उत्तराखंड में चार धाम यात्रा का आरंभ होते ही श्रद्धालुओं का सैलाब पवित्र स्थलों की ओर उमड़ने लगता है। इन्हीं तीर्थ स्थलों के बीच श्रीनगर गढ़वाल में स्थित प्राचीन सिद्धपीठ “धारी देवी मंदिर” का विशेष महत्व है। इस मंदिर को चार धाम की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है। यहां मां धारी देवी की पूजा दक्षिणी काली माता के स्वरूप में की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां धारी देवी चारों धाम की रक्षा करती हैं और उनका स्वरूप दिन में तीन बार बदलता है—सुबह कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा के रूप में मां के दर्शन होते हैं। इस अलौकिक रूपांतरण को देखने के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां खिंचे चले आते हैं।
मां धारी देवी के इन चमत्कारी स्वरूपों और अद्भुत दिव्यता के कारण लोगों की इस मंदिर में अगाध आस्था है। चार धाम यात्रा की पूर्णता मां धारी देवी के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु इस सिद्धपीठ में आकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
चारों धामों की रक्षक देवी
उत्तराखंड की धरती पर बसे श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक ‘मां धारी देवी मंदिर’ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसे चारों धामों की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर श्रीनगर गढ़वाल के निकट अलकनंदा नदी के बीचों-बीच एक ऊंचे चट्टान पर स्थित है, जो अपने आध्यात्मिक महत्व और रहस्यमय शक्ति के लिए प्रसिद्ध है।
मां धारी देवी मंदिर के पुजारी लक्ष्मी प्रसाद पांडेय बताते हैं कि मां धारी देवी को “दक्षिण काली” और “कल्याणी” रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि माता का यह मंदिर जिस ‘धारी गांव’ के सामने स्थित है
वह द्वापर युग में बसाया गया था और वहां पांडवों के अवशेष मिलने के प्रमाण भी समय-समय पर प्राप्त हुए हैं। यही कारण है कि यह स्थान पौराणिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
धारणा है कि मां धारी देवी की मूर्ति को हटाना या स्थानांतरित करना किसी भी रूप में शुभ नहीं होता। वर्ष 2013 में जब तकनीकी कारणों से मंदिर को कुछ समय के लिए स्थानांतरित किया गया था, तो उसी रात उत्तराखंड में केदारनाथ धाम सहित पूरे क्षेत्र में भयावह आपदा आई, जिसमें भारी तबाही हुई।
तभी से मां धारी को ‘आपदा वाली देवी’ के रूप में भी संबोधित किया जाने लगा। श्रद्धालु मानते हैं कि जब तक मां अपनी जगह पर विराजमान रहती हैं, तब तक चारों धामों की रक्षा होती है।
मां धारी देवी का पौराणिक मंदिर
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चारधाम यात्रा पर जाने से पहले श्रद्धालु मां धारी देवी के दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। यह आस्था है कि मां की कृपा से उनकी यात्रा सुरक्षित, निर्विघ्न और सफल होती है।
एक समय था जब श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के उपलक्ष्य में यहां पशु बलि चढ़ाते थे। यह परंपरा वर्ष 1986 तक चलती रही, जिसके बाद इसे पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया। तब से मां को प्रसन्न करने के लिए नारियल और घंटियां चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।
धारी देवी मंदिर की विशेषता यह भी है कि यह मंदिर जलधारा के बीच स्थित एक चट्टान पर बना है, जो हर मौसम में भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां का वातावरण इतना शांत, रहस्यमय और दिव्य है कि हर आगंतुक के मन में भक्ति और श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ता है।
मां धारी देवी का यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत का अद्वितीय प्रतीक है। यहां आकर श्रद्धालु न केवल देवी के दर्शन करते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और दिव्यता का अनुभव भी करते हैं।
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