग पर रोक लगा दी थी, उसके 5 माह बाद आयोग ने इस पर काम करना शुरू किया, रिपोर्ट पर इंग्लैंड के विधि आयोग की रिपोर्ट का जिक्र भी है, जिसमें कहा गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी पर डरावना प्रभाव डालता है, इंग्लैंड ने इसे 2009 में खत्म किया, जबकि अमेरिका के न्यायालय ने “फ्रि स्पीच” के मामलों में इस प्रावधान को “डरावना” करार दिया, विधि आयोग की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया कि तमाम विकसित देशों ने इसे खत्म कर दिया, लेकिन भारत में इसे आज भी बहाल रखने और सख्त बनाने की सिफारिश के लिए दिए गए तर्क विधि आयोग की विशेषज्ञता को हल्के लगते हैं।

अब स्थिति यह है कि यद्यपि सुप्रीम कोर्ट अगस्त में फिर इस मसले पर विचार करने वाला है, लेकिन इसके पहले इस कानून को और अधिक सख्त बनाने की सिफारिश भी की जा रही है और इस कानून के तहत सजा की सीमा भी उम्र कैद तक करने की सिफारिश की जा रही है। दलील दी जा रही है कि कानून का दुरुपयोग ना हो इसलिए सजा का प्रावधान 3 साल से उम्र कैद किया जाना चाहिए या फिर 7 साल कैद और जुर्माना तय कर दिया जाना चाहिए। फिलहाल इस अपराध के दोषी के लिए 3 साल की सजा का प्रावधान होकर यह गैर जमानती अपराध की श्रेणी में शामिल है।

इसमें पासपोर्ट भी रद्द करने का प्रावधान है। विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने आयोग की ओर से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में संशोधन करने की भी सिफारिश की है, इसके मुताबिक देशद्रोह के आरोपों की प्राथमिक जांच किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से कराने और फिर केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति के बाद प्राथमिकी दर्ज कराने की सिफारिश भी की गई है। कांग्रेस के विधि विशेषज्ञ अभिषेक मनु संघवी का कहना है कि 2014 से 2020 के बीच देशद्रोह के मामले 28% बड़े एक दर्जन मामले कोवीड महामारी के दौरान तो 21 मामले पत्रकारों पर दर्ज हुए, यह विशेष उल्लेखनीय है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यूएपीए तथा रासुका से भी व्यापक है धारा 124 ए । केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का कहना है कि सभी से विचार-विमर्श के बाद ही इस धारा को खत्म करने या ना करने का फैसला लिया जाएगा। लेकिन इसके साथ ही सरकारी सूत्र यह भी बताते हैं कि सरकार इस कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है और मानसून सत्र इस धारा के भविष्य के लिए निर्णायक होगा। इस बीच सुप्रीम कोर्ट भी अगस्त में इस पर सुनवाई करने वाला है। …. लेकिन इस सब विवाद के बीच विधि आयोग ने यह अवश्य कहा है कि कानून के दुरुपयोग का आधार इसे रद्द करने का मूख्य आधार नहीं हो सकता।

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