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अदानी को बचाने या तो आज सरकार उढेलेगी पैसा या…..

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अपने यहां मतदान से पूर्व की रात को ‘कत्ल की रात’ मानते हैं। वैसा ही अदानी ग्रुप के लिए आज का दिन है। सचमुच सोमवार, 30 जनवरी 2023 का शेयर बाजार का दिन अदानी ग्रुप के लिए अहम है। आज या तो मोदी सरकार अपने बैंकों तथा एलआईसी से अदानी ग्रुप के शेयरों की अंधाधुंध खरीद करवाएगी या बैंकों-एलआईसी की बरबादी रोकने के लिए उन्हें अदानी के शेयरों को बेचने के लिए कहेगी। दूसरी तरफ अदानी ग्रुप के लिए आज प्रबंधों व जुगाड़ों का दिन है। गौतम अदानी येन केन प्रकारेण प्रधानमंत्री से किसी जुगाड़, किसी खाड़ी देश या चाइनीज या रूसी प्रभाव वाले निवशेक फंडों, क्रोनी देशी निवेशकों से अपने शेयर खरीदवा कर बाजार में और गिरावट को रोकने की कोशिश करेंगे। साथ में अदानी ग्रुप को 20 हजार करोड रुपए का पब्लिक इश्यू (एफपीओ) भी बचाना है। इसमें एक ऑप्शन प्रति शेयर 3,112 से 3,276 रुपए की रेट को घटा तथा आखिरी तारीख 31 जनवरी को दो-तीन दिन आगे बढ़ाने का है। लेकिन ग्रुप ने इस संभावना से इनकार किया है। इसकी वजह वैश्विक चिंता (MSCI Global Investable Market Indexes) लगती है।

जाहिर है मोदी सरकार और अदानी की प्राथमिक रणनीति अदानी ग्रुप के शेयरों में गिरावट रोकने की होगी। इसके लिए कुछ भी होगा। सरकारी बैंक-एलआईसी आज अपना खजाना अदानी ग्रुप के शेयर खरीदने के लिए खोल सकते हैं तो शेयर बाजार में खरीद-फरोख्त रूकवाने की तकनीकी गड़बड़ी हो सकती है। अदानी ग्रुप के शेयरों पर सर्किट लगे व ट्रेडिंग रूकना भी मुमकिन। मगर दिक्कत यह है कि देश-दुनिया के निवेशकों के बीच अदानी कंपनियों के शेयरों को ले कर जो सेंटीमेंट बना है, जैसे तथ्य देश-विदेश की खबरों में हैं उनके रहते क्या एलआईसी-बैंकों के चैयरमैनों में भी फंड उढेलने की हिम्मत होगी?

सोचें, शुक्रवार को अदानी ग्रुप के जिस शेयर पर प्रति कमाई याकि पीई (price-to-earnings) 394 रुपए की आंकी गई उसे कैसे 3,112 रुपए या 2762.15 रुपए या 1000 रुपए प्रति शेयर की रेट पर भी कोई खरीदने की जोखिम लेगा? हां, ‘टेलीग्राफ’ अखबार की एक रिपोर्ट में तथ्य है कि अदानी एंटरप्राइजेज का जो खुला हुआ पब्लिक इश्यू 3,112 से 3,276 रुपए की रेंज का है, उसका हालिया ताजा तिमाही नतीजों पर रिटर्न, याकि प्रति शेयर कमाई याकि पीई सिर्फ सात रुपए है। मतलब शेयर बाजार में गिरावट से पहले जहां पीई पांच सौ रुपए प्रति शेयर था वही गिरावट के बाद सिर्फ 394 रुपए। ध्यान रहे शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद शेयर कीमत 2762.15 रुपए थी। इस रेट पर प्रति शेयर पीई, कमाई अनुसार शेयर रेट सिर्फ 394 रुपए बैठती है। अडानी के एक शेयर पर सात रुपए की कमाई जबकि इसकी समवर्ती कंपनियों की प्रति शेयर पीई लगभग 30 रुपए आसपास है! तो ऐसे शेयर की क्या बैंकों-एलआईसी को खरीद करनी चाहिए?

क्या यह हकीकत दिमाग भन्ना देने वाली नहीं है? सात बनाम तीस रुपए कमाई के परफॉरमेंस का कितना बड़ा फर्क है तो 394 रुपए की वैल्यू के शेयर को भला कोई क्यों 2,762 रुपए में खरीदेगा?

तभी लाख टके का सवाल है कि क्या बैंक-एलआईसी या कोई क्रोनी विदेशी फंड सोमवार को शेयर बाजार में अदानी ग्रुप को बचाने के लिए उसके शेयर खरीदेगा? पर भारत में सब संभव है। इसलिए क्योंकि भारत का मौजूदा महाकाल बातों की हवाबाजी और गुब्बारों से सपने देखने का है। यों भी भारत के शेयर बाजार का डीएनए सरकार व सेठ के परस्पर रिश्तों से चढ़ाव-उतार के है। फिर भले बैंक-एलआईसी से जनता को पैसा डूबे या आम निवेशक लूटा जाए। इसी सत्य में विदेशी एफआईआई निवेशक गोरखधंधे को बूझ कमाई करते हैं। भारत के सट्टे में बल्ले-बल्ले होती है।

सोचें, क्यों एलआईसी व सरकारी बैंकों ने अदानी ग्रुप के इतने शेयर खरीदे? फिर क्यों विदेशी निवेशकों के सट्टे का ठिकाना अदानी ग्रुप हुआ? इस सबसे फिर अदानी ग्रुप के शेयर आकाश छूते हुए थे। और गौतम अदानी दुनिया के खरबपतियों में लगातार टॉप की लिस्ट में फुदकते हुए। इसके किस्सों से अलग अदानी के शेयरों का शेयर बाजार में जंप। इसलिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट की इस बात में तो दम है कि अदानी ग्रुप की सात कंपनियों के शेयर करेंट वैल्यू का 85 प्रतिशत गंवाने का खतरा लिए हुए हैं। जान लें हिंडनबर्ग रिपोर्ट को दुनिया खारिज नहीं कर रही है। दुनिया के जाने माने खरबपति निवेशक बिल ऑकमान (Bill Ackman) ने गुरूवार को ट्विट कर दो टूक कहा है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट बहुत विश्वसनीय (highly credible) और पूरी रिसर्च (extremely well-researched) सहित है। वैश्विक अखबारों में यह तथ्य बार-बार रिपीट हो रहा है कि सन् 2020 में अदानी की कुल संपति नौ अरब डॉलर थी जो दिसंबर 2022 में 127 अर डॉलर हो गई।

अब सोचें, गौतम अदानी को नौ अरब डॉलर से 127 अरब डॉलर का कुबेर बनवाने वाली जादुई छड़ी पर। यह वैश्विक चमत्कार है। तभी हर विदेशी अखबार अपनी रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गौतम अदानी के करीबी रिश्तों का जिक्र करते हुए है।

अमेरिका के राष्ट्रीय अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने अदानी और मोदी के पुराने रिश्तों का ब्योरा देते हुए अपनी रिपोर्ट में कई तथ्य लिखे हैं। जैसे अदानी ग्रुप के कुल कर्जे में सरकारी बैंकों का तीस प्रतिशत हिस्सा बताया है। सहज सवाल है कि अदानी ग्रुप के कर्ज और निवेश दोनों में भारत के सरकारी बैंकों और एलआईसी का इतना फंसना कैसे हुआ, जबकि ग्रुप के शेयर की पीई इतनी कम!

पर जब पहले ऐसा हुआ है तो आज क्यों नहीं होगा। तभी मानना है कि इस सप्ताह मोदी सरकार आम आदमी को बचाने के नाम पर अदानी ग्रुप को बचाने की हर संभव कोशिश करेंगी। इसका संकेत अपने को मायावती से भी मिला है!

पूछ सकते है कि भला सीन में मायावती कहा से आ गई? हैरानी वाली बात जो शनिवार को मायावती ने ट्विट करके कहा कि अदानी समूह के संबंध में अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और इसके शेयर बाजार में पड़े प्रतिकूल प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सरकार को बयान देना चाहिए।…सरकार चुप है, जबकि देश के करोड़ों लोगों की गाढ़ी कमाई उससे जुड़ी हुई है।…अदानी की विश्व रैंकिंग घटने से ज्यादा लोग इस बात से चिंतित हैं कि अर्थव्यवस्था का क्या होगा। बेचैनी व चिंता स्वाभाविक है समाधान जरूरी है।

सोचें, मायावती के बयान देने का क्या अर्थ? वे इन दिनों किसके लिए, किसकी राजनीति करते हुए हैं? लोगों की गाढ़ी कमाई को बचाना है, समाधान निकालना है तो यह क्या मोदी सरकार को पब्लिक के नाम पर एसबीआई, एलआईसी से अदानी ग्रुप के शेयर खरीदवाने का आह्वान नहीं है?

सो, मेरा मानना है कि शनिवार को मायावती के ट्विट उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिससे मोदी सरकार का इस सप्ताह अदानी ग्रुप को बचाने का रेस्क्यू ऑपरेशन संभव है। उस नाते मोदी सरकार अदानी ग्रुप को डंप नहीं करेगी। फिर भले दुनिया, वैश्विक वित्तीय राजधानियों, वैश्विक निवेशक गौतम अदानी, अदानी ग्रुप तथा भारत और उसके कैपिटल मार्केट पर चाहे जो लिखें, वह चाहे जो राय बनाएं। मैं वैश्विक निवेशकों, अखबारों में हिंडनबर्ग रिपोर्ट की विश्वसनीयता को पढ़ कर हैरान हूं। दुनिया के अखबार हिंडनबर्ग रिपोर्ट की यह लाइन कोट करते हुए हैं कि अदानी है ‘कॉरपोरेट इतिहास का सर्वाधिक बड़ा ठग’ (द वाशिंगटन टाइम्स का वाक्य-Hindenburg, which is best known for a 2020 report about misrepresentation at electric vehicle company Nikola, said in research published after a two-year probe that Adani had pulled the-“Largest con in corporate History”.)।

सोचें, दुनिया की पूंजीवादी व्यवस्था के टॉप निवेशक, विश्व अखबार यदि विश्व के टॉप दस खरबपतियों में से एक की बैकग्राउंड वाले गौतम अदानी को यदि “Largest con in corporate History” कुख्याति में ले आए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि उन्हें बचाते हुए लगे तो नरेंद्र मोदी और भारत को ले कर क्या राय बनेगी? संभव है आने वाले सालों में हॉलीवुड में गौतम अदानी पर वैसी ही फिल्में बने जैसी वॉल स्ट्रीट के शेयर बाजार में गोलमाल करने वाले कई खिलाड़ियों पर बनी है। गौतम अदानी की कहानी में खास बात हौ कि वे दुनिया के अमीरतम सेठ होने की दो साल से सुर्खियां लिए हुए हैं। तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट के रहते फिल्म भी बनेगी और वह सुपरहिट भी होगी। उसके स्क्रिप्ट में भारत के प्रधानमंत्री, भारत की सरकार का रोल भी होगा। इसलिए खबर आते ही जो गपशप लिखी थी तो उसकी पहली लाइन ही थी कि भारत सरकार, व्यवस्था, नरेंद्र मोदी सबकी साख दांव पर है। इसलिए यदि अदानी सच्चे हैं तो अमेरिकी अदालत में जाकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को झूठा साबित करें। हिंडनबर्ग की चुनौती स्वीकारें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अमेरिका से आए The- “Largest con in corporate History” के जुमले को ध्यान में रख कर ही जो भी करें, बैंक-एलआईसी को जो भी कहें उस पर अच्छी तरह सोचें-विचारें।

तभी यह सप्ताह न केवल गौतम अदानी के लिए निर्णायक है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी गंभीर है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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