चारधाम की पवित्र तीर्थयात्रा 30 अप्रैल से आरंभ हो रही है, जो कि अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर होती है। इस आध्यात्मिक यात्रा में चार प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थल—यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ—का दर्शन किया जाता है।
परंपरा के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे, जबकि केदारनाथ धाम 2 मई और बद्रीनाथ धाम 4 मई को भक्तों के दर्शन हेतु खुलेंगे।
मान्यता है कि चारधाम यात्रा करने से जीवन के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। यह यात्रा केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी व्यक्ति को आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर करती है। इसी कारण कहा जाता है कि हर इंसान को अपने जीवन में एक बार यह यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ‘अक्षय’ का अर्थ क्या है और क्यों चारधाम यात्रा की शुरुआत इसी दिन से होती है?
‘अक्षय’ का अर्थ होता है—जो कभी क्षय न हो, यानी जिसका कभी अंत न हो। अक्षय तृतीया को शुभ और अनंत फलदायक माना गया है। इसी दिन से शुरू हुई यात्रा जीवन में शुभता, शांति और आत्मिक उन्नति का प्रतीक मानी जाती है।
तो आइए, इस अक्षय तृतीया पर आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की ओर पहला कदम बढ़ाएं—चारधाम यात्रा के पावन पथ पर।
अक्षय पुण्य फल की होती है प्राप्ति
अक्षय तृतीया सनातन धर्म का एक अत्यंत पावन और पुण्यदायक पर्व है, जिसे युगादि तिथि के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है किअक्षय तृतीया के दिन किया गया स्नान, दान, जप, तप और पूजन अनंत पुण्य फल प्रदान करता है। यह दिन किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इस दिन बिना किसी मुहूर्त के कार्य आरंभ करना अत्यंत फलदायी होता है।
‘अक्षय’ अर्थात जो कभी क्षय न हो
इस तिथि का नाम ‘अक्षय’ इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन प्राप्त पुण्य और शुभ फल कभी समाप्त नहीं होते। इसी कारण लोग इस दिन सोना खरीदते हैं, जो नाश न होने वाली धातु मानी जाती है।
मान्यता है कि इस दिन स्वर्ण खरीदने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को धन-वैभव तथा समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। भविष्य पुराण, नारद पुराण सहित कई ग्रंथों में इस दिन का उल्लेख मिलता है।
अक्षय तृतीया के दिन से ही चारधाम यात्रा की शुरुआत होती है। इस दिन यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुलते हैं, जिससे श्रद्धालुओं का धर्मयात्रा आरंभ होता है। हिन्दू परंपरा में चारधाम यात्रा – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ – का विशेष धार्मिक महत्व है।
अक्षय तृतीया न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आत्मिक शुद्धि, पुण्य अर्जन और शुभता की ओर अग्रसर होने का एक अद्भुत अवसर भी प्रदान करता है। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति हेतु यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है।
इस वजह से यमुनोत्री से होती है चारधाम की शुरुआत
चारधाम यात्रा, हिंदू धर्म की एक अत्यंत पवित्र तीर्थयात्रा मानी जाती है, जिसमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम सम्मिलित हैं। इस यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से करना केवल परंपरा नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और आध्यात्मिक मान्यता का प्रतीक भी है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुलने के पश्चात, दो मई को केदारनाथ और चार मई को बद्रीनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले जाएंगे।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, यमुनोत्री यात्रा का पहला पड़ाव होता है क्योंकि यमुना नदी का यह उद्गम स्थल न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
देवी यमुना, यमराज की बहन मानी जाती हैं, और मान्यता है कि उन्होंने अपने भाई से यह वर प्राप्त किया था कि यमुनोत्री में स्नान करने वाले भक्तों को मृत्यु के भय से मुक्ति मिलेगी। यही कारण है कि भक्तगण चारधाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से करते हैं ताकि उनकी संपूर्ण यात्रा बाधारहित और शुभ फलदायी हो।
इसके अतिरिक्त, इस यात्रा का भौगोलिक पहलू भी अत्यंत रोचक है। यमुनोत्री चारधाम में पश्चिम दिशा में स्थित है और यात्रा क्रमशः पश्चिम से पूरब की ओर होती है — गंगोत्री, फिर केदारनाथ और अंत में बद्रीनाथ।
ज्योतिष और धर्मशास्त्रों के अनुसार, पश्चिम से पूरब की ओर यात्रा करना अत्यंत शुभ और सहज माना गया है, जिससे यात्रियों को मार्ग में कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
अक्षय तृतीया 2025 शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व
चारधाम यात्रा की शुरुआत प्रायः अक्षय तृतीया जैसे पुण्य पर्व के आसपास ही होती है। वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया 29 अप्रैल की शाम 05:32 बजे आरंभ होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 02:12 बजे समाप्त होगी।
पूजन हेतु सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 30 अप्रैल को प्रातः 05:41 बजे से दोपहर 12:18 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि 6 घंटे 37 मिनट की होगी।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया पर किया गया कोई भी पुण्य कर्म अथवा दान अनंत फल देने वाला होता है। इस दिन यदि सोना या चांदी न खरीदा जा सके, तो मिट्टी के बर्तन, कौड़ी, पीली सरसों, हल्दी की गांठ, अथवा रूई जैसे शुभ प्रतीक खरीदना भी अत्यंत फलदायक माना गया है। इसके अलावा, दही, चावल, दूध, खीर आदि का दान करने से सुख, समृद्धि और संतति की प्राप्ति होती है।
अक्षय तृतीया और यमुनोत्री से चारधाम यात्रा की शुरुआत, दोनों ही भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक उत्थान, शांति और मोक्ष की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम मानी जाती है। यह पर्व और यात्रा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक हैं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और जीवन में संतुलन की खोज का एक माध्यम भी हैं।
also read: चारधाम यात्रा का आगाज 30 अप्रैल यानी कल से, आस्था का कारवां चला भक्तिरस के द्वार