तैयार रहे, तापमान तो बढ़ेगा!

तैयार रहे, तापमान तो बढ़ेगा!

दुनिया का हर जानकार कह रहा है कि यदि धरती को बचाना है तो दुनिया के औसत तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोत्तरी की सीमा को कतई पार नहीं होने दे। लेकिन कहना है और टारगेट बहुत कठिन। विशेषकर इसलिए क्योंकि आबादी, माल और सेवाओं की मांग और भू-राजनैतिक तनाव – तीनों बढ़ रहे हैं। सही है कि दुनिया के देशों ने समस्या की गंभीरता को समझा हुआ है। सन 2015 में पेरिस समझौते पर दस्तखत करके संकल्प भी लिया था कि औद्योगिक क्रांति से पूर्व दुनिया का जो औसत तापमान था, उसमें 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि नहीं होने दी जाएगी। परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया, सभी को समझ आने लगा है कि इस संकल्प को पूरा करना आसान नहीं होगा।

कल (मई 17, 2023) संयुक्त राष्ट्रसंघ के वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाईजेशन (डब्ल्यूएमओ) ने चेतावनी दी है कि अगले पांच वर्षों में से कम से कम एक वर्ष में तापमान में वृद्धि की 1.5 डिग्री की सीमा पार होने की सम्भावना 66 प्रतिशत है। एक साल पहले डब्ल्यूएमओ ने इसकी सम्भावना 48 प्रतिशत बताई थी। इस संगठन का यह भी कहना है कि अगर 1.5 डिग्री की सीमा पार न भी हुई तब भी यह तो पक्का है कि अगले पांच सालों में से एक साल मानव इतिहास का सबसे गर्म साल होगा। इसके पहले यह रिकॉर्ड 2016 के नाम था। उस साल का औसत तापमान, औद्योगिक क्रांति से पहले की दुनिया की तुलना में 1.28 डिग्री ज्यादा था।

इस अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी टालस ने चेतावनी देते हुआ कहाहै, “इसके स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, वाटर मैनेजमेंट और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव होंगे। हमें तैयार रहना होगा।”

तापमान में संभावित वृद्धि के लिए मानव जाति तो ज़िम्मेदार है ही, इसका पीछे एल नीनो भी है। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाईजेशन के अनुसार अगले पांच सालों में उत्तरी यूरोप और अफ्रीका में सहारा रेगिस्तान के दक्षिण के स्थिति सहेल इलाके में गर्मी के मौसम में ज्यादा बारिश हो सकती है और अमेज़न व ऑस्ट्रेलिया में कम। इसका सबसे बड़ा कारण है एल नीनो सदर्न ऑक्सीलेशन, जिससे आशय है प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से के गर्म और ठंडे होना का प्राकृतिक चक्र। इस चक्र का दुनिया के मौसम पर व्यापक असर होता है। जब प्रशांत महासागर का पानी ठंडा होता है तब उसे ला नीना कहा जाता है। पिछले तीन सालों से यही हो रहा था, जिसके कारण पूरी दुनिया में तापमान कम था। इस साल इस चक्र का दूसरा हिस्सा, जिसमें पानी गर्म होता है और जिसे एल नीनो कहा जाता, शुरू होने वाला है। ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर के कारण धरती पहले से ही गर्म होती जा रही है। एल नीनो तापमान को और बढाएगी जिसके कारण इस साल जला देने वाली गर्मी पड़ेगी। अभी तक सबसे गर्म साल, 2016, भी एल नीनो का साल था।

इसका अर्थ यह नहीं कि हमें हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाना चाहिए और तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री से कम रखने के पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट के लक्ष्य को भूल जाना चाहिए। सारे देश यदि मिल कर काम करें तो हम इस सीमा की भीतर रह सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी होगा कि हर साल 3.5 बिलियन से लेकर 5.4 बिलियन टन के बीच कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण से बाहर किया जाए। अगले 30 सालों में इस मात्रा को 4.7 बिलियन से लेकर 9.8 बिलियन टन करना होगा। इस साल नवम्बर में 28वीं यूनाइटेड नेशन्स क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस (कॉप28) आयोजित होगी जिसमें दुनिया भर की सरकारें मिल-बैठ कर यह विचार करेंगी कि पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को पाने की दिशा में हम कितना आगे बढे। जब हिसाब-किताब होगा तब संभवतः यही सामने आएगा कि तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री के अन्दर रखने के लिए जो ज़रूरी है – अर्थात ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी लाना – हम उस लक्ष्य से बहुत दूर हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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