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हमेशा याद रहेगा वैदिकजी का संघर्ष

जेएस राजपूत
उनका इस तरह जाना अविश्वसनीय लग रहा है। जिस उत्साह से वैदिक जी एक नए दक्षेश की योजना को साकार रूप देने में लगे थे, उससे तो युवा ही नहीं उनके सभी सहयोगी भी प्रेरणा प्राप्त कर रहे थे। देश में हिंदी भाषा तथा भारतीय भाषाओं के लिए तरुणाई से ही लगातार कर्मठता से जुड़े रहे वैदिक जी पिछले छह दशकों से देश में युवाओं के लिए, विशेष कर राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिए, प्रेरणा स्रोत बने रहे हैं।

उनके लेख और उसमें उपस्थित गहराई तथा उनकी अपनी विश्लेषण क्षमता अद्भुत थी। अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक उथल-पुथल के वे गहरे अध्येता और विश्लेषक थे। हिंदी तथा भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए जहां भी काम हो रहा था, वैदिक जी हर प्रकार से सहयोग देने तो तैयार रहते थे। संघ लोक सेवा आयोग में हिंदी माध्यम को लाने में उनके द्वारा किया गया संघर्ष भुलाया नहीं जा सकेगा। जेएनयू में हिंदी में डॉक्टरेट की थीसिस जमा करने के उनके संघर्ष ने उन्हें सारे देश में प्रतिष्ठा प्रदान की थी। वे जेएनयू के पहले छात्र थे, जिन्होंने हिंदी में थीसिस लिख कर डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की थी। इसके लिए उनका अपना पूरा शैक्षणिक करियर दांव पर लगा दिया था।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति खास कर दक्षिण एशिया के देशों की राजनीति पर उनका ज्ञान और जानकारी अद्भुत थी। भारत के लगभग सभी पड़ोसी देशों की राजनीति को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा। इन देशों की राजनीति व एक देश के नाते उनकी विकास प्रकिया के संबंध में उन्होंने कितने ही लोगों को और गहन अध्ययन करने की प्रेरणा दी थी। इन देशों के राजनेताओं के साथ उनके निजी आत्मीय संबंध रहे और वे भी उनसे राय लेते रहते थे।

वैदिक जी के साथ बैठना अपने आप में चर्चा का स्तर ऊंचा कर देता था। उनकी अध्ययनशीलता सराहनीय थी। अंतिम समय तक अध्ययन और लेखन निर्बाध चलता रहा। उन्होंने देश और समाज में अपने लिए जो स्थान निर्मित किया था वह लोगों को आश्चर्य में डाल देता था। उस स्थान की पूर्ति संभव ही नहीं है। सही मायने में उनके जाने से देश की पत्रकारिता और सामाजिक विचार-विमर्श के क्षेत्र में एक खालीपन आया है। मुझे व्यक्तिगत रूप में साठ साल से आत्मीयता से जुड़े अपने बंधु के जाने का कष्ट तो अंतिम समय तक रहेगा ही। ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दें!

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By NI Desk

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